आपको पता भी नहीं चलेगा और आधार कार्ड बन जाएगा, नोएडा के इस गैंग की करतूत जान रह जाएंगे हैरान
नोएडा: उत्तर प्रदेश के नोएडा में एक ऐसे गैंग का पर्दाफाश हुआ है, जो फर्जी आधार कार्ड निर्माण कराने का कार्य करते थे। रविवार को शहर के सात लोगों को गिरफ्तार किया। उनसे पूछताछ में बड़ा खुलासा हुआ है। फर्जी आधार कार्ड बनाने वाले गिरोह चलाने वाले तीन और चार ग्राहकों को गिरफ्तार किया गया है। दावा किया जा रहा है कि फर्जीवाड़ा करने वाला गैंग एक कार्ड बनाने के लिए 15 से 20 हजार रुपए प्रति ग्राहक से वसूलता था। जालसाजी को अंजाम देने वाले गिरोह पर कथित तौर से यूआईडीएआई प्रणाली में छेड़छाड़ का आरोप लगा है। टो प्रिंट का उपयोग करके फर्जी आधार नंबर जेनरेट किया गया। फर्जीवाड़ा गिरोह ने अपने ग्राहकों से बायोमेट्रिक्स एकत्र किए और रेटिना स्कैन में हेरफेर किया। इसके जरिए उन्होंने नए आधार नंबर बनाने के लिए यूआईडीएआई डेटाबेस पर नए डेटा को अपलोड किया। जांच में पाया गया है कि फर्जीवाड़ा गिरोह की ओर से जारी किए गए आधार संख्या नकली नहीं है, लेकिन नाम और पता जैसे अन्य विवरण हैं। इस गिरोह की कारस्तानी ने साफ कर दिया है कि ये लोग यूआईडीएआई के डेटाबेस तक पहुंच रखते थे। उसमें छेड़छाड़ करते थे। इस प्रकार की स्थिति में लोगों को सचेत किया जा रहा है कि वे अपने आधार कार्ड विवरण या इससे जुड़े फोन नंबर को सार्वजनिक करने से बचें। किसी प्रकार की ओटीपी किसी भी व्यक्ति को शेयर न करें, अन्यथा कोई फर्जीवाड़ा गिरोह आपके नाम पर फर्जी आधार कार्ड बनाकर आपके नाम कई फर्जीवाड़े कर सकता है।
फर्जी आधार कार्ड रैकेट कैसे काम करता है? इस संबंध में पूछताछ में बड़ा खुलासा है। इसको उदाहरण के जरिए समझिए। सतीश नाम का एक व्यक्ति है, जिसका सिबिल स्कोर खराब है। सिबिल स्कोर तीन अंकों की संख्या होती है जो किसी भी व्यक्ति के क्रेडिट स्कोर को दर्शाती है। सिबिल स्कोर बेहतर रहने की स्थिति में ही लोन आवेदन को अप्रूवल मिलता है। सतीश को लोन की जरूरत है, लेकिन खराब सिबिल स्कोर ने उसकी चिंता बढ़ा रखी है। ऐसे में वह नए आधार नंबर बनाने वाले गिरोह के बारे में जानता है। उनसे संपर्क करता है। रैकेट सतीश का नाम बदलकर सुरेश कर देता है। इसके अलावा उसके पता में बदलाव कर देता है। गिरोह बायोमेट्रिक्स डेटा में हेरफेर कर देता है। रैकेट सतीश के लिए सुरेश के नाम से एक नया आधार कार्ड बनाता है।
मामले की जांच कर रहे अधिकारियों का कहना है कि यह सब कैसे हुआ? इस बारे में तुरंत कुछ समझ में नहीं आया। ग्राहकों को जारी किए गए आधार नंबर सही लग रहे थे। इसके बाद यूआईडीएआई के वेबसाइट पर इन आधार नंबरों को डालकर जांच की गई। वे आधार वेबसाइट से मेल खाते हैं।