मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में हुई बम्पर वोटिंग के क्या हैं मायने? जानें विश्लेषकों की राय
पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव का खुमार चरम पर है। मणिपुर, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में मतदान हो चुका है। वहीं, 25 नवंबर को राजस्थान और 30 नवंबर को तेलंगना में मतदान होना है। चुनाव प्रचार के साथ राजनीतिक दलों का एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी जारी है। इन सब के बीच शुक्रवार को मध्य प्रदेश में हुए रिकॉर्ड मतदान के भी मायने निकाले जा रहे हैं।
चुनाव के दौर में लग रहे आरोप-प्रत्यारोप से लेकर मतदान प्रतिशत तक के क्या मायने हैं? इस बार के खबरों के खिलाड़ी में इस पर चर्चा हुई। वरिष्ठ पत्रकार रामकृपाल सिंह, विनोद अग्निहोत्री, हर्षवर्धन त्रिपाठी, प्रेम कुमार, अवधेश कुमार, समीर चौगांवकर और गीता भट्ट इस चर्चा में मौजूद रहे।
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में हुई बम्पर वोटिंग के क्या मायने हैं?
विनोद अग्निहोत्री: पिछले 10-15 साल का ट्रेंड रहा है कि बम्पर मतदान के बाद सरकारें रिपीट भी हुई हैं और बदली भी हैं। ऐसे में यह कहना कि बम्पर वोटिंग का यही एक मतलब है वो गलत होगा। दरअसल, बीते कुछ समय में चुनाव आयोग, चर्चित हस्तियों ने जिस तरह से लोगों को जागरुक किया है, वह एक बड़ा कारण है इस तरह की वोटिंग का। मध्य प्रदेश में 2003 से अब तक हर बार मतदान बढ़ा है। 2003 में सरकार बदली, लेकिन 2008 और 2013 में सरकार बनी रही। वहीं, 2018 में सरकार बदल गई।
रामकृपाल सिंह: समाज में लगातार परिवर्तन होता रहता है। कोई भी चीज स्थाई नहीं है। किसी व्यक्ति के सामाजिक, आर्थिक और राजनीति सरोकार क्या हैं, यह भी देखना चाहिए। पहले मतदाता को राज्य सरकार दिखती थी। अब जब वह उठता है, तब से लेकर सोने तक उसे केंद्र की योजनाएं दिखाई देती हैं। कुल मिलाकर जैसे परीक्षा में केवल एक सवाल का जवाब देकर आप पास नहीं हो सकते, वैसे ही चुनाव में भी कोई एक मुद्दा आपको नहीं जिता सकता है।
मतदाता के समाने निजी हित, समाहिक हित, राष्ट्र हित और स्थायित्व यह चार सवाल होते हैं। बीते कई वर्षों से मतदाता इन्हीं चार चीजों को देखकर वोट करता है। मतदाता के जीवन में बहुत बदलाव हुए हैं। जिस तरह से पूरी दुनिया में बदलाव हो रहे हैं। लोकतंत्र पहले की तुलना में मजबूत हो रहा है। पहले किसी के ड्रॉइंग रूम में राजनीति पर बात नहीं होती थी। लेकिन, आज बस से लेकर बाजार तक सब जगह राजनीति पर बात होती है। नतीजा कुछ भी आए ये भारत के लोकतंत्र के लिए अच्छी बात है।
क्या मुद्दों ने भी लोगों को प्रभावित किया है?
