राजस्थान के प्रसिद्ध 9 माता मंदिर, शक्तिपीठों से लेकर अग्निस्नान और चूहों वाली देवी के दर्शन करें

राजस्थान के प्रसिद्ध 9 माता मंदिर, शक्तिपीठों से लेकर अग्निस्नान और चूहों वाली देवी के दर्शन करें
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चैत्र नवरात्र आज से प्रारम्भ हो गए हैं। नवरात्र पूरे 9 दिन तक हैं और 30 मार्च को रामनवमी पर्व मनाया जाएगा। राजस्थान में दुर्गा मां के विभिन्न स्वरूपों वाले 9 मंदिरों- जिनमें शक्तिपीठों से लेकर अग्निस्नान करने वाली देवी और चूहों वाली माता के मंदिर शामिल हैं, अमर उजाला दर्शन करवा रहा है। 

1. त्रिपुर सुंदरी शक्तिपीठ मंदिर, बांसवाड़ा 
दक्षिण राजस्थान में आदिवासी बाहुल्य जिले बांसवाड़ा में सिद्ध माता श्री त्रिपुर सुंदरी का शक्तिपीठ मंदिर है,  जो 52 शक्तिपीठों में से एक है। मान्यता है कि मंदिर में मांगी गई मनोकामनाएं देवी पूर्ण करती हैं, यही वजह है कि आमजन से लेकर नेता तक मां के दरबार में पहुंचकर हाजिरी लगाते हैं।  

बांसवाड़ा जिले से 18 किलोमीटर दूर तलवाड़ा गांव में अरावली पर्वतामाला के बीच माता त्रिपुरा सुंदरी का भव्य मंदिर है। मुख्य मंदिर के द्वार के किवाड़ चांदी के बने हैं। मां भगवती त्रिपुरा सुंदरी की मूर्ति अष्टदश यानी 18 भुजाओं वाली है। मूर्ति में माता दुर्गा के 9 रूपों की प्रतिकृतियां अंकित हैं। मां सिंह, मयूर और कमल आसन पर विराजमान हैं। नवरात्र में त्रिपुर सुंदरी मंदिर के दर्शनों के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है, यहां मेले जैसा माहौल रहता है। 

 

पीएम, सीएम तक लगाते हैं हाजिरी 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी, पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, पूर्व सीएम हरिदेव जोशी, सीएम अशोक गहलोत, पूर्व सीएम वसुंधरा राजे समेत कई बड़े नेता, सांसद, विधायक, मंत्री माता के मंदिर में दर्शन करने पहुंचते रहे हैं। बांसवाड़ा में चुनावी रैलियों की शुरूआत ही माता के मंदिर के दर्शन के बाद नेता करते हैं।  

गुजरात, मालवा और मारवाड़ के शासक त्रिपुरा सुंदरी शक्तिपीठ के उपासक रहे 
इस मंदिर के उत्तरी भाग में सम्राट कनिष्क के समय का एक शिवलिंग है। मान्यता है कि यह स्थान कनिष्क के पूर्व-काल से ही प्रतिष्ठित रहा होगा। वहीं कुछ विद्वान देवी मां की शक्तिपीठ का अस्तित्व यहां तीसरी सदी से पूर्व मानते हैं। उनका कहना है कि पहले यहां ‘गढ़पोली’ नामक एक ऐतिहासिक नगर था। ‘गढपोली’ का अर्थ -दुर्गापुर है। माना जाता है कि गुजरात, मालवा और मारवाड़ के शासक त्रिपुरा सुंदरी के उपासक रहे थे।

