पति की क्रूरता और विवाहेतर संबंधों पर पत्नी को भी तलाक का होगा हक, महिलाओं को समान अधिकारों की वकालत

पति की क्रूरता और विवाहेतर संबंधों पर पत्नी को भी तलाक का होगा हक, महिलाओं को समान अधिकारों की वकालत
X

समान नागरिक संहिता में पति के साथ पत्नी को भी बराबर का अधिकार दिया गया है। पति की तरह अब पत्नी चाहेगी तो पति से तलाक ले सकेगी। तलाक के लिए पति की एक से अधिक पत्नी, दुष्कर्म का दोषी होने के साथ ही क्रूरता, किसी अन्य के साथ विवाहेतर संबंध या लगातार दो वर्ष तक दूरी बनाकर रखना भी आधार बन सकता है।


प्रस्तावित कानून के प्रावधानों के मुताबिक, नपुंसकता या जानबूझकर यौन संबंध नहीं बनाने पर विवाह शून्य हो जाएगा। इसके अलावा, याचिकाकर्ता की सहमति बलपूर्वक या धोखाधड़ी से लेने पर, विवाह के समय पत्नी के किसी अन्य पुरुष से गर्भवती होने या पति ने विवाह के समय पत्नी के अलावा किसी अन्य महिला को गर्भवती किया हो तब भी विवाह शून्य माना जाएगा। पति या पत्नी ने धर्म परिवर्तन कर लिया हो, पति या पत्नी मानसिक विकार या असाध्य संचारी यौन रोग से पीड़ित हो, तो ऐसी स्थिति में भी विवाह को शून्य माना जाएगा।

पत्नी इस आधार पर ले सकती है तलाक पति विवाह के बाद दुष्कर्म या किसी अन्य प्रकार के अप्राकृतिक यौन संबंध के अपराध का दोषी रहा हो। यूसीसी लागू होने से पहले पति की एक से अधिक पत्नियां हों। पति-पत्नी मिलकर इस आधार पर तलाक की याचिका प्रस्तुत कर सकेंगे, कि वे एक वर्ष या उससे अधिक समय से अलग-अलग रह रहे हैं। वे एक साथ नहीं रह सके हैं और वे इस बात पर परस्पर सहमत हों कि विवाह का विघटन किया जाना चाहिए। याचिका प्रस्तुत करने के छह माह के बाद और उस तिथि से 18 माह के पूर्व दोनों पक्षकारों की ओर से किए गए प्रस्ताव पर अगर याचिका वापस नहीं ली गई हो। न्यायालय पक्षकारों को सुनने व जांच के बाद तलाक का आदेश जारी कर देगा।

उत्तराधिकार
समान नागरिक संहिता में बेटा और बेटी को बराबर अधिकार दिए गए हैं। इतना ही नहीं, गर्भस्थ बच्चे को भी वसीयत करने वाले व्यक्ति की मृत्यु के समय से ही उसका उत्तराधिकारी माना जाएगा। विधानसभा के पटल पर पेश समान नागरिक संहिता में स्पष्ट किया गया कि किसी व्यक्ति की मृत्यु के उपरांत उसकी संपत्ति का उत्तराधिकारी कौन होगा। इसे दो प्रमुख श्रेणियों में बांटा गया है।
पहली श्रेणी : पति/पत्नी, बच्चे, पूर्व मृत बच्चों के बच्चे व उनके पति/पत्नी, पूर्व-मृत बच्चों के पूर्व-मृत बच्चे व उनके पति/पत्नी और माता-पिता से होगा
दूसरी श्रेणी : दूसरी श्रेणी में सौतेले माता/पिता, भाई/बहन, पूर्व-मृत भाई/बहन के बच्चे व उनके पति/पत्नी, माता/पिता के भाई/बहन, दादा/दादी और नाना/नानी


