सोनिया की संसदीय सीट रायबरेली में हिल रहा है पूरा पेड़
कांग्रेस के नेता कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में इंडिया गठबंधन हमसे ज्यादा समाजवादी पार्टी, रालोद और बसपा की जरूरत है। हमारी तो 2019 में वहां से केवल एक सीट आई थी। बसपा 10 पर और सपा पांच पर थी। जबकि सपा-बसपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था। लिहाजा घबराने की जरूरत नहीं है। जो होगा अच्छा होगा।रायबरेली में क्या होगा? यहां से कांग्रेस की सांसद सोनिया गांधी हैं। गांधी परिवार के वफादार किशोरी लाल शर्मा के बगैर रायबरेली में कोई पत्ता नहीं हिलता था। पंडित जी प्रभावी तो अब भी हैं। गांधी परिवार में सीधी इंट्री भी। लेकिन रायबरेली के सूत्र बताते हैं कि पिछले चार साल से समीकरण कुछ गड़बड़ा रहे हैं। वहां पत्ता नहीं पूरा पेड़ हिल रहा है। वैसे भी रायबरेली की तरफ अब गांधी परिवार भी अपनी सूरत दिखाने से बच रहा है। ऐसे में जमीनी पकड़ भी तेजी से बदल रही है। बदलते हालात से किशोरी लाल भी थोड़ा खिन्न से हैं। वह भी कह देते हैं सब उन्हीं को थोड़े पता है। कुछ कांग्रेस अध्यक्ष खरगे से भी पूछ लीजिए। वैसे रायबरेली में चुनाव प्रचार शुरू हो गया है। प्रियंका गांधी के पोस्टर लगने शुरू हो गए हैं। जिलाध्यक्ष पंकज सिन्हा की टीम सब साधने में लगी है। ब्लॉक स्तरीय सम्मेलन चल रहे हैं। हालांकि वहां अभी यह नहीं पता है कि लोकसभा चुनाव 2024 लड़ेगा कौन?
कांग्रेस और सपा: जो बूझे वो आधा खाए
इंडिया गठबंधन उत्तर प्रदेश में आकार लेते-लेते प्रकार में बदल जाता है। फिर प्रकार से लौटकर आकार में आता है। सपा को अभी भी लग रहा है कि क्या पता, चुनाव की घोषणा होते-होते बसपा इंट्री ले ले। वैसे भी कांग्रेसियों को सपा से ज्यादा बसपा प्रिय है। दूसरा पेंच यह भी कि अल्पसंख्यक सीटों पर क्या हो? कांग्रेसी चाहते हैं कि अल्पसंख्यक बहुल सीटें कांग्रेस के पाले में आए। बंटवारा हो तो तर्कसंगत हो। सपा के रणनीतिकार यहां यादव-मुस्लिम समीकरण पर नजर गड़ाए बैठे हैं। उन्हें लगता है कि यह चाबी तो अपने पास ही रखनी है। क्योंकि इसमें थोड़ी सी अन्य जातियां जुड़ती हैं तो नतीजे बदल जाते हैं। फिर राष्ट्रीय लोकदल के जयंत चौधरी भी हैं। वह भी दो सीटों पर अपना पेंच फंसा दे रहे हैं। वैसे कांग्रेस के नेता कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में इंडिया गठबंधन हमसे ज्यादा समाजवादी पार्टी, रालोद और बसपा की जरूरत है। हमारी तो 2019 में वहां से केवल एक सीट आई थी। बसपा 10 पर और सपा पांच पर थी। जबकि सपा-बसपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था। लिहाजा घबराने की जरूरत नहीं है। जो होगा अच्छा होगा।
कांग्रेस और सपा: जो बूझे वो आधा खाए