कैला देवी मंदिर

2. कैला देवी मंदिर, शक्तिपीठ, करौली 
करौली जिले में कैला देवी मंदिर सैकड़ों सालों पुराना मंदिर है। इस प्राचीन मंदिर में चांदी की चौकी पर स्वर्ण छतरियों के नीचे दो प्रतिमाएं हैं।  एक बाईं ओर है, उसका मुंह कुछ टेढ़ा है, वो ही कैला मइया हैं, दाहिनी ओर दूसरी माता चामुंडा देवी की प्रतिमा है। कैला देवी की अष्ट भुजाएं हैं।  इस मंदिर को उत्तर भारत के प्रमुख शक्तिपीठ के रूप में ख्याति प्राप्त है। इस मंदिर से जुड़ी अनेक कथाएं यहां प्रचलित हैं। 



माना जाता है कि भगवान कृष्ण के पिता वासुदेव और देवकी को जेल में डालकर जिस कन्या योगमाया का वध कंस ने करना चाहा था, वह योगमाया कैला देवी के रूप में इस मंदिर में विराजमान है। मंदिर के पास में मौजूद कालीसिल नदी भी चमत्कारिक नदी कही जाती है। कैला देवी मंदिर करौली जिले से 30 और हिंडौन रेलवे स्टेशन से 56 किलोमीटर दूरी पर है। नवरात्र में यहां भी दूर दूर से श्रद्धालु माता के मंदिर में दर्शन करने पहुंचते हैं।

श्री करणी माता मंदिर

3. श्री करणी माता मंदिर, देशनोक, बीकानेर 
पश्चिमी राजस्थान में बीकानेर के देशनोक में करणी माता का प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर में बड़ी संख्या में चूहे रहते हैं इसलिए इसे चूहे वाली माता का मंदिर या रैट टैम्पल भी कहा जाता है। मान्यता है कि इन चूहों में भी कुछ चूहे सफेद हैं। मंदिर में  सफेद चूहों को देखना अति शुभ माना जाता है। ये देवी का चमत्कार ही माना जाता है कि इतने सारी चूहे होने के बावजूद आज तक यहां कोई बीमारी नहीं फैली। नवरात्र पर  यहां भारी संख्या में श्रद्धालु दर्शन और मनोकामना लेकर पहुंचते हैं।देशनोक करणी माता का मंदिर संभवतया देश का ऐसा इकलौता मंदिर है जहां पर करीब 20 हजार चूहे भी रहते हैं। सफेद चूहों को मां करणी का वाहक माना जाता है। 



बीकानेर राजघराने की कुलदेवी हैं मां करणी 
करणी माता बीकानेर राजघराने की कुलदेवी हैं। करणी माता के वर्तमान मंदिर का निर्माण बीकानेर रियासत के महाराजा गंगा सिंह ने करवाया था। इस मंदिर में चूहों के अलावा संगमरमर के मुख्य द्वार पर की गई उत्कृष्ट कारीगरी, मुख्य द्वार पर लगे चांदी के बड़े-बड़े किवाड़, माता के सोने के छत्र और चूहों के प्रसाद के लिए रखी चांदी की बहुत बड़ी परात भी मुख्य आकर्षण का केंद्र हैं। श्रद्धालुओं का मत है कि करणी देवी साक्षात मां जगदम्बा की अवतार थीं। 

करीब 650 वर्ष पूर्व जिस स्थान पर यह भव्य मंदिर है, वहां एक गुफा में रहकर मां अपने ईष्ट देव की पूजा अर्चना किया करती थीं। यह गुफा आज भी मंदिर परिसर में स्थित है। मां के ज्योर्तिलीन होने पर उनकी इच्छानुसार उनकी मूर्ति की इस गुफा में स्थापना की गई। बताते हैं मां करणी के आशीर्वाद से ही बीकानेर और जोधपुर राज्य की स्थापना की गई थी। यह प्रसिद्ध मंदिर बीकानेर रेलवे स्टेशन से करीब 30 किलोमीटर है। यहां सड़क और रेल मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है।

