कुष्ठ एवं चर्म व असाध्य रोगों से मुक्ति का केन्द्र तिलस्वां महादेव

श्री तिलस्वां महादेव मन्दिर इतिहास व शिवमहिमा मध्यप्रदेश सीमा से लगता हुआ जिला मुख्यालय भीलवाड़ा से 88 किलोमीटर व नेशनल हाईवे 76 सलावटिया से 9 किलोमीटर पूर्व दिशा में अरावली की पर्वत श्रंखलाओ तथा सैंडस्टीन के पहाड़ों पर ऐरू नदी के किनारे बसे धार्मिक नगरी तिलस्वां में बने भगवान शंकर के भव्य , पौराणिक मंदिर एवं यहां की प्राकृतिक छटा से आच्छादित क्षेत्र जहां सुदूर मावाअंचल, मेवाड़, हाड़ौती, बरड के जन जन के भक्ति और श्रद्धा का केंद्र तिलस्वा महादेव का मंदिर जहाँ आकर श्रद्धालु जन दर्शन कर अपने कार्यों को सफल करने के लिए मनौती (आखा ) मांगते के साथ-साथ यहां पर मंदिर के सम्मुख बने विशाल पवित्र कुण्ड जो यहां की सुंदरता को और अधिक आच्छादित करने वाले होकर, पवित्र कुंड में स्नान के बाद मिट्टी का लेप करते हैं मिट्टी के लेप से चर्म रोग दूर होते हैं यहां आने वाले श्रद्धालु यहां की जल से स्नान करना नहीं भूलता । कुंड के बीच जाने के लिए सुंदर पुलिया का निर्माण करवाया गया है तथा उनके मध्य में एक और कुंड (बावडी ) है श्रृद्धालु गण बाहर के विशाल पवित्र कुण्ड में स्नान करतें है वह कुंड के बिच वाली बावडी के जल से महादेव का अभिषेक होता है । इसके सम्मुख एक संगमरमर से गंगा माता मंदिर बना हुआ है इस पर चलने वाले से फुव्वारो से यहाँ की छट्टा अद्भुत होती हैं पुलिया की सढियो के दोनों तरफ छतरीया हैं कुंड के बाई और छत्तरी में पूजनीय पुजारी जी भंवर लाल जी पाराशर की प्रतिमा विराजित है वही कुंड के दाहिनी तरफ दान पात्र रखा हुआ है मुख्य मंदिर में प्रवेश करने से पहले बड़ा दरवाजा आता है जिसके दोनों और गजराज स्वागत के लिए आतुर है वही प्रवेश द्वार से पहले हनुमान मंदिर हैं जहां डाकन भूत वाले (बाहरी हवा) लोग वही खेलते हैं मंदिर के सामने संगमरमर निर्मित अहिर समाज द्वारा छतरी में विराजमान है मुख्य मंदिर के बाएं तरफ माता अन्नपूर्णा का मंदिर व तोरण द्वार, शनि मंदिर, विष्णु भगवान का मंदिर है वहीं मुख्य मंदिर के दाई तरफ गणेश मंदिर, महाकाल मंदिर, सूर्य मंदिर है वही मंदिर के पीछे शिव परिवार की छतरियां बनी हुई है मुख्य मंदिर में प्रवेश पर सभागृह जहां महादेव की गद्दी हैं तो एक तरफ भगवान को भोग प्रसाद लगाने के लिए हवन वेदी है वही गर्भ ग्रह में प्रवेश निषेध है वह शिव भक्तों द्वारा पाठ लगा है जहां पर श्री फल, पुष्प माला, भेंट आदि चढ़ाकर दर्शन लाभ लेते हैं भगवान शंकर की एक लिंग के रूप में पूजा होती है यहां स्थापित शिव व पार्वती की मूर्तियां आदिकाल से स्थापित हैं स्वयंभू शिवलिंग तल से नीचे होने के कारण हमेशा फूलों पुष्पों से श्रृंगारीत किया जाता है शिव दर्शन भक्तजन इस मंदिर में करते हैं तथा अखंड ज्योत के दर्शन होते हैं इस संदर्भ में कया यहां के मठाधीश श्री स्वर्गीय श्री भंवर लाल जी पाराशर के मुख से सुनी गई है यह लिंक स्वयंभू हैं महाबली रावण तपस्या के बल पर लिंग (शिव जी प्रतिक) लेकर जा रहा था रावण से (शर्त) कि यह कहा गया है कि जहां पर