‘पत्नी निजी संपत्ति नहीं, गुलाम बनाने की मानसिकता से बाहर निकलें पति’, हाईकोर्ट की टिप्पणी
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि पत्नी निजी संपत्ति नहीं है, पति विक्टोरियन युग की मानसिकता त्याग दें। अब दौर बदल गया है, पत्नी का शरीर, उसका अंतरंग जीवन और उसके अधिकार अपने हैं। पति उनका मालिक नहीं है। यह टिप्पणी न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की एकल पीठ ने मिर्जापुर के बृजेश यादव की ओर से जिला अदालत में लंबित आपराधिक कार्यवाही को चुनौती देने वाली याचिका पर दी है।
मामला मिर्जापुर की चुनार कोतवाली थाना क्षेत्र का है। रोशनहर -अहरौरा निवासी बृजेश यादव की शादी रामपुर कोलना में हुई थी। नौ जुलाई 2023 को पत्नी ने बृजेश के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया। आरोप लगाया कि उसने मुकदमेबाजी की रंजिश में उसके अंतरंग वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल कर दिए। पुलिस ने विवेचना के बाद पति के खिलाफ ट्रायल कोर्ट में आईटी एक्ट की धाराओं में आरोप पत्र दाखिल कर दिया। कोर्ट ने समन जारी कर पति को तलब किया। इसके खिलाफ पति ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। याची के अधिवक्ता ने दलील दी कि पीड़िता कानूनी तौर पर उसकी पत्नी है। अंतरंगता उसका अधिकार है। लिहाजा, आईटी एक्ट के तहत दर्ज मुकदमा रद्द किया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर ने कहा कि शादी से पति को उसकी पत्नी पर स्वामित्व या नियंत्रण नहीं प्राप्त हो जाता है, न ही पत्नी की स्वतंत्रता और निजता के अधिकार को कम करता है। याची ने अपनी पत्नी के साथ आंतरिक क्षणों को वायरल किया और चचेरे भाई को भी भेज दिया, ऐसा करके उसने वैवाहिक संबंध की शुचिता को भंग किया है। पुरुषों के लिए इस मानसिकता को त्यागने का यह सर्वोच्च क्षण है कि पत्नी पति की जागीर होती है। पति की दलील कि ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है कि उसने वीडियो वायरल किया है, को कोर्ट ने अस्वीकार करते हुए याचिका खारिज कर दी।
विवाह एक पवित्र रिश्ता है। विश्वास उसकी नींव है। खुद को पत्नी का मालिक मानकर फेसबुक पर अंतरंग वीडियो अपलोड कर वैवाहिक रिश्ते की पवित्रता को भंग नहीं किया जा सकता। पत्नी पति से अपेक्षा करती है कि वह उसके समर्पण और भरोसे का सम्मान करे। कोर्ट ने फैसले में कहा कि एक दौर था, जब विवाह के बाद महिला की कानूनी पहचान पति के अधीन कर दी जाती थी। अब ये धारणाएं सैद्धांतिक रूप से फीकी पड़ गई हैं, लेकिन उनके अवशेष बचे हैं। पत्नी की शारीरिक स्वायत्तता और गोपनीयता का सम्मान करना न केवल पति का कानूनी दायित्व है, बल्कि समानता को बढ़ावा देने की नैतिक अनिवार्यता भी है।