प्रेम का वास्तविक अर्थ ही वियोग, वियोग से प्रेम होता अधिक गहरा- शास्त्री

भीलवाड़ा। प्रेम का वास्तविक अर्थ ही वियोग है, वियोग से प्रेम अधिक गहरा होता है। कोई प्रियजन नजदीक होता है तो उसे कई बार पूरा समय नहीं दे पाते है। इसके विपरीत जब वही प्रियजन दूर चला जाता है तो उसका वियोग बर्दाश्त नहीं कर पाते है। ये विचार अन्तरराष्ट्रीय श्री रामस्नेही सम्प्रदाय शाहपुरा के अधीन शहर के माणिक्यनगर स्थित रामद्वारा धाम में वरिष्ठ संत डॉ. पंडित रामस्वरूपजी शास्त्री (सोजत सिटी वाले) ने गुरुवार को चातुर्मासिक सत्संग प्रवचनमाला के तहत व्यक्त किए। उन्होंने गर्ग संहिता के माध्यम से चर्चा करते हुए कहा कि भगवान श्री कृष्ण ने ब्रिज की धरती को लंबे वियोग में बदल दिया था। राधा रानी को भी 100 वर्ष तक कृष्ण भगवान से वियोग हुआ।
भगवान श्री कृष्ण वृंदावन को छोड़कर काठियावाड़ द्वारिका नहीं जाते तो बृज भाव कभी का नष्ट हो जाता । यह तो वियोग दशा की देन है जो आज भी बृजभाव जीवित है ,100 वर्ष तक भगवान द्वारिका में रहे थे और ब्रिज में 11 वर्ष तक। द्वारिका की तो जीवन में कभी एक बार यात्रा होती है पर वृंदावन की कई बार ,ब्रिज भाव ही दिल में समाया रहता है कारण कि वह वियोगी है। शास्त्रीजी ने कहा कि मथुरा से एक योगी उद्धव को श्री कृष्ण ने गोपियों के लिए भेजा था ताकि योग का ज्ञान देकर उन्हें सांत्वना दे आए परंतु उद्धव जब वहां पहुंचा तो गोपियों ने जवाब दिया उधो योग से वियोग क्या कम है जवाब दो। उन्होंने कहा कि तब उद्धव की आंखें खुल गई और उन्होंने वियोगिनी गोपियों के वियोग को देख वह भी योग से वियोग दिशा में परिवर्तन हो गया था क्योंकि गोपियों का योग तो वियोग में परिपक्व हो गया था। अब यह समझना मुश्किल है कि योग बड़ा है कि वियोग। श्सत्संग के दौरान मंच पर रामस्नेही संत बोलतारामजी एवं संत चेतरामजी का भी सानिध्य प्राप्त हुआ। चातुर्मास के तहत प्रतिदिन भक्ति से ओतप्रोत विभिन्न आयोजन हो रहे है। भीलवाड़ा शहर के विभिन्न क्षेत्रों से श्रद्धालु सत्संग-प्रवचन श्रवण के लिए पहुंच रहे है। प्रतिदिन सुबह 9 से 10.15 बजे तक संतो के प्रवचन व राम नाम उच्चारण हो रहा है। चातुर्मास के तहत प्रतिदिन प्रातः 5 से 6.15 बजे तक राम ध्वनि, सुबह 8 से 9 बजे तक वाणीजी पाठ, शाम को सूर्यास्त के समय संध्या आरती का आयोजन हो रहा है।