हर्षवर्धन त्रिपाठी: सबसे पहले इसके लिए चुनाव आयोग को बधाई देनी चाहिए। मध्य प्रदेश के संदर्भ में कहा जाता था कि नाराज भाजपा, महाराजा भाजपा और शिवराज भाजपा, अगर यह सही होता तो भाजपा का मतदाता मतदान स्थल तक नहीं जाता। इस बंपर मतदान का मतलब है कि नाराज भाजपा, महाराजा भाजपा और शिवराज भाजपा का कोई असर नहीं था। मतदान में महिलाओं की लंबी कतारें दिखीं। इसका मतलब है कि जो उनके घर पर असर डालते हैं उन्हीं मुद्दों पर मतदान हुआ है।
प्रेम कुमार: आजादी के 75 साल बाद भी 118 करोड़ योग्य मतदाताओं में केवल 94 करोड़ पंजीकृत हैं। ऐसे में चुनाव आयोग पर एक बड़ा प्रश्न चिह्न लगता है। वोट प्रतिशत बढ़ने के बाद 2018 में सरकार बदल गई। इस बार भी एग्रेसिव वोटिंग हुई है। ऐसे में मुझे लगता है कि राज्य में बदलाव हो रहा है। महिलाओं का वोट प्रतिशत बढ़ जाने से भाजपा को उम्मीद है कि उसे लाड़ली बहना योजना का फायदा होगा। लेकिन, जिन सात जिलों में महिला मतदाता ज्यादा हैं उनमें से तीन में औसत से कम मतदान हुआ है। वहीं, चार में औसत से ज्यादा मतदान हुआ है। ऐसे में कह सकते हैं कि मामला बिल्कुल कांटे का है।
क्या यह चुनाव महिला केंद्रित हो गया है?
गीता भट्ट: आप क्या देखना चाहते हैं ये आप पर निर्भर करता है। आप ये दखेना चाहते हैं कि ग्लास तीन चौथाई भर गया है या एक चौथाई खाली है। ऐसा ही मामला चुनाव आयोग है। महिलाओं के अंदर अपने मताधिकार को लेकर जागरुकता आई है। महिलाओं ने जाति और पंत से ऊपर उभर कर महिला वर्ग के रूप में अपनी पहचान बनाई है। महिलाओं ने खुद से जुड़े मुद्दों के आधार पर वोटिंग की है। मध्य प्रदेश में लाड़ली बहना और लाड़ली लक्ष्मी जैसी योजनाओं की सकारात्मक भूमिका रही है।
समीर चौगांवकर: मुझे लगता है कि यह चुनाव पूरी तरह से महिला केंद्रित रहा है। चाहे राजस्थान हो या मध्य प्रदेश, दोनों जगह चुनाव पूरी तरह महिलाओं पर केंद्रित रहा है। महिला आरक्षण कानून आने के बाद मुझे उम्मीद थी कि इस बार महिला उम्मीदवारों की संख्या भी बढ़ेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यह एक निराशजनक बात रही है। मेरी कई लोगों से बात हुई। ज्यादातर लोगों ने कहा कि आदिवासी क्षेत्रों में हुई वोटिंग हुई है। भाजपा से जुड़े लोगों का मानना है कि इसका उन्हें फायदा हो रहा है।
आदिवासी बहुल इलाकों में हुई भारी वोटिंग के क्या मयाने हैं?
अवधेश कुमार: चुनाव के दौरान कुछ ऐसे मुद्दे होते हैं कि जो चुनाव की प्रवृत्ति तय करते हैं। चुनाव से पहले अगर भाजपा ने नारी सम्मान वंदन कानून बना दिया उसका असर तो होगा। पीएम मोदी ने जो पहला कार्यक्रम किया उससे भी भाजपा ने संदेश देने की कोशिश की। कांग्रेस ने चुनाव में हिन्दुत्व के मुद्दे पर भाजपा मात देने की कोशिश की। इन सब का चुनाव में असर पड़ा होगा। दोनों जगह के मतदान में इसका असर पड़ा है। कुल मिलाकर यह दिख रहा है कि दोनों राज्यों के मतदाता बड़ी संख्या में निकलकर आए हैं। इसमें दोनों तरह के मतदाता शामिल हैं। इसमें वो भी जो हर हाल में भाजपा को हराना चाहते हैं। दूसरी ओर वो भी हैं जो हर हाल में भाजपा को जिताना चाहते हैं। इस बार मध्य प्रदेश में जितनी हिंसा हुई है, वह बहुत कम देखने को मिलता है। यह बहुत हैरत में डालने वाली बात है।