वर्षों पहले हुई थी एक भूल, सरकारी अभिलेखों में बेनाम हुई पुश्तैनी जमीन, नाम भी हो गया था गलत दर्ज
राजसमंद। वर्षों पहले हुई एक त्रुटि ने ग्राम टांटोल की रहने वाली अनोखी बाई के जीवन की दिशा ही बदल दी थी। विक्रम संवत 2068 से उनके नाम का खाता संख्या 342 में से नाम ही गायब हो गया था। उनकी पुश्तैनी ज़मीन जो उनके भविष्य और आजीविका की आधारशिला थी अचानक सरकारी अभिलेखों में बेनाम हो गई। वहीं दूसरी ओर, खाता संख्या 279, 305, 306 और 307 में उनका नाम ‘‘अनोली’’ के रूप में गलत दर्ज हो गया। इससे उनकी पहचान और अधिकार दोनों संकट में पड़ गए।
वर्षों तक उन्होंने इस त्रुटि को ठीक करवाने के लिए प्रयास किए- दस्तावेज़ों की खोज, दफ्तरों के चक्कर, अधिकारियों से गुहार, लेकिन हर ओर निराशा ही हाथ लगी।
लेकिन ग्राम टांटोल में आयोजित पं. दीनदयाल उपाध्याय अंत्योदय संबल पखवाड़ा के तहत राजस्व शिविर ने उनके जीवन में उम्मीद की किरण ला दी। तहसील प्रशासन की टीम ने इस मामले को संवेदनशीलता से सुना, अभिलेखों की जाँच की और मौके पर ही सुधार की प्रक्रिया शुरू की।
अधिकारियों ने विधिवत जांच-पड़ताल की तो पता चला कि अनोखी बाई बिल्कुल सही है और उसे उसका अधिकार मिलना चाहिए। इस पर खाता संख्या 342 में उनका नाम पुनः दर्ज किया गया। खाता संख्या 279, 305, 306, 307 में ‘‘अनोली’’ के स्थान पर सही नाम ‘‘अनोखी’’ चढ़ाया गया।
जब अनोखी बाई को अपने सही नाम की नकल प्राप्त हुई, तो उनकी आंखें छलक उठीं। ये आंसू दुख या हार के नहीं, बल्कि हक, पहचान और सम्मान मिलने के थे। उनका कांपता हुआ स्वर पूरे कैंप को भावुक कर गया:
‘‘अब मुझे मेरी ज़मीन पर मेरा नाम वापस मिल गया है। मैं माननीय मुख्यमंत्री श्री भजनलाल शर्मा और हमारे ज़िला कलेक्टर श्री अरुण कुमार हसीजा को कोटि-कोटि धन्यवाद देती हूँ। आज विश्वास हो गया है कि सरकार सच में गरीब के साथ खड़ी है।’’
यह केवल एक नाम की गलती सुधारने का मामला नहीं था-यह भरोसे, सम्मान और न्याय लौटाने की प्रक्रिया थी। जिला प्रशासन और राजस्व विभाग ने इसे एक मिशन की तरह लिया और यह साबित किया कि "अंत्योदय" केवल एक शब्द नहीं, बल्कि शासन की आत्मा है।
"हमारी योजनाएं तब ही सफल हैं जब अंतिम पंक्ति में खड़ी महिला भी कहे, सरकार ने मुझे सुना, समझा और न्याय दिया।"
यह सफलता की कहानी सिर्फ अनोखी बाई की नहीं, बल्कि उन सभी महिलाओं की है जो अपने अधिकार के लिए संघर्ष करती हैं और उन सभी कर्मचारियों और अधिकारियों की भी, जो सच्चे मन से उन्हें उनका हक दिलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
यह कहानी याद दिलाती है कि "प्रशासन की सफलता तब ही पूरी होती है जब अंतिम पंक्ति तक पहुंच बनती है।"