भीलवाडा(विजय गढ़वाल)। लोक आस्था और सूर्योपासना का महापर्व छठ 17 नवंबर को नहाय-खाय के साथ शुरू हो गया ,पहले दिन खरना का प्रसाद बनेगा। जबकि इसके अगले दो दिनों तक भगवान भास्कर को अर्घ्य दिया जाएगा। आखिरी दिन व्रती पारण करेंगे। इसके साथ ही छठ का महापर्व समाप्त हो जाएगा। चार दिनों तक चलने वाले छठ महापर्व की अपनी एक अलग महानता है।
छठ त्योहार ऊर्जा के देवता, सूर्य देव की पूजा करने के लिए मनाया जाता है और पृथ्वी ग्रह पर जीवन को आशीर्वाद देने के लिए धन्यवाद देने का माध्यम है। हर साल भक्त परिवार के सदस्यों और दोस्तों की सफलता और खुशहाली के लिए उत्साहपूर्वक सूर्य की पूजा करते हैं। हिंदू धर्म में मान्यताओं के अनुसार, पवित्र छठ पूजा करने से कुष्ठ रोग जैसी पुरानी बीमारियां भी ठीक हो जाती हैं। कार्तिक मास में कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है, जिसे “खराग छठ” कहा जाता है।

हर दिन का अपना महत्व
व्रत के सभी अलग-अलग दिनों का महत्व काफी खास है। कद्दू भात ग्रहण करने के बाद व्रती 36 घंटे का निर्जला उपवास करती हैं। छठ व्रतियां निर्जला उपवास कर पूजा-अर्चना करेंगी। पंडित मनोहर कुमार बताते हैं कि छठ व्रत के दौरान सभी दिनों का अपना एक अलग महत्व होता है। छठ का व्रत अलग-अलग रूप में और कठिन होता चला जाता है। गुरुवार को अर्घ्य देने के लिए सूप व सामग्री रखने के लिए दउरा-दउरी लोग खरीदे।
पहला दिन
छठ व्रत की शुरुआत नहाय-खाय के साथ होता है। कार्तिक शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि को छठ पर्व के पहले दिन नहाय खाय किया जाता है। छठ व्रतियां किसी भी नदी, तालाब या अन्य किसी भी जलाशय में स्नान कर इसकी शुरुआत करती हैं। इसके पहले घर की साफ सफाई कर ली जाती है। नहाय-खाय के दिन अरवा चावल, चने की दाल और कद्दू की सब्जी का प्रसाद बनाया जाता है। सेंधा नमक का इस्तेमाल किया जाता है। यह प्रसाद लोगों के बीच वितरित भी किया जाता है और यही से छठ पर्व की शुरुआत होती है।
दूसरा दिन
छठ पर्व के दूसरे दिन को खरना के रूप में जाना जाता है। हालांकि इसी दिन से छठ व्रती का 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो जाता है। पहले सुबह से ही व्रती अन्न जल त्याग कर भगवान भास्कर की आराधना करने लगते हैं। शाम के वक्त अरवा चावल, दूध, गुड़, खीर इत्यादि का प्रसाद बनता है तथा भगवान भास्कर को चढ़ाने के बाद व्रती अल्प प्रसाद ग्रहण करती हैं। इस दिन निर्जला उपवास की शुरुआत हो जाती है।
तीसरा दिन
छठ पर्व का तीसरा दिन सबसे कठिन होता है। इस दिन छठ व्रतियों के निर्जला उपवास का दूसरा दिन प्रारंभ हो जाता है और इसी दिन छठ व्रती के द्वारा पूजा के दौरान इस्तेमाल में लाया जाने वाला ठेकुआ सहित अन्य प्रसाद भी बनाया जाता है। इसी दिन शाम के वक्त लोग छठ घाट जाते हैं और डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं।
चौथा दिन
छठ पर्व का चौथा दिन कार्तिक मास शुक्ल पक्ष सप्तमी तिथि को होता है। इस दिन अहले सुबह भगवान भास्कर के उदीयमान स्वरूप को अर्घ्य दिया जाता है। सुबह के वक्त भी लोग छठ घाट पहुंचते हैं और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। इसके बाद छठ व्रतियों के द्वारा पारण किया जाता है तथा छठ का व्रत खोल दिया जाता है। इसी के साथ छठ पर्व का समापन भी हो जाता है।
कद्दू खाने का ये है महत्व
जानकार बताते हैं कि नहाय खाय के दिन कद्दू खाने के पीछे धार्मिक मान्यताओं के साथ विज्ञानी महत्व भी है। इस दिन प्रसाद के रुप में कद्दू भात ग्रहण करने के बाद व्रती 36 घंटे का निर्जला उपवास करती हैं। कद्दू इम्युनिटी बूस्टर है जो व्रतियों को 36 घंटे के उपवास में मदद करता है। कद्दू खाने से शरीर में अनेक प्रकार के पोषक तत्व मिलते हैं। इसमें पानी की भी अच्छी खासी मात्रा पाई जाती है जो कि निर्जला उपवास में काफी मददगार होती है।
17 नवंबर : नहाय खाय
18 नवंबर : छठ का खरना
19 नवंबर : शाम 5:22 बजे अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य
20 नवंबर : सुबह 6:39 बजे उदयाचल सूर्य को अर्घ्य और छठ का पारण।