उत्तराधिकारियों में ऐसे होगा संपत्ति का बंटवारा
श्रेणी एक के उत्तराधिकारी एक साथ उत्तराधिकार प्राप्त करेंगे। मृतक का प्रत्येक जीवित पति/पत्नी एक-एक अंश लेगा। प्रत्येक जीवित बच्चा एक-एक अंश। प्रत्येक पूर्व मृत बच्चे का एक अंश। पूर्व मृत बच्चे की शाखा को न्यायगत होने वाला अंश प्रत्येक जीवित पति/पत्नी, जीवित बच्चे और पूर्व-मृत बच्चे के पूर्व-मृत बच्चे के मध्य समान रूप से बंटेगा। 
ऐसी स्थिति में उत्तराधिकारी नहीं होंगे : मृत नातेदार की विधवा या विधुर ने इच्छापत्र रहित मृतक के जीवनकाल में पुनर्विवाह कर लिया हो, वहां ऐसी विधवा या विधुर संपदा का उत्तराधिकारी नहीं होगा।

प्रथा, रूढ़ि और परंपरा के तहत तलाक मान्य नहीं
यूसीसी में स्पष्ट किया गया कि इस अधिनियम के अलावा किसी अन्य प्रथा, रूढ़ि, परंपरा के तहत तलाक मान्य नहीं होगा। किसी प्रथा, रुढ़ी या परंपरा के तहत तलाक देने पर तीन साल की जेल और जुर्माना होगा। पूर्व की पत्नी होने के बावजूद पुनर्विवाह करने पर तीन वर्ष की जेल, एक लाख रुपये तक जुर्माना और सजा छह माह तक बढ़ाई जा सकती है।

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा-ऐसे किसी संहिता की जरूरत नहीं
विधेयक पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने आपत्ति जताई है। बोर्ड के कार्यकारी सदस्य मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने समान नागरिक संहिता की प्रकृति पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा, जहां तक यूसीसी का सवाल है, हमारी राय है कि हर कानून में एकरूपता नहीं लाई जा सकती। अगर आप किसी समुदाय को यूसीसी से छूट देते हैं, तो इसे एक समान कोड कैसे कहा जा सकता है? ऐसे किसी समान नागरिक संहिता की कोई जरूरत नहीं है। उन्होंने आगे कहा, विधानसभा के समक्ष मसौदा पेश होने के बाद बोर्ड की कानूनी टीम इसकी गहन जांच करेगी। इसके बाद वे आगे की कार्रवाई के बारे में फैसला करेंगे।

मुस्लिमों को इस्लाम से दूर करने का प्रयास : ओवैसी
एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि यह मुस्लिमों को इस्लाम से दूर करने का प्रयास है। हम शुरुआत से ही समान नागरिक संहिता का विरोध कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर, एआईएमआईएम प्रवक्ता सैयद आसिम वकार ने इंडिया टीवी के एक कार्यक्रम में कहा, जो राज्य दर राज्य लागू हो रहा है वो यूसीसी कैसे हो गया? उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, गोवा और सभी राज्यों में अलग कानून है, यह पूरे भारत में लागू नहीं हो रहा है वो तो क्षेत्रीय कानून है। हमें गुमराह मत कीजिए। भारत सरकार अगर करना चाहती है तो यूसीसी लागू करे। उत्तराखंड से इसका क्या मतलब है।

सहमति संबंध...कोई भी साथी खुद कर सकेगा रिश्ते को खत्म
सहमति संबंध में आने के बाद एक माह के भीतर अगर पंजीकरण नहीं कराया तो कानून सजा देगा। समान नागरिक संहिता में इसके प्रावधान किए गए हैं। वहीं, सहमति संबंध के दोनों साथियों में से कोई भी इस रिश्ते को खत्म कर सकता है, जिसकी सूचना सब रजिस्ट्रार को देनी होगी। यूसीसी में लिव इन रिलेशनशिप को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। इसके मुताबिक, सिर्फ एक वयस्क पुरुष व वयस्क महिला ही लिव इन रिलेशनशिप में रह सकेंगे। वे पहले से विवाहित या किसी अन्य के साथ लिव इन रिलेशनशिप या प्रोहिबिटेड डिग्रीस ऑफ रिलेशनशिप में नहीं होने चाहिए।

Next Story