परमात्मा का प्राकट्य अपने गुणों के विस्तार हेतु हुआ-स्वामी सुदर्शनाचार्य

परमात्मा का प्राकट्य अपने गुणों के विस्तार हेतु हुआ-स्वामी सुदर्शनाचार्य
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चितौड़गढ़। स्वामी सुदर्शनाचार्य महाराज ने कहा कि प्रायः यह मान्यता है कि परमात्मा का अवतार धर्म की स्थापना एवं अधर्म का नाश करने के लिए होता है। उन्होंने बताया कि ऋषि मूनियो के अनुसार परमात्मा का प्राकट्य उनके गुणों के विस्तार के लिए होता रहा है, क्योंकि परमात्मा अनन्त गुणों के सागर है। उन्होंने बताया कि परमात्मा के 24 अवतारों में से श्री कृष्ण अवतार लीला अवतार माना गया, जिसमें कृष्ण ने स्वयं को भगवान निरूपित करते हुए अपनी लीलाएं रची। स्वामी सुदर्शनाचार्य अष्टादश कल्याण महाकुंभ के चतुर्थ दिवस वाल्मिकी कथा मंडप में व्यासपीठ से वाल्मिकी रामायण के गुढ़ रहस्यों को प्रकट कर रहे थे। उन्होंने कहा कि कृष्णा अतवार में पूतना वध सहित कई बाल लीलाओं के बाद कुरूक्षेत्र में अर्जुन को यह संदेश दिया कि वह केवल युद्ध करें और इस दौरान उनका स्मरण करता रहे। गोवर्धन पर्वत को अपनी तर्जनी पर उठाकर ईश्वर होने का संदेश दिया, जबकि दूसरी ओर रामावतार में प्रभु का मर्यादा पुरूषोत्तम स्वरूप था, जिसमें उन्होंने मानव मात्र से प्रेम करने के साथ ही अपना परिचय भी मानव रूप में देते रहे, ताकि उनके क्रियाकलापों को जनसाधारण अनुकरणीय मानकर जीवन को धन्य कर सके। स्वामी ने बताया कि 100 करोड़ रामायण में श्रीराम का वर्णन है, पर कोई भी व्यक्ति राम शब्द को अंगीकार कर धन्य हो सकता है। उन्होंने बताया कि श्रीराम का जन्म चौत्र शुक्ला नवमी को हुआ और नौ की संख्या का अपना ही महत्व है। उन्होंने बताया कि राघव के मुख कमल की कांति कभी कम नहीं हुई। उन्होंने कहा कि देवता भी भारत भूमि पर जन्म लेने के लिए तरसते है , ऐसे में हम सौभाग्यशाली है कि हम भारत माता की पावन धरा पर देव दुर्लभ मानव शरीर प्राप्त कर चूके है। ऐसे में हमें 84 लाख योनियों के बाद मिले मानव तन को मोक्षगामी होने की ओर अग्रसर करना चाहिए। उन्होंने कहा कि सनातन संस्कृति में 16 संस्कारों का तथा मातृ शक्ति के लिए भी सोलह श्रृंगार हुआ करते थे, लेकिन पाश्चात्य संस्कृति के दुष्प्रभाव से हम उन्हें भूलते जा रहे है, जिसके फलस्वरूप वर्तमान में मात्र जन्म, विवाह और मृत्यु ही शेष रहे। उन्होंने कहा कि प्रभु ने रामावतार लेकर मानवीय संवेदना की प्रेरणा देते हुए राघव ने सोशिल्य गुणों का विस्तार किया। जिसमें जटायु और शबरी के प्रति उनकी करूणा आज भी प्रासंगिक है। उन्होंने रघुवंश के महाराज ईक्षवाकु के संदर्भ में बताया कि प्रकाण्ड ज्योतिषी रावण को मालूम था कि रघुवंशी के द्वारा ही उसकी मृत्यु होगी, इसलिए इस वंश के महाराज ईक्षवाकु को मारकर वह अमर होने का प्रयास कर रहा था। इस दौरान  जब उसने महाराज पर आक्रमण करना चाहा तो, उसी समय महाराज ने रघुवंश की परंपरा का निर्वहन करते हुए वन में सिंह द्वारा गौमाता को मारने के प्रयास के दौरान तीर संधान कर गौमाता को तीरों के पिंजरे में सुरक्षित करते हुए सिंह का वध किया। जिसे सुनकर रावण भी चकित हो गया। इतना ही नहीं स्वयं ब्रह्मा जी ने भी बताया कि इस वंश की 21 वीं पीढी में रामावतार के दौरान ही रावण का वध होगा, जो सत्य साबित हुआ। प्रारंभ में स्वामी जी ने ठाकुर जी के दर्शन कर पूजा अर्चना की, वहीं प्रबोधचन्द्र शर्मा, भजन जिज्ञासु एवं वेदपीठ के पदाधिकारियों ने व्यासपीठ की पूजा की। इस दौरान आदित्य डिजिटल स्टूडियों द्वारा विशाल एलईडी पर सभी कार्यक्रमों का प्रदर्शन लोगों के लिए आकर्षण का केन्द्र रहा।