श्री शिला मातामंदिर

4. श्री शिला माता मंदिर, आमेर 
जयपुर के राजपरिवार के कछवाहा वंश की आराध्य देवी रहीं शिला माता आजादी के बाद जयपुरवासियों की प्रमुख शक्तिपीठ हैं। इस मंदिर की बहुत महिमा है और इसे चमत्कारिक भी कहा जाता है। यह तंत्र साधकों और उपासकों में भी प्रसिद्ध हैं। जयपुर की स्थापना से पहले आमेर रियासत थी, जहां के प्रतापी शासक राजा मानसिंह प्रथम ने शिला माता के आशीर्वाद से ही मुगल शासक अकबर के प्रधान सेनापति रहते हुए 80 से ज्यादा युद्ध में विजय हासिल की। आमेर महल परिसर में स्थित शिला माता मंदिर में आजादी से पहले तक सिर्फ राजपरिवार के सदस्य और प्रमुख सामंत-जागीरदार ही दर्शन कर पाते थे, अब रोजाना सैकड़ों भक्त माता के दर्शन करते हैं। 

नवरात्र में तो माता के दर्शनों के लिए लम्बी कतारें लगती हैं और छठ के दिन मेला भरता है। जयपुर के प्राचीन प्रमुख मंदिरों में शुमार इस शक्तिपीठ की प्रतिस्थापना पन्द्रहवीं शताब्दी में तत्कालीन आमेर के शासक राजा मानसिंह प्रथम ने की। मंदिर का मुख्य द्वार चांदी का बना हुआ है। इस पर नवदुर्गा शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कुष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी एवं सिद्धिदात्री उत्कीर्ण है। दस महाविद्याओं के रूप में काली, तारा, षोडशी, भुनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुर, भैंरवी, धूमावती, बगुलामुखी, मातंगी और कमला चित्रित है। दरवाजे के ऊपर लाल पत्थर की गणेशजी की मूर्ति प्रतिष्ठित है। द्वार के सामने चांदी का नगाड़ा रखा हुआ है। प्रवेश द्वार के पास दायीं ओर महालक्ष्मी और  बायीं ओर महाकाली के चित्र उत्कीर्ण हैं। 

शिला रूप में मिलने के कारण शिलादेवी कहलाईं 
ऐसी धार्मिक मान्यता है कि शिला माता की प्रतिमा एक शिला के रुप में मिली थी। 1580 ईस्वी में इस शिला को आम्बेर के शासक राजा मानसिंह प्रथम बंगाल के जसोर राज्य पर जीत के बाद वहां से इसे लेकर आमेर आए थे।  यहां प्रमुख शिल्प कलाकारों से महिषासुर मर्दन करते माता के रूप में उत्कीर्ण करवाया। इस बारे में जयपुर में एक कहावत भी बहुत प्रचलित में है-सांगानेर को सांगो बाबो, जैपुर को हनुमान, आमेर की शिला देवी लायो राजा मान। 

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श्री चामुण्डा माता मंदिर

5. श्री चामुण्डा माता मंदिर, मेहरानगढ़, जोधपुर 
जोधपुर का चामुंडा माता मंदिर शाही परिवार की ईष्ट देवी का मंदिर है।  यह मेहरानगढ़ किले के दक्षिणी भाग में स्थित है। जोधपुर शहर के संस्थापक राव जोधा ने 1460 में मंदोरे की पुरानी राजधानी से अपनी प्रिय देवी चामुंडा की मूर्ति खरीदी थी। उन्होंने मेहरानगढ़ किले में चामुंडा देवी की मूर्ति को स्थापित किया था और तब से चामुंडा यहाँ देवी बन गयी थी। जोधपुर शहर के बाहर और अंदर से आने वाले लोगो द्वारा पूजा की जाती है, दशहरा के समय, किला लोगों और भक्तों से भर जाता है। 



