हरतालिका तीज व्रत की पौराणिक कथा, पूजा के समय जरूर करें इसका पाठ

By :  vijay
Update: 2024-09-06 10:48 GMT

 इस साल 6 सितंबर को हरतालिका तीज का व्रत रखा जा रहा है। हर साल अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को महिलाएं रतालिका तीज का व्रत रखती हैं। यह व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए बेहद खास माना जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अखंड सौभाग्य और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए निर्जला व्रत रखती हैं।

कुंवारी कन्याएं भी मनचाहा वर पाने के लिए इस दिन उपवास रखती हैं। इस दिन महिलाएं मां गौरी और भगवान शिव की पूजा करती हैं। विवाहित महिलाओं के लिए यह व्रत बेहद महत्वपूर्ण होता है। इस दिन पूजा के दौरान व्रत कथा सुनने का भी बड़ा महत्व है। कथा सुनने के बाद ही पूजा का पूर्ण फल प्राप्त होता है। ऐसे में आइए जानते हैं हरतालिका तीज व्रत कथा के बारे में...

 कैसे पड़ा इस व्रत का नाम?

पौराणिक कथा के अनुसार, माता पार्वती जी की सखियों ने उनका अपहरण कर जंगल में छिपा दिया था। ताकि माता पार्वती के पिता उनका विवाह इच्छा के विरुद्ध भगवान विष्णु से न कर सकें। दरअसल, पार्वती जी शिव जी को मन ही मन अपना पति मान चुकी थीं। इसलिए उनकी सखियां उन्हें लेकर घने जंगल में चली गईं।

जंगल में एक गुफा के भीतर माता पार्वती ने भगवान शिव की अराधना की और भाद्रपद तृतीया शुक्ल के दिन हस्त नक्षत्र में पार्वती जी ने मिट्टी के शिवलिंग बनाकर विधिवत पूजा की। साथ ही रातभर जागरण भी किया। पार्वती जी के तप से भगवान शिव ने खुश होकर उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया। इस तरह सखियों द्वारा उनका हरण कर लेने की वजह से इस व्रत का नाम हरतालिका व्रत पड़ गया।

हरतालिका तीज व्रत कथा

पौराणिक मान्यता के अनुसार, पिता के यज्ञ में अपने पति भगवान शिव का अपमान माता पार्वती सहन नहीं कर पाई थीं और उन्होंने स्वयं को यज्ञ की अग्नि में भस्म कर दिया था। इसके बाद उन्होंने राजा हिमाचल के घर में अगला जन्म लिया और इस जन्म में भी उन्होंने शंकर जी को ही अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की। देवी पार्वती सदैव भगवान शिव की तपस्या में लीन रहतीं थीं। उनकी ऐसा हालत देखकर राजा हिमाचल को चिंता होने लगी और उन्होंने नारद जी से बात की। इसके उन्होंने पार्वती जी का विवाह भगवान विष्णु से करने का फैसला लिया। लेकिन देवी पार्वती विष्णु जी से विवाह नहीं करना चाहती थीं। ऐसे में उनके मन की बात जानकर उनकी सखियों ने उनका हरण कर लिया और जंगल में चली गईं।

मान्यता है कि भाद्रपद शुक्ल तृतीया तिथि के हस्त नक्षत्र में माता पार्वती ने मिट्टी के शिवलिंग बनाकर भोलेनाथ की स्तुति की और रात्रि में जागरण किया। इस दौरान उन्होंने अन्न का त्याग भी कर दिया था। उनकी ये कठोर तपस्या 12 साल तक चली। पार्वती के इस कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर महादेव ने दर्शन दिए और इच्छा अनुसार उनको अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया। इसके बाद से हर साल महिलाएं अखंड सौभाग्य के लिए हरतालिका तीज का व्रत करती हैं।

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