भस्मारती में निराले स्वरूप में सजे बाबा महाकाल, भस्म आरती में महिलाओं को करना होता है घूंघट, ऐसा क्यों

By :  vijay
Update: 2025-02-07 08:15 GMT
भस्मारती में निराले स्वरूप में सजे बाबा महाकाल, भस्म आरती में महिलाओं को करना होता है घूंघट, ऐसा क्यों
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श्री महाकालेश्वर मंदिर में सुबह 4 बजे हुई भस्म आरती के दौरान बाबा महाकाल का पंचामृत पूजन और अभिषेक कर आकर्षक श्रृंगार किया गया। जिसने भी इन दिव्य दर्शनों का लाभ लिया, वह देखता ही रह गया। कालों के काल बाबा महाकाल भांग से श्रृंगारित हुए। इस श्रृंगार के बाद उन्हें भस्म रमाई गई, जिसके बाद भक्तों ने दर्शनों का लाभ लिया और 'जय श्री महाकाल' के जयघोष किए।


विश्व प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर मंदिर के पुजारी पंडित महेश शर्मा ने बताया कि पौष माह, माघ शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि पर शुक्रवार को बाबा महाकाल सुबह 4 बजे जागे। भगवान वीरभद्र और मानभद्र की आज्ञा लेकर मंदिर के पट खोले गए। सबसे पहले भगवान को गर्म जल से स्नान करवाया गया और फिर दूध, दही, शहद, शक्कर, घी आदि पंचामृत से स्नान कराया गया। प्रथम घंटाल बजाकर 'हरि ओम' का जल अर्पित किया गया। पंचामृत पूजन के बाद, भगवान महाकाल का पूजन सामग्री से आकर्षक श्रृंगार किया गया। इसके बाद बाबा महाकाल को महानिर्वाणी अखाड़े द्वारा भस्म रमाई गई और फिर कपूर आरती की गई।


महाकाल की भस्म आरती की परंपरा और मान्यताएं

द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक उज्जैन के महाकाल की भस्म आरती विश्व भर में प्रसिद्ध है। इसमें शामिल होना भक्तों के लिए एक बड़ा सपना होता है। लेकिन, इस मंदिर की कई परंपराएं भक्तों को हैरान भी कर देती हैं। इन्हीं में से एक परंपरा के अनुसार भस्म आरती के समय महिला भक्तों को घूंघट करना पड़ता है। मान्यता के अनुसार, भस्म आरती के समय महाकाल निराकार से साकार रूप धारण करते हैं और भस्म से स्नान करते हैं। इस दौरान उनका अभ्यंग स्नान होता है, जिसके कारण महिलाओं के दर्शन पर रोक है। इसे मंगला आरती के नाम से भी जाना जाता है। यह भस्म संसार के नाशवान होने का संदेश देती है। भस्म अर्पण के समय पांच मंत्रों का उच्चारण किया जाता है, जबकि आरती दीपक की ज्योति से की जाती है।


भस्म आरती के नियम और परंपराएं

परंपरा के अनुसार, सुबह 4 बजे होने वाली पहली आरती में भगवान शिव को भस्म से स्नान कराया जाता है। किंवदंतियों के अनुसार, पहले महाकाल की भस्म आरती श्मशान की सबसे ताजी चिता की राख से की जाती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं होता। अब गाय के कंडे, पीपल, पलाश, शमी और बेर की लकड़ियों को जलाकर तैयार की गई भस्म से आरती की जाती है।

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