ठाकुर जी के बांके बिहारी स्वरूप ने भक्तों का मन मोहा
महाकुंभ के चतुर्थ दिवस वेदपीठ पर विराजित कल्याण नगरी के राजाधिराज ठाकुरजी को धराया गया बांके बिहारी का स्वरूप भक्तों के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र रहा , इतना ही नहीं मंदिर के गर्भगृह को जल प्लावित कर नाव मनोरथ की झांकी देखते ही बनती थी। इसके साथ ही समूची वेदपीठ को बड़ी संख्या में मोगरों के फूलों से सुसज्जित किया गया, जिसके फलस्वरूप वेदपीठ फूलों की खुश्बू से महक उठी। प्रतिदिन छप्प्न भोग की श्रृंखला में मंगलवार को ठाकुर जी को कई प्रकार के आमों का छप्पन भोग लगाया गया। ऐसे अनुपम दृश्य को हर कोई भक्त निहारकर स्वयं को धन्य कर रहा था।
ठाकुर जी की महिमा के साथ खूब जमी रावल की भजन संध्या
वाल्मिकी कथा मंडप के विशाल मंच पर सोमवार रात्रि को प्रसिद्ध भवाई कलाकार लक्ष्मीनारायण रावल व साथियों द्वारा प्रस्तुत भजन संध्या ने समूचे वातावरण को कल्लामय बनाने में कोई कोर कसर नहीं रखी। प्रारंभ में दिनेश मनवारी ने गणपति वंदना करते हुए रूणक, जुणक कर आवों नी म्हारा प्यारा गजानन्द से भजन संध्या की शुरूआत की। उन्होंने ओ गुरू देव आपकी सूरत प्यारी लागे तथा म्हारे कल्लाजी के मंदिर में बाजे ढोल सुनाकर खूब तालियां बटौरी वहीं लक्ष्मीनारायण  रावल ने वातावरण में जोश भरते हुए मेवाड़ी वीरों का गुणगान के दौरान जहां रूण्ड लड़े वहां मूंड कटे, गोराबादल जयमल फत्ता  की आन लिए आया हूं तथा धन्य धन्य है मेवाड़ की धरती, क्या क्या करूं बढ़ाई में जैसे भजनों की प्रस्तुति के साथ माता रानी की झांकी, शिव स्वरूप का मनमोहक वर्णन और भवाई नृत्य की प्रस्तुति देकर अपनी कला का परिचय दिया। इसी दौरान कलाकार दीपक ने गांवा गांवा में पूजवाया म्हारा कल्लाजी, घर आवले म्हारा भगवान, कुलड़ा लई दे रे मालिड़ा जैसे मनभावन भजनों के साथ जब हनुमान जी का प्यारा भजन घुमादे म्हारा बालाजी भजन की प्रस्तुति दी तो, हनुमत् चरित्र के साथ वानर सेना के प्रदर्शन ने वातावरण को हनुमत् शक्ति से रूबरू करा दिया। मध्य रात्रि तक चली भजन संध्या के दौरान लोग भक्ति रस में गोते लगाते नजर आए। इसी कड़ी अखिलेश ठाकुर एवं साथियों द्वारा मनभावन भजनों की प्रस्तुतियां दी जाएगी।
पंच दिवसीय श्रीराम महायज्ञ आज से
महाकुंभ के पंचम दिवस बुधवार से पांच दिवसीय 51 कुण्डीय श्रीराम महायज्ञ का भव्य आयोजन श्रीराम यज्ञशाला में होगा। जिसकी सभी तैयारियां पूर्ण कर ली गई है। मंगलवार को स्थापित देवताओं की पूजा अर्चना के बाद आज प्रातः पुरूष यजमानों द्वारा हेमाद्री स्नान के पश्चात यज्ञशाला में 300 से अधिक यजमान युगल यज्ञ में आहूतियां देंगे। जिसके प्रारंभ में वैदिक परंपरा अनुसार ऋग्वेद के अग्नि सूक्त के मंत्रोंच्चार के साथ अरणी मंथन कर अग्नि देव को प्रकट करते हुए मुख्य कुण्ड में स्थापित किया जाएगा। यह दृश्य नगरवासियों के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र होगा।
 

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