एक दीपक तुम जलाओ, एक दीपक हम जलाएं

एक दीपक तुम जलाओ, एक दीपक हम जलाएं
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रश्मियों को आज फिर,आकर अंधेरा छल न जाए,और सपनों का सवेरा,व्यर्थ हो निकल न जाए।हम अंधेरों का अमंगल,दूर अंबर से हटाएं,एक दीपक तुम जलाओ,एक दीपक हम जलाएं।आंधियां मुखिरत हुई हैं,वेदना के हाथ गहकर,और होता है सबलतम,वेग उनका साथ बहकर।झिलमिलाती रश्मियों की,अस्मिता को फिर बचाएं,एक दीपक तुम जलाओ,एक दीपक हम जलाएं।

 

 

अब क्षितिज पर हम उगाएं,
स्वर्ण से मंडित सवेरा,
और धरती पर बसाएं,
शांति का सुखमय बसेरा।
हम कलह को भूल कर सब,
नव-सुमंगल गीत गाएं,
एक दीपक तुम जलाओ,
एक दीपक हम जलाएं।

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