वाल्मिकी रामायण श्रीराम के प्रति शरणागति का पावन ग्रंथ-स्वामी सुदर्शनाचार्य

वाल्मिकी रामायण श्रीराम के प्रति शरणागति का पावन ग्रंथ-स्वामी सुदर्शनाचार्य
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चितौड़गढ़। व्यंकटेश बालाजी दिव्य धाम अलवर के स्वामी सुदर्शनाचार्य जी महाराज ने कहा कि वाल्मिकी रामायण प्रभु श्रीराम के प्रति शरणागति को प्रकट करने वाला पावन ग्रंथ है। जिसके माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति अपनी आस्था अनुसार श्रीराम की शरण प्राप्त कर सकता है। स्वामी सुदर्शनाचार्य रविवार को श्री कल्लाजी वेदपीठ एवं शोध संस्थान द्वारा आयोजित अष्टादश कल्याण महाकुंभ के द्वितीय दिवस वाल्मिकी कथा मंडप में व्यासपीठ से संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि परमात्मा के सभी 24 अवतारों में से रामावतार  सर्वश्रेष्ठ है, क्योंकि 23 अवतारों में परमात्मा ने स्वयं को भगवान के रूप में प्रकट किया, लेकिन रामावतार ने प्रभु ने कभी अपने को भगवान के रूप में नहीं, वरन मानव रूप में रहकर मानवता की शिक्षा दी। उन्होंने कहा कि सैकड़ों रामयण के रूप में मर्यादा पुरूषोत्तम की कथा की विस्तार मिल सकता है। जिसमें से केवल राम को स्वीकार कर भाग्यवान बनते हुए शरणागति के माध्यम से  परमात्मा प्राप्ति संभव है। उन्होंने बताया कि महर्षि वाल्मिकी में अपनी अनूठी रचना के माध्यम से राम चरित्र गाया और पढ़ाया है। उन्होंने बताया कि भारतीय संस्कृति में तीन अनुपम ग्रंथ है, जबकि चार वेद अष्टादश पुराण, छह शास्त्र और सैकड़ों उपनिषद में से वाल्मिकी रामायण भी है। उन्होंने कहा कि भागवत महापुराण से साक्षात भक्ति का दर्शन, महाभारत से भक्ति एवं युक्ति का दर्शन होते है, जबकि वाल्मिकी रामायण के माध्यम से शरणागति की शिक्षा मिलती है। जिसके प्रत्येक काण्ड में शरणागति को समाहित किया गया है। स्वामी जी ने बताया कि श्रीराम की समुन्द्र शरण के दौरान उन्हें शरणागति इसलिए नहीं मिल पाई कि वह स्वयं प्रभु के अवतार थे। उन्होंने कहा कि पक्षी शास्त्र के माध्यम से भी परमात्मा को प्राप्त किया जा सकता है। जहां राम जी विराजते है वहीं रामायण है। उन्होंने बताया कि राम के पावन चरित्र का विस्तार वाल्मिकी रामायण में किया गया है, तथापि उससे कई अधिक माता जानकी का गुढ़ रहस्य समाहित है। इस महाकाव्य में माता जानकी को विशेष महत्व दिया गया है। उन्होंने बताया कि जिस प्रकार मानव शरीर के 24 तत्व है, उसी प्रकार वाल्मिकी रामायण में 24 गायत्री मंत्रों की विषद व्याख्या की गई है। जिसमें 24 हजार श्लोक है। उन्होंने कहा कि रामायण के श्रवण मात्र से, जन्म, जरा और मृत्यु के भय से मुक्ति मिल जाती है। उन्होंने सनत कुमारों का उल्लेख करते हुए कहा कि हजारों वर्ष के बावजूद भी सनत कुमार पांच वर्ष के बालक ही बने रहे, क्योंकि बाल्यावस्था में किसी प्रकार का विकार नहीं होता है। इसलिए हमें जीवन में बचपन के भाव को हमेशा बने रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि मानव, दानव और देवता सभी भगवान की भक्ति करते है, लेकिन मानव द्वारा सच्चे मन से की जाने वाली भक्ति परमात्मा प्राप्ति का सहज माध्यम हो जाता है। उन्होंने वैकुण्ठ का वर्णन करते हुए कहा कि जहां सूर्य चन्द्र नहीं  पहुंचते वह वैकुण्ठ धाम है, इसलिए जिनके पाप, पुण्य क्षीण हो जाते है वहीं वैकुण्ठ धाम तक पहुंच पाते है। उन्होंने प्रभु के अवतारों का वर्णन करते हुए कहा कि विव्ह रूप में प्रभु ने प्रकट होकर किसी एक लक्ष्य की पूर्ति के बाद वे पुनरू अपने धाम को चले गए, वहीं वैभव अवतार ने राम कृष्ण के रूप में उनका प्राकट्य हुआ। उन्होंने बताया कि भगवान का अंतरयामी स्वरूप कण-कण में विध्यमान है, लेकिन पंचम स्वरूप में अर्चावतार को सनातन संस्कृति में विशेष महत्व दिया गया, जिसमें अनादिकाल से मूर्ति पूजा का विधान है। जिसके माध्यम से मनुष्य भक्ति कर स्वयं को धन्य कर सकता है।  प्रारंभ में वेदपीठ के पदाधिकारियों एवं न्यायसियों द्वारा व्यासपीठ का पूजन किया गया, वहीं स्वामी सुदर्शनाचार्य जी ने ठाकुर जी के दर्शन कर पूजा अर्चना करते हुए कल्याण नगरी में सभी के कल्याण की कामना की।
वेदपीठ ने लिया संदीपनी आश्रम का स्वरूप
कल्याण महाकुंभ के द्वितीय दिवस गौसंवर्धन के महत्व को प्रतिपादित करने के लिए वेदपीठ को बालकृष्ण के ज्ञानार्जन के संदीपनी आश्रम का स्वरूप सैकड़ों के भक्तों के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र रहा, जहां ठाकुर जी की पिछवाई से लेकर, समूचे गर्भगृह में एवं झांकी के रूप में भी गुरू आश्रम की तरह घास फूस से पारंपरिक सजावट की गई। झांकी में गोबर, गौमूत्र, गौचरण रज के साथ ही पारंपरिक पीली मिट्टी का प्रयोग कर पौराणिक परंपरा को जीवंत करने का अनुकरणीय प्रयास किया गया। इतना ही नहीं बालकृष्ण के स्वरूप को बैलगाड़ी में विराजित कर आश्रम की परंपरा का निर्वहन बताते हुए  125 प्रकार के सूखी खाद्य सामग्री के साथ ही भोजन बनाने के सभी आवश्यक पात्र एवं समस्त सामग्रियों को मिट्टी के पावन कलशों में सजाकर लगाया गया छप्पन भोग की झांकी देखते ही बनती थी। ठाकुर जी का श्रंगार भी पारंपरिक स्वरूप में ही किया गया था। प्रातरू मंगला दर्शन उपरान्त ठाकुर जी सहित पंच देवों का 21 द्रव्यों से महारूद्राभिषेक किया गया। भजन संध्या की श्रृंखला में सोमवार रात्रि को प्रसिद्ध भवाई कलाकार लक्ष्मीनारायण रावल के दल द्वारा रात्रि 9 बजे से मनभावन भजनों की प्रस्तुतियां दी जाएगी।
 

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