भविष्य में इसलिए बढ़ेगी गोबर की कीमत
भारत में इन दिनों गोबर की डिमांड बढ़ती हुई नजर आ रही है। आलम यह है कि पशुओं का गोबर उनके चारे से ज्यादा महंगा हो गया है। केंद्र और कई राज्य सरकारों द्वारा चलाई जा रही गोबर खरीदी योजनाओं का असर इस पर सबसे ज्यादा दिखाई दे रहा है। साथ ही गोबर को ऊर्जा के स्रोत के रूप में भी प्रोत्साहित किया जा रहा है। इन्हीं वजह से गोबर के दामों बढ़ रहे हैं।
साल 2017 और 2018 में गोबर की डिमांड में मामूली गिरावट देखी गई थी। लेकिन बीते दस सालों के आंकड़े बताते हैं कि गोबर का मूल्य 10 वर्षों से लगातार बढ़ रहा है। गोबर का मूल्य आगे भी बढ़ने की संभावना है, क्योंकि केंद्र व राज्य सरकारें गोबर खरीदने की कई योजनाएं चला रही हैं। साथ ही इसे ऊर्जा के स्रोत के रूप में भी प्रोत्साहित किया जा रहा है। गोबर की पूछ इसलिए भी बढ़ी है, क्योंकि इसका इस्तेमाल हाल के वर्षों में बायोगैस और बायो फर्टिलाइजर में तेजी से बढ़ा है। इसके पहले खादी व ग्रामोद्योग आयोग ने खादी प्राकृतिक पेंट नाम से एक पहल की थी, जिसमें गोबर मुख्य सामग्री थी। इसी तरह छत्तीसगढ़ सरकार ने गोधन न्याय योजना शुरू की है। देखने में आया है कि कई अन्य राज्य भी इस योजना की कॉपी कर रहे हैं।
अमर उजाला डिजिटल से चर्चा में ऊर्जा विशेषज्ञ और लेखक अरविंद मिश्रा गोबर के गणित को कुछ इस तरह समझाते हैं। मिश्रा कहते हैं कि गोबर हमारी कृषि व्यवस्था में खाद के नजरिए से लंबे समय से एक अहम फीडस्टॉक रहा है। यहां तक कि पशु पालन का उद्देश्य ही दूध और गोबर जनित खाद हासिल करना सबसे अहम था। लेकिन कथित हरित क्रांति की वजह से रासायनिक खाद का इस्तेमाल कुछ इस तरह बढ़ा कि पैदावार तो बढ़ी, लेकिन उसने खेती-किसानी की लागत बढ़ाने के साथ जमीन की उर्वरा शक्ति को भी कमजोर किया। इसका नकारात्मक असर हमारे स्वास्थ्य पर भी पड़ा है। यही वजह है कि अब एक बार फिर गोबर खाद रासायनिक खादों का विकल्प बन रही है।
अरविंद मिश्रा के मुताबिक, देश में गोबर खाद और कंपोस्ट खाद का उपयोग प्राचीन काल से होता आ रहा है। विभिन्न प्रकार के वर्मी कंपोस्ट खाद भी तैयार करने की विधियां ईजाद की गई हैं। जैविक खाद से जुड़ी आधुनिक तकनीकों से अब हम गोबर और कंपोस्ट की एक टन खाद से लगभग पांच किग्रा नाइट्रोजन, 2.5 किग्रा फास्फोरस एवं पांच किग्रा पोटाश हासिल कर सकते हैं। भविष्य में गोबर की दरें और बढ़ेंगी। क्योंकि अभी देश में जैविक खाद की क्षमता का 50 फीसदी उपयोग भी नहीं हो पाया है। खास बात यह है कि इससे लोग पशुपालन के लिए भी प्रोत्साहित होंगे। इसका सीधा लाभ 2070 तक देश की इकोनॉमी को कार्बन न्यूट्रल बनाने के रूप में सामने आएगा।
देशभर में 5000 सीबीजी संयंत्र होने हैं स्थापित
मिश्रा कहते हैं कि गोबर हमारी पूरी कृषि अर्थव्यवस्था को बदलने के साथ किसानों की आय दोगुनी करने में मददगार हो सकता है, बशर्ते हमें आर्गेनिक वेस्ट टू एनर्जी से जुड़ी योजनाओं में विशेषज्ञता और तकनीकी दक्षता के अभाव को दूर करना होगा। इसी तरह देश के अलग-अलग हिस्सों में वेस्ट मैनेजमेंट, रीसाइक्लिंग, गैसीफिकेशन, वेस्ट ट्रीटमेंट, पैरालिसिस (ताप अपघटन) पर आधारित सीबीजी प्लांट स्थापित किए जाएं।
हाल ही में इंडियन जर्नल ऑफ फर्टिलाइजर में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक कृषि खाद्यान्न उत्पादन में लगभग 40 फीसदी हिस्सेदारी रासायनिक उर्वरक की होती है। ऐसे में जैविक खाद को बढ़ावा देने के लिए गोबर व उससे बनी खाद को प्रोत्साहित किया जा रहा है। केंद्र सरकार ऑर्गेनिक वेस्ट से किसानों को सालाना एक लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त आमदनी मुहैया कराने जा रही है। इसके अंतर्गत कम्प्रेस्ड बायोगैस पर आधारित परियोजनाओं पर दो लाख करोड़ रुपये का निवेश होना है। इन प्रयासों की बदौलत देशभर में 5,000 कम्प्रेस्ड बायोगैस (सीबीजी) संयंत्र स्थापित होने हैं। इनमें गोबर और कृषि अपशिष्ट (एग्री वेस्ट) सबसे अहम फीडस्टॉक होगा।
यह कहते हैं आंकड़े
वित्त वर्ष 2020-21 के लिए राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) की ओर से जारी ताजा आंकड़ों से पता चलता है कि पशुओं के गोबर का रियल ग्रॉस वैल्यू आउटपुट (जीवीओ) पशुओं द्वारा खाए जा रहे चारे के कुल मूल्य से ज्यादा है। ‘कृषि, वानिकी और मत्स्य उत्पादों के मूल्य’ नाम से आई रिपोर्ट के मुताबिक, गोबर का रियल जीवीओ 7.95 फीसदी सकल सालाना वृद्धि (CAGR) दर से बढ़ा है। वित्त वर्ष 2011-12 के 32,598.91 करोड़ रुपये से बढ़कर वित्त वर्ष 21 में 35,190.8 करोड़ रुपये हो गया है। वहीं चारे का रियल जीवीओ इस 10 साल के दौरान 1.5 फीसदी (CAGR) घटकर वित्त वर्ष 21 में 31,980.65 करोड़ रुपये हो गया है, जो वित्त वर्ष 12 में 32,494.46 करोड़ रुपये था। दरअसल, रियल ग्रास वैल्यू आउटपुट फॉर्मूला का उपयोग किसी वस्तु या सेवा की लागत के साथ ही उससे हुई आमदनी का तुलनात्मक अध्ययन में करते हैं।