धर्म की शरण उत्तम, आसक्ति का कीड़ा नष्ट कर सकता श्रद्धा का पेड़ - समकितमुनि
भीलवाड़ा। भवसागर में डूबने से बचने के लिए विवेकी लोग धर्म की शरण लेते है। आगम के अनुसार धर्म उत्तम शरण व निश्चित स्थान है। समझदार लोग धन की नहीं धर्म की शरण लेते है। ज्ञानीजन कहते है कि धर्म उस समय हो जाता जब हम हर परिस्थिति में खुश रहना सीख लेते है। स्वभाव में रहना धर्म और विभाव में रहना अधर्म है। आत्मा का स्वभाव क्रोध करना नहीं क्षमा करना है। क्रोध व अभिमान में होने पर अधर्म एवं क्षमा व विनम्रता में होना धर्म है। ये विचार श्रमणसंघीय सलाहकार सुमतिप्रकाशजी म.सा. के सुशिष्य आगमज्ञाता, प्रज्ञामहर्षि डॉ. समकितमुनिजी म.सा. ने शांतिभवन में सोमवार को नियमित चातुर्मासिक प्रवचन में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि शिकवा, शिकायत करना अधर्म है। धर्म की शरण लेने वाला व्यक्ति हर परिस्थिति में बेफिक्र हो जाता है। भाग्यशाली लोग ही ऐसी धर्म आराधना करते है। स्वभाव में रहना यानि सामान्य(नॉर्मल) रहना है। ऐसा रहने पर शरीर स्वस्थ रहता है। मुनिश्री ने कहा कि जब मन बिगड़ जाता है तो भाव बदल जाएंगे और भाव बदलते ही भाषा बिगड़ जाएगी। भाषा बिगड़ी तो वैर का अनुबंध हो जाएगा। सामान्य स्थिति में रहना बड़ी बात है, हर परिस्थिति में हम स्वयं को संभालना सीख जाए। अपनी भाषा व भावों को संभाल लिया तो जीवन अपने आप सफल हो जाएगा। ऐसा नहीं कर पाने पर जिंदगी में असफल हो जाएंगे। पूज्य समकितमुनिजी ने कहा कि चमत्कार एवं आडम्बर की नींव पर बनी इमारत कभी मजबूत नहीं हो सकती। श्रद्धा की नींव पर जो इमारत मजबूत बनती वह हमेशा मजबूत रहेगी। श्रद्धा के पेड़ में आसक्ति का कीड़ा लगने पर वह नष्ट हो जाता है। जिसने राग-द्धेष खत्म कर लिया वह पूजनीय है। धर्मसभा के शुरू में गायनकुशल जयवंतमुनिजी म.सा. ने प्रेरक गीत ‘मेरी लागी गुरू संग प्रीत दुनिया क्या जाने’ पेश किया। धर्मसभा में प्रेरणाकुशल भवान्तमुनिजी म.सा. का भी सानिध्य रहा। धर्मसभा में नासिक, मैसूर, नंदुरबार, चित्तौड़गढ़ आदि स्थानों से आए श्रावक-श्राविकाएं मौजूद थे। नासिक के आशीष नवकार सेवा ट्रस्ट के अध्यक्ष निलेश भंडारी ने विचार व्यक्त करते हुए पूज्य समकितमुनिजी से नासिक पधारने की विनती की। अतिथियों का स्वागत शांतिभवन श्री संघ के अध्यक्ष राजेन्द्र चीपड़ एवं वित्त संयोजक मनोहरलाल सूरिया ने किया। धर्मसभा का संचालन करते हुए शांतिभवन श्रीसंघ के मंत्री राजेन्द्र सुराना ने किया।
पूज्य समकितमुनिजी का अगला चातुर्मास पूना घोषित
पूज्य गुरूदेव श्रमण संघीय सलाहकार भीष्म पितामह सुमतिप्रकाशजी म.सा.,उपाध्याय विशाल मुनिजी म.सा. की आज्ञा से उत्तर भारतीय प्रवर्तक आशीषमुनिजी म.सा. ने भीलवाड़ा में चातुर्मासरत पूज्य समकितमुनिजी म.सा. आदि ठाणा 3 का आगामी चातुर्मास महाराष्ट्र के पूना शहर के लिए घोषित किया है। इस बात की जानकारी समकितमुनिजी ने सोमवार को शांतिभवन में धर्मसभा में दी।
धर्म करने से होती कर्म की निर्जरा
पूज्य समकितमुनिजी ने कहा कि पुण्य एवं धर्म अलग है। पुण्य देता है जबकि धर्म छिनता है। धर्म त्याग के अंदर है। धर्म करने के लिए छोड़ना पड़ता है। पुण्य करने से पुण्यबंध होते है जबकि धर्म करने से कर्मों की निर्जरा होती है। पुण्य सुख-सुविधाएं एवं सहारा दे सकता लेकिन संसार से पार नहीं करा सकता। संसार सागर को पार धर्म की नांव ही करा सकती है। इसके लिए पुण्य को भी छोड़ना पड़ता है। उन्होंने कहा कि आगम के अनुसार अहिंसा, संयम व तप युक्त धर्म ही श्रेयस्कर है। दिखावा आधारित धर्म विभाव का होता है। धर्म वहीं श्रेष्ठ है जहां तप व संयम का वास हो ओर अहिंसा बोलती हो। जहां दिखावा बोले वहां अहिंसा नहीं हो सकती।
बदी चतुर्दशी पर लोगस्स पाठ एवं मांगलिक 24 को
बदी चतुर्दशी के अवसर पर 24 सितम्बर को सुबह 9 बजे से शांतिभवन में पूज्य समकितमुनिजी म.सा. के सानिध्य में लोगस्स पाठ एवं मांगलिक का आयोजन होगा। श्रमण संघीय महामंत्री पूज्य सौभाग्यमुनिजी म.सा. की द्वितीय पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में 25 सितम्बर को सामूहिक सामायिक आराधना एवं 27 सितम्बर को गुणानुवाद सभा का आयोजन होगा। इस अवसर पर सामूहिक सामायिक आराधना के तहत 1008 सामूहिक सामायिक करने का लक्ष्य रखा गया है।