सरकार ने चीन पर निर्भरता कम करने के लिए दुर्लभ पृथ्वी चुंबक निर्माण में 7280 करोड़ का निवेश किया

Update: 2025-12-17 06:40 GMT

नई दिल्ली |केंद्र सरकार ने रणनीतिक रूप से अहम तकनीक में आत्मनिर्भर बनने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है। देश में दुर्लभ पृथ्वी चुंबक के घरेलू निर्माण को बढ़ावा देने के लिए 7,280 करोड़ रुपये की नई योजना को मंजूरी दी गई है। इसका सीधा मकसद चीन पर निर्भरता कम करना और इलेक्ट्रिक वाहन, रक्षा, इलेक्ट्रॉनिक्स और हरित ऊर्जा जैसे क्षेत्रों के लिए जरूरी आपूर्ति को सुरक्षित करना है।


सरकार की यह योजना 'सिंटर्ड रेयर अर्थ परमानेंट मैग्नेट' के निर्माण से जुड़ी है। ये चुंबक नियोडिमियम-आयरन-बोरॉन से बनते हैं और दुनिया के सबसे शक्तिशाली स्थायी चुंबकों में गिने जाते हैं। अभी भारत को ऐसे चुंबक पूरी तरह आयात करने पड़ते हैं, जबकि इनकी मांग तेजी से बढ़ रही है। नई योजना से घरेलू क्षमता खड़ी करने पर जोर दिया गया है।

ईवी से रक्षा तक अहम भूमिका

दुर्लभ पृथ्वी चुंबक का इस्तेमाल इलेक्ट्रिक वाहनों की मोटर, मोबाइल फोन, पवन ऊर्जा संयंत्र, एयरोस्पेस और रक्षा उपकरणों में होता है। भारी उद्योग मंत्रालय के अनुसार, इन चुंबकों के बिना आधुनिक तकनीक की कल्पना अधूरी है। खासकर इलेक्ट्रिक वाहनों और नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में इनकी जरूरत लगातार बढ़ रही है, जिससे आपूर्ति सुरक्षा देश के लिए अहम बन गई है।

6000 मीट्रिक टन क्षमता का लक्ष्य

योजना के तहत देश में सालाना 6,000 मीट्रिक टन चुंबक निर्माण क्षमता विकसित की जाएगी। इसके लिए अधिकतम पांच कंपनियों को पारदर्शी बोली प्रक्रिया के जरिए चुना जाएगा। प्रत्येक कंपनी को कम से कम 600 और अधिकतम 1,200 मीट्रिक टन तक की क्षमता आवंटित की जाएगी। इससे निजी क्षेत्र की भागीदारी भी मजबूत होगी और प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिलेगा।

सब्सिडी और कच्चे माल की गारंटी

चयनित कंपनियों को चुंबक की बिक्री पर प्रोत्साहन राशि दी जाएगी। साथ ही संयंत्र लगाने के लिए पूंजी सब्सिडी भी उपलब्ध कराई जाएगी। कुछ कंपनियों को आईआरईएल (इंडिया) लिमिटेड से कच्चे माल की सीमित लेकिन सुनिश्चित आपूर्ति दी जाएगी, ताकि उत्पादन में बाधा न आए और शुरुआती जोखिम कम हो सके।

यह योजना कुल सात साल की होगी, जिसमें पहले दो साल संयंत्र लगाने के लिए तय किए गए हैं। सरकार का कहना है कि इससे देश में दुर्लभ पृथ्वी चुंबक की भारी कमी दूर होगी और आयात पर निर्भरता घटेगी। लंबे समय में यह कदम भारत को रणनीतिक तकनीक में आत्मनिर्भर बनाने और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में मजबूत स्थिति दिलाने में मदद करेगा।

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