इंडिया गठबंधन उत्तर प्रदेश में आकार लेते-लेते प्रकार में बदल जाता है। फिर प्रकार से लौटकर आकार में आता है। सपा को अभी भी लग रहा है कि क्या पता, चुनाव की घोषणा होते-होते बसपा इंट्री ले ले। वैसे भी कांग्रेसियों को सपा से ज्यादा बसपा प्रिय है। दूसरा पेंच यह भी कि अल्पसंख्यक सीटों पर क्या हो? कांग्रेसी चाहते हैं कि अल्पसंख्यक बहुल सीटें कांग्रेस के पाले में आए। बंटवारा हो तो तर्कसंगत हो। सपा के रणनीतिकार यहां यादव-मुस्लिम समीकरण पर नजर गड़ाए बैठे हैं। उन्हें लगता है कि यह चाबी तो अपने पास ही रखनी है। क्योंकि इसमें थोड़ी सी अन्य जातियां जुड़ती हैं तो नतीजे बदल जाते हैं। फिर राष्ट्रीय लोकदल के जयंत चौधरी भी हैं। वह भी दो सीटों पर अपना पेंच फंसा दे रहे हैं। वैसे कांग्रेस के नेता कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में इंडिया गठबंधन हमसे ज्यादा समाजवादी पार्टी, रालोद और बसपा की जरूरत है। हमारी तो 2019 में वहां से केवल एक सीट आई थी। बसपा 10 पर और सपा पांच पर थी। जबकि सपा-बसपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था। लिहाजा घबराने की जरूरत नहीं है। जो होगा अच्छा होगा।
लिखकर ले लीजिए कांग्रेस की 75 से अधिक सीटें आएंगी?'
कभी राहुल गांधी के कार्यालय में साहब की तूती बोलती थी। आजकल कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य जरूर हैं, लेकिन मामला थोड़ा ठंडा चल रहा है। पूरे देश में राज्यवार उन्होंने अपने प्रयासों से एक रायशुमारी करायी है। अब इस रायशुमारी को कांग्रेस के भीतर वह चर्चा में लाना चाहते हैं। पिछले दिनों कांग्रेस अध्यक्ष खरग़े का भी समय लिया था, लेकिन बात नहीं बन पाई। वह चाहते हैं कि उनकी बात 10 जनपथ तक पहुंच जाए। सूत्र का कहना है कि लिखकर ले लीजिए। 2024 में भाजपा चाहे जितना जोर लगा ले, कांग्रेस को 75 सीटें आने से कोई नहीं रोक सकता। बताते हैं इस बार कांग्रेस पार्टी को आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक से लोकसभा में सीटें मिलेंगी। इन तीन राज्यों से पार्टी को 15-18 सीटें मिल सकती हैं। जबकि 2019 में यहां से खाता नहीं खुला था। केरल से अकेले 15 सीटें आई थी। दूसरे नंबर का राज्य तमिलनाडु और पंजाब था। बताते हैं कि दोनों राज्यों में सीटें घटने वाली नहीं है। इसी तरह से कुछ और राज्यों में सीटें बढऩे का पूरा अनुमान है। बताते हैं सब ठीक चला तो 2024 में प्रधानमंत्री मोदी की दिल्ली दूर रह सकती है।
बहन मायावती जी बड़ी नेता हैं, हम तो 32 साल से सेवा दे रहे हैं
बहन मायावती जी बड़ी नेता हैं। मुझे नहीं पता कि वह क्या कर रही हैं? क्यों कर रही हैं? जिस बसपा का 2007-08 में प्रचंड उभार देखा था, अब उसका पराभव देखा नहीं जाता। यह कहते ही बसपा के संस्थापक कांशीराम की सेवा करने वाले की आंखें भर आयी। सूत्र का कहना है कि दिन तो उसी दिन दिखाई पड़ गए थे, जब गांधी आजाद जैसे नेता दु:खी मन से गए थे। बाद में अंम्बेथ राजन भी छोड़कर चले गए। वैसे हमने 32 साल से बसपा की सेवा की है। मेरी राय में बसपा का सबसे बड़ा नुकसान भाजपा कर रही है। बहन जी को चाहिए कि वह भाजपा को सबक सिखाएं। देखिए ऐसा कब होगा?