देवी चामुंडा राजपूतों की मुख्य देवी हैं 
मेहरानगढ़ किले जोधपुर में स्थित, मंदिर राव जोधा द्वारा उस समय बनाया गया था जब वह किले का निर्माण कर रहे थे। वह पहाड़ी जहां उन्होंने इस किले का निर्माण करने के लिए चुना था,वह हरमीत भट्ट द्वारा अधिकृत किया गया था। उनको वहां से निकाल दिया, तो उन्होंने राजा को  श्राप दिया कि उनके किले में हमेशा पानी की कमी रहेगी। संत ने इस श्राप से बचने के लिए और उससे लोगों की रक्षा करने  के लिए किले के अंदर चामुंडा माता का मंदिर बनाया और तभी से देवी चामुंडा राजपूतों की मुख्य देवी हैं।

श्री जीण माता मंदिर

6. श्री जीण माता मंदिर, सीकर 
शेखावाटी क्षेत्र के सीकर जिले में स्थित जीण माता मंदिर लोगों के बीच बहुत प्रसिद्ध धाम है। नवरात्रों में यहां बहुत बड़ा मेला भरता है। शेखावाटी इलाके में सीकर-जयपुर रोड पर जीणमाता गांव में मां का बेहद प्राचीन मंदिर भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। ये मंदिर ना सिर्फ खूबसूरत जंगल के बीचोबीच बना है बल्कि तीन छोटी पहाड़ियों के बीच स्थित है। देश के प्राचीन शक्तिपीठों में से एक जीण माता मंदिर दक्षिणमुखी है। मंदिर की दीवारों पर तांत्रिकों की मूर्तियां लगी हैं जो बताती हैं कि पहले कभी ये तांत्रिकों की साधना का केंद्र रहा होगा। मंदिर के अंदर जीण भगवती की अष्टभुजी प्रतिमा है। पहाड़ के नीचे स्थित मंडप को गुफा कहा जाता है। 

मान्यताओं के मुताबिक जीण माता ने राजस्थान के चूरू में घांघू गांव के एक राजघराने में जन्म लिया था। मां शक्ति का अवतार माना गया और उनके बड़े भाई हर्ष को भगवन शिव का अवतार कहा जाता है। कथाओं के मुताबिक एक बार दोनों भाई-बहन के बीच विवाद हुआ और मां ने इस स्थान पर आकर तपस्या शुरू कर दी। 

बहन के रुठ जाने से परेशान भाई हर्ष भी पीछे-पीछे यहां पहुंच गए और बहन को मनाने की तमाम कोशिश की लेकिन उनके हाथ निराशा ही लगी। जिसके बाद वो भी पास के ही एक स्थान पर तपस्या करने लगे। इस स्थान पर अपरावली की पहाड़ियों के बीच हर्षनाथ का मंदिर है। मुगल बादशाह औरंगजेब की सेना ने जब शेखावटी के मंदिरों में तोड़फोड़ शुरू की तो लोगों ने मां जीणमाता से गुहार लगाई। 

मां ने अपने चमत्कार से औरंगजेब की सेना पर मधुमक्खियों की विशाल सेना छोड़ दी। जिससे लहूलुहान होकर औरंगजेब के सैनिक भाग खड़े हुए, मान्यता है कि औरंगजेब ने मां से क्षमायाचना की और मंदिर में अखंड दीप के लिए तेल भेजने का वचन दिया। जिसके बाद दिल्ली से और फिर जयपुर से दीपक के लिए तेल की व्यवस्था की जाती रही। इस चमत्कार के बाद जीणमाता भंवरों की देवी कही जाने लगीं।

अर्बुदा देवी मंदिर

 7. अर्बुदा देवी मंदिर, शक्तिपीठ , माउंट आबू 
राजस्थान के माउंट आबू में अर्बुदा देवी मंदिर है।  अर्बुदा देवी मंदिर को अधर देवी शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है। मंदिर राजस्थान के माउंटआबू से 3 कि.मी. दूर एक पहाड़ी पर स्थित है। माना जाता है की यहां माना देवी पार्वती के होंठ गिरे थे,इसलिए यहां शक्तिपीठ स्थापित हुआ। यहां मां अर्बुदा देवी की पूजा माता कात्यायनी देवी के रूप में की जाती है,क्योंकि अर्बुदा देवी मां कात्यायनी का ही स्वरुप कहलाती हैं। यूं तो यहां सालभर भक्तों की भीड़ लगी रहती है,लेकिन नवरात्रि में यहां भक्तों का सैलाब उमड़ता है।  

