जन प्रतिनिधित्व कानून के जिस प्रावधान से छिनी राहुल की सांसदी, सुप्रीम कोर्ट में उसे दी गई चुनौती
कांग्रेस नेता राहुल गांधी के मोदी सरनेम केस में दो साज की सजा सुनाए जाने के बाद शुक्रवार को स्पीकर ओम बिरला ने उनकी संसद सदस्यता भी रद्द कर दी है. जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के तहत स्पीकर ने यह कार्रवाई की है. अब दोष साबित होने के बाद किसी जनप्रतिनिधि के ऑटोमैटिक डिस्क्वॉलिफिकेशन के प्रावधान को खत्म करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर दी गई है.
याचिका में कहा गया है कि अधिनियम के चेप्टर-III के तहत अयोग्यता पर विचार करते समय आरोपी के नेचर, गंभीरता, भूमिका जैसे कारकों की जांच की जानी चाहिए. याचिकाकर्ता ने कहा कि धारा 8(3) अयोग्यता के नाम पर विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा चलाए जाने वाले झूठे राजनीतिक एजेंडे के लिए एक मंच को बढ़ावा दे रही है, इसलिए यह धारा राजनीतिक हित के लिए जनप्रतिनिधि के लोकतांत्रिक ढांचे पर सीधे हमला कर रही है, जिससे देश की चुनावी व्यवस्था में भी अशांति पैदा हो सकती है.
इस कानून की धारा 8(3) में लिखा है कि अगर किसी सांसद या विधायक को दो साल या उससे ज्यादा की सजा होती है तो तत्काल उसकी सदस्यता चली जाती है और अगले 6 साल तक चुनाव लड़ने पर भी रोक लग जाती है. याचिका में कहा गया-"लिली थॉमस मामले में आए फैसले का राजनीतिक दलों में व्यक्तिगत प्रतिशोध के लिए खुले तौर पर दुरुपयोग किया जा रहा है.
क्या है जनप्रतिनिधि कानून?
- 1951 में जनप्रतिनिधि कानून आया था. इस कानून की धारा 8 में लिखा है कि अगर किसी सांसद या विधायक को आपराधिक मामले में दोषी ठहराया जाता है, तो जिस दिन उसे दोषी ठहराया जाएगा, तब से लेकर अगले 6 साल तक वो चुनाव नहीं लड़ सकेगा.
- धारा 8(1) में उन अपराधों का जिक्र है जिसके तहत दोषी ठहराए जाने पर चुनाव लड़ने पर रोक लग जाती है. इसके तहत, दो समुदायों के बीच घृणा बढ़ाना, भ्रष्टाचार, दुष्कर्म जैसे अपराधों में दोषी ठहराए जाने पर चुनाव नहीं लड़ सकते. हालांकि, इसमें मानहानि का जिक्र नहीं है.
- पिछले साल समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान की विधायकी चली गई थी. क्योंकि उन्हें हेट स्पीच के मामले में दोषी ठहराया गया था.
- इस कानून की धारा 8(3) में लिखा है कि अगर किसी सांसद या विधायक को दो साल या उससे ज्यादा की सजा होती है तो तत्काल उसकी सदस्यता चली जाती है और अगले 6 साल तक चुनाव लड़ने पर भी रोक लग जाती है.
क्या है लिली थॉमस केस
- 2005 में केरल के वकील लिली थॉमस और लोकप्रहरी नाम के एनजीओ के महासचिव एसएन शुक्ला ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी.
- इस याचिका में जनप्रतिनिधि कानून की धारा 8(4) को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई थी. उन्होंने दलील दी कि ये धारा दोषी सांसदों-विधायकों की सदस्यता को बचाती है, क्योंकि इसके तहत अगर ऊपरी अदालत में मामला लंबित है तो फिर उन्हें अयोग्य नहीं करार दिया जा सकता.
- इस याचिका में उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 102(1) और 191(1) का भी हवाला दिया गया था. अनुच्छेद 102(1) में सांसद और 191(1) में विधानसभा या विधान परिषद को अयोग्य ठहराने का प्रावधान है.
- 10 जुलाई 2010 को सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस एके पटनायक और जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय की बेंच ने इस पर फैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा कि केंद्र के पास धारा 8(4) को लागू करने का अधिकार नहीं है.
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर किसी मौजूदा सांसद या विधायक को दोषी ठहराया जाता है तो जनप्रतिनिधि कानून की धारा 8(1), 8(2) और 8(3) के तहत वो अयोग्य हो जाएगा.