भी इस लिंक को भूमि पर रखोगे वहीं शिव लिंग स्थापित हो जाएगा, रावण को लघुशंका की शिकायत तेज हुई उन्होंने (रावण) इधर उधर देखा तो उसको एक ग्वाला गाय चराते हुए दिखाई दिया, ग्वाले को बुलाकर उसको शिव लिंग सोप दिया शिव लिंग का भार वढने से ग्वाले ने शिवलिंग को भूमि पर रख कर चला गया, रावण लघुशंका से निर्वत हो कर देखा तो शिव लिंग भूमि पर था रावण ने शिवलिंग को उठाना का प्रयास किया, यक हार गया परंतु शिवलिंग शर्त के अनुसार वहीं स्थापित हो गया, गुस्साए रावण ने लिंक पर अपनी मुस्टीका से प्रहार किया इससे लिंग भूमि में धंस गया। वर्तमान तिलस्वा गांव से 1 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में महुपुरा ग्राम व दक्षिण में क्षेत्र खेडली गांव के दोनों गांव की मध्य एवं नदी के पास महादेव का स्थान मध्य प्रदेश के हो नामक राजा हवन (हुण) के पूरे शरीर पर कोड हो जाने पर राजा ने देश के कई जगह तीर्थाटन किया मगर कुष्ठ रोग से निजात नहीं हो पाया, बिजोलिया स्थित मंदाकिनी कुण्ड में स्नान करने से कुष्ठ रोग दूर हो जाता था लेकिन राजा शरीर पर तिलमात्र के सम्मान बीजाणु रह जाता था बीजाणु से राजा के शरीर पर पुनः पुरे शरीर कुष्ठ रोग फैल जाता था एक दिन राजा को स्वप्न में भगवान शंकर आए और बताया कि यहां से दक्षिण दिशा में पवित्र नाडी में स्नान कर विधिवत पूजा सेवा करना इससे शरीर पर कुष्ठ रोग नहीं होगा।
कोडी राजा स्वपन के अनुसार वैसा ही किया इसी राजा के ति कुष्ठ रोग भी नहीं रहा और सदा के लिए कुष्ठ रोग से निजात यहाँ से महादेव जी के नाम तिलस्वा महादेव पड़ा है। आज की महादेव में वही चमत्कार हैं या मंदिर पर कुष्ठ, चर्म व असार का यहां मिट्टी (केशर) कि लैब व स्नान करने से आज भी मुटि रही हैं इस कारण यहां भगवान की चाकरी के लिए लोग वैन्दी में रहते हैं।
मंदिर ट्रस्ट का गठन पिछले करीब दो दशक से मंदिर विकास कार्य के लिए मंदिर ट्रस्ट का गठन पूर्व जिला प्रमुख व ट्रस्ट संरक्षक कन्हैयालाल धाकड़ के सानिध्य में किया गया। प्रथम अध्यक्ष देबीलाल मालवीय तथा वर्तमान में तिलस्वां निवासी रमेश चन्द्र अहीर व सचिव पद पर मांगीलाल धाकड़ आसीन हैं। मंदिर की पूजा अर्चना पाराशर परिवार करता है ।
मुख्य मंदिर के पीछे शिखर की ओर देखने पर व पुरूष आकृति बनी हुई जिसकी पिठ पिछे जूते लटके हुए हैं इस भी कालान्तर से बात चली आ रही है इस मंदिर के शिखर कलश थे जिसको चुराने के आश्रय से ऊपर चढ़ा (खापरीय वहीं पर पाख्राण का हो गया क्रमश दोनों ही चौरव स्वर्ण कलश के हो गए उसके बाद से ही मुख्य मंदिर श्री तिलस्वों महादेव के पर स्वर्ण कलश नहीं चढ़ता है। तिलस्वा महादेव में विभिन्न की धर्मशालाएं हैं जिसमें कराड, भील, मीणा, थाकड़, गुर्जर, , हरिजन, वैश्य, गुसाईं, लुहार, तेली, यादव, सिंधी, सेन, , बंजारा, विजयवर्गीय, युन्मावत, धोबी, खटीक, मेघवंशी, कोली आदि समाजों की धर्मशालाएं हैं वही रैगर समाज द्वारा महादेव मंदिर प्रवेश पर प्रयम दरवाजा निर्मित कराया गया वह दरवाजा सोजी राम बंजारा आरोली व मुख्य मंदिर के बा दरवाजा अहिर समाज द्वारा बनवाया गया है।