जीवन में हो संयम का बंधन - आचार्य महाश्रमण

जीवन में हो संयम का बंधन - आचार्य महाश्रमण
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भीलवाड़ा(हलचल)रक्षाबंधन का पर्व भारतीय संस्कृति में एक विशिष्ट पहचान रखता है। अहिंसा यात्रा प्रणेता पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी ने धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए आज रक्षाबंधन के पावन पर्व पर विशेष उद्बोधन प्रदान किया। साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा जी ने भी वक्तव्य द्वारा प्रेरणा दी। प्रतिवर्ष श्रावणी पूर्णिमा विश्व संस्कृत दिवस के रूप में मनाई जाती है। संस्कृत भाषा से तेरापंथ का विशिष्ट जुड़ाव है। स्वयं परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण संस्कृत भाषा के प्रतिष्ठित विद्वान है एवं आपकी संस्कृत रचनाओं की पुस्तकें पाठक वर्ग को अध्यात्म की गहराइयों का ज्ञान कराती हैं।

मंगल प्रवचन में आगमवाणी फरमाते हुए आचार्य श्री ने कहा- संयम एक प्रकार का नियंत्रण है, नियमन की साधना है। अध्यात्म के क्षेत्र में संयम का बहुत महत्व है। अहिंसा को साधने के लिए भी संयम अपेक्षित है। जब तक संयम जीवन में नहीं आता, अहिंसा भी जीवन में नहीं आ सकती। संयम की दृष्टि से व्यक्ति को प्राणियों का संयम करना चाहिए। अर्थात जो सूक्ष्म प्राणी है जैसे पृथ्वीकाय, अपकाय, तेजसकाय, वायुकाय, वनस्पति काय आदि। जैन दर्शन के अनुसार इनमें ऐसे सूक्ष्म जीवों का वास है जो प्रत्यक्षतः व्यक्ति को दिखाई नहीं देते। व्यक्ति को इनके अनावश्यक उपयोग से बचने का प्रयास करना चाहिए। दस प्रकारों के संयम का उल्लेख करते हुए आचार्य श्री ने आगे कहा कि दैनिक जीवनचर्या में ये तत्व अनेक रूप से उपयोग में आते है। व्यक्ति ध्यान दे कि क्यों वह अनावश्यक पानी का अपव्यय करें। अनावश्यक रूप से पंखे, एसी आदि के उपयोग से भी बचना चाहिए। इनके संयम के साथ पर्यावरण भी जुड़ा हुआ है। जहां-जहां लगे, कम वस्तुओं से काम हो सकता है वहां पर संयम की चेतना को जागृत करना चाहिए। संयम से अहिंसा की दिशा में भी व्यक्ति उन्नति कर सकता है।

रक्षाबंधन के संदर्भ में गुरुदेव ने कहा- संसार में भाई बहन का संबंध होता है। आज के दिन रक्षा के प्रतीक रूप में बहनें भाई की कलाई पर राखी भी बांधती हैं। भाई का बहन के प्रति दायित्व होता है तो बहन का भी भाई के प्रति अपना दायित्व है। अध्यात्म की दृष्टि से देखें तो पापों से आत्मा की रक्षा करें वो महत्वपूर्ण है। स्वयं-स्वयं की रक्षा करे। यह रक्षाबंधन संयम का बंधन बन जाए तो पर्व की सार्थकता हो सकती है।

साध्वीप्रमुखा श्री जी ने कहा कि रक्षाबंधन के इस सांस्कृतिक पर्व पर हम अपनी व्रत्तियों को अंतर्मुखी बनाने की दिशा में आगे बढ़े तो हम अपनी आत्मा की रक्षा कर सकते है।

कार्यक्रम में संस्कृत दिवस पर आचार्य श्री का संस्कृत भाषा में प्रेरक उद्बोधन हुआ। आचार्य प्रवर ने कहा कि संस्कृत भारत की प्राचीन भाषा है। कितने ही जैन आगम साहित्य के संदर्भित ग्रन्थ संस्कृत में लिखे हुए है। तेरापंथ में अष्टम आचार्य श्री कालूगणी के समय संस्कृत भाषा का विकास हुआ और फिर आचार्य श्री तुलसी एवं आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी ने भी संस्कृत में अनेकों ग्रंथ लिखे। वें स्वयं संस्कृति के प्रकांड विद्वान थे। साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा जी भी संस्कृत में विदुषी है। अनेकों साधु-साध्वी भी अध्ययनरत है। सभी संस्कृत भाषा में और विकास करते रहे मंगलकामना।

इस अवसर पर मुनि ध्रुव कुमार, मुनि जयेश कुमार, जैन विश्व भारती विश्व विद्यालय के प्रो. राकेशमणि त्रिपाठी ने संस्कृत में अपने विचार रखे।

तपस्या के क्रम में केलवा के श्री गौतम बोहरा ने मासखमण (32 दिन) की तपस्या का प्रत्याख्यान किया।डा राजेश गोयल, अतिरिक्त जिला कलेक्टर, भीलवाड़ा
एवं ओ पी जैन, सह आयुक्त, देवस्थान विभाग, राजस्थान सरकार ने आचार्य श्री महाश्रमण के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किया।

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