देवी और पादुका दर्शन से मोक्ष प्राप्ति होती है 
कहा जाता है कि यहां देवी दर्शन मात्र से ही भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। मां के दर्शन के लिए भक्त यहां सैकड़ों मीटर की यात्रा करके लगभग 350 सीढ़ियां चढ़कर दर्शन के लिए आते हैं। यह मंदिर एक प्राकृतिक गुफा में प्रतिष्ठित है। गुफा के भीतर निरंतर दीपक जलता रहता है और इसी के प्रकाश से भगवती के दर्शन होते हैं। वहीं मंदिर की स्थापना साढ़े 5 हजार साल पहले हुई थी। माना जाता है की माता के दर्शन मात्र से व्यक्ति को प्रत्येक दुखों से मुक्ति मिल जाती है और भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। मंदिर में अर्बुदा देवी का चरण पादुका मंदिर भी स्थित है। माता के चरण पादुका के नीचे उन्होंने बासकली राक्षस का संहार किया था। मां कात्यायनी के बासकली वध की कथा पुराणों में मिलती है।

ईडाणा माता मंदिर

8. ईडाणा माता मंदिर, उदयपुर 
राजस्थान के गौरवशाली मेवाड़ के सबसे प्रमुख शक्ति पीठों में से एक ईडाणा माता मंदिर में खुश होने पर माता स्वयं ही अग्नि स्नान करती हैं। यह मंदिर उदयपुर शहर से 60 किमी दूर कुराबड-बम्बोरा मार्ग पर अरावली की विस्तृत पहाड़ियों के बीच स्थित है। ईडाणा माता राजपूत समुदाय, भील आदिवासी समुदाय सहित संपूर्ण मेवाड़ की आराध्य मां हैं। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण महाभारत काल में हुआ था। कई रहस्यों को अपने अंदर समेटे हुए इस मंदिर में नवरात्र के दौरान भक्तों की भीड़ होती है। 

रहस्यमयी तरीके से खुद अग्नि स्नान करती हैं मां 
ईडाणा माता का अग्नि स्नान देखने के लिए हर साल भारी संख्या में भक्त यहां पहुंचते हैं। अग्नि स्नान की एक झलक पाने के लिए भक्त घंटों इंतजार करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इसी समय देवी का आशीर्वाद भक्तों को प्राप्त होता है। प्राचीन समय में यहां के राजा ईडाणा माता को अपनी कुलदेवी के रूप में पूजते आए हैं। यहां दूर दूर से भक्त और सैलानी दर्शन करने पहुंचते हैं।

अन्नपूर्णा माता मंदिर

9.श्री कृष्णाई अन्नपूर्णा माताजी मंदिर, बारां 
यह मंदिर बारां से करीब 40 किलोमीटर दूर रामगढ़ की पहाड़ी पर है। प्रसिद्ध रामगढ़ क्रेटर का बड़ा गड्ढा भी इसके पास है,जो कभी उल्कापिंड गिरने से बना था। यहां 900 सीढ़ियां चढ़कर मंदिर के दर्शन किए जाते हैं, जो घुमावदार हैं। जो ग्राउंड लेवल से 1000 फीट की ऊंचाई पर पहाड़ी पर स्थित है। मान्यता है कि माता एक गुफा से स्वयं प्रकट हुई थीं। यहां मां दुर्गा कन्या स्वरूप में हैं। नवरात्र में कन्या पूजन या कंजके पूजन का बड़ा महत्व माना गया है। जयपुर और कोटा रियासत के बीच युद्ध के बाद इस मंदिर का निर्माण करवाया गया था। नवरात्र पर लोग दूर-दूर से मंदिर में दर्शन करने पहुंच रहे हैं।

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