कहां है वह मंदिर जहां हनुमान जी की उनके पुत्र के साथ होती है पूजा? दर्शन करने से पिता पुत्र के झगड़े हो जाते है खत्म!

By :  vijay
Update: 2024-08-19 19:19 GMT
कहां है वह मंदिर जहां हनुमान जी की उनके पुत्र के साथ होती है पूजा? दर्शन करने से पिता पुत्र के झगड़े हो जाते है खत्म!
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दुनिया भर में हनुमान जी के बहुत से चमत्कारी मंदिर हैं. सभी मंदिरों की अपनी कुछ खास विशेषताएं भी हैं. इन मंदिरों में कहीं बजरंगबली की मूर्ति लेटी हुई है तो कुछ जगहों पर बैठी हुई या बहुत ही ऊंची मूर्तियां भी हैं. इन सभी मंदिरों में हनुमान जी की अकेली मूर्ति की ही पूजा की जाती है. लेकिन भारत में एक ऐसा हनुमान मंदिर भी है जहां वह अपने पुत्र मकरध्वज के साथ विराजमान हैं.

कहां है यह मंदिर?

गुजरात के द्वारका से लगभग चार मील दूर बेट द्वारका हनुमान दंडी मंदिर स्थित है. मंदिर का इतिहास करीब 500 साल पुराना बताया जाता है. मान्यता है कि यह वही स्थान है जहां हनुमान जी अपने पुत्र से पहली बार मिले थे. इस स्थान पर हनुमान जी की मूर्ति के साथ उनके पुत्र मकरध्वज की मूर्ति भी स्थापित है.

मकरध्वज कैसे मिले हनुमान जी?

हनुमान जी बाल ब्रह्मचारी थे. लेकिन उनका एक पुत्र भी था. जिसका जिक्र पुराणों में मिलता है. बजरंगबली को अपने पुत्र के बारे में तभी पता चला था जब वह भगवान श्री राम और लक्ष्मण को पाताल लोक में छुड़ाने पहुंचे थे और यहां उन्होंने अपने पुत्र संग भयंकर युद्ध किया था. पुत्र को पराजित कर वह भगवान राम को पाताल लोक से छुड़ा कर लाए थे. वहीं उनको यह पता चला था कि उनका एक पुत्र भी है. उनके पुत्र का नाम मकरध्वज था.

बढ़ती है मकर ध्वज की मूर्ति

इस मंदिर में मकरध्वज की मूर्ति हनुमान जी की मूर्ति के साथ स्थापित है. मंदिर में प्रवेश करते ही सामने मकरध्वज की मूर्ति उसके साथ ही हनुमान जी की भी मूर्ति स्थापित है. यह दोनों ही मूर्तियां बहुत ही प्रसन्नचित मुद्रा में है, इन मूर्तियों की खास बात यह है कि उनके हाथों में कोई भी शस्त्र नहीं हैं. इसके अलावा लोगों का यह भी कहना है कि जब मकरध्वज की मूर्ति यहां स्थापित की गई थी तब वह अपने पिता बजरंगबली की मूर्ति से छोटी थी. लेकिन अब वह मूर्ति बढ़कर बजरंगबली के बराबर हो चुकी है.

पिता-पुत्र के झगड़े होते है खत्म

इस मंदिर को लेकर यह मान्यता प्रचलित है कि जिन पिता पुत्र के बीच किसी बात को लेकर विवाद या मतभेद होता है. यदि वह लोग इस मंदिर में दर्शन कर लें तो उनके बीच चल रहे मतभेद खत्म हो जाता है. यही नहीं हनुमान जी पिता-पुत्र के बीच स्नेह और सद्भाव बनाते हैं.

कैसे हुआ मकरध्वज का जन्म?

धर्म शास्त्रों के अनुसार जिस समय हनुमान जी सीता की खोज में लंका पहुंचे और मेघनाद द्वारा पकड़े जाने पर उन्हें रावण के दरबार में प्रस्तुत किया गया. तब रावण ने उनकी पूंछ में आग लगा दी और हनुमान ने जलती हुई पूंछ से पूरी लंका जला दी. जलती हुई पूंछ की वजह से हनुमान जी को जलन हो रही थी जिसे शांत करने के लिए वे समुद्र के जल से अपनी पूंछ की अग्नि को शांत करने पहुंचे.

उस समय उनके पसीने की एक बूंद पानी में टपकी जिसे एक मछली ने पी लिया था. उसी पसीने की बूंद से वह मछली गर्भवती हो गई और उसने उसे एक पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसका नाम पड़ा मकरध्वज. मकरध्वज भी हनुमानजी के समान ही महान पराक्रमी और तेजस्वी था.

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