ई-कॉमर्स से कमजोर हो रहे सामाजिक रिश्ते, केवल लेन-देन तक सिमट रहे संबंध, होसबोले

Update: 2025-06-24 17:14 GMT
ई-कॉमर्स से कमजोर हो रहे सामाजिक रिश्ते, केवल लेन-देन तक सिमट रहे संबंध, होसबोले
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नई दिल्ली   इंटीग्रल ह्यूमनिज्म: ए डिस्टिंक्ट पैराडाइम ऑफ डेवलपमेंट पुस्तक पर आयोजित एक कार्यक्रम में बोलते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने मंगलवार को बाजार केंद्रित जीवनशैली से कमजोर होते समाजिक रिश्ते की बात पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि बाजार केंद्रित जीवनशैली और ई-कॉमर्स जैसी व्यवस्थाएं समाज के पारंपरिक रिश्तों को नुकसान पहुंचा रही हैं और इंसानी संबंधों की बुनियाद को बदल रही हैं। होसबोले ने कहा कि भारत कभी कठोर विचारधाराओं का देश नहीं रहा, जो स्वतंत्र सोच को रोकती हों। हम दर्शन पर आधारित समाज हैं, ऐसी कठोर विचारधाराओं पर नहीं।

होसबोले ने एक उदाहारण देते हुए कहा कि अगर मुझे तमिलनाडु के किसी गांव में अशोक मोडक की किताब मंगानी हो, तो मैं ऑनलाइन ऑर्डर करके आसानी से मंगवा सकता हूं। यह सुविधा तो है, लेकिन इसमें कोई मानवीय संबंध नहीं बचता। उन्होंने कहा कि पहले गांवों के बाजारों में ग्राहक और व्यापारी के बीच विश्वास होता था, आज के ई-कॉमर्स में वह बात नहीं रही।

साथ ही होसबोले ने अमेरिका का भी उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि वहां समाज लगभग समाप्त हो चुका है। केवल व्यक्ति और राज्य ही बचे हैं। उन्होंने चेताया कि सरकार-निर्भर और बाजार-आधारित जीवन सामाजिक संतुलन के लिए खतरनाक हो सकता है।

प्रकृति और शिक्षा पर भी जताई चिंता

होसबोले ने कहा कि बिजली के बिना जीवन संभव नहीं, लेकिन यह सोचना होगा कि इसे पर्यावरण के अनुकूल तरीके से कैसे उत्पन्न किया जाए। शिक्षा केवल जानकारी देने तक सीमित न हो, उसमें जीवन-मूल्यों की शिक्षा भी दी जानी चाहिए।उन्होंने कहा कि पश्चिमी सोच व्यक्ति के अधिकार, ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ और प्रकृति के दोहन पर आधारित है, जबकि भारत की सोच करुणा, सह-अस्तित्व और समर्पण पर आधारित है। बुद्ध, महावीर और स्वामी विवेकानंद विचारक थे, विचारधारा से परे थे।

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