हृदय में श्रद्धा, भक्ति और समर्पण का भाव है, तो परमात्मा हमसे दूर नहीं : जैनाचार्य महाराज

उदयपुर, । मालदास स्ट्रीट स्थित आराधना भवन में जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सूरीश्वर महाराज की निश्रा में बडे हर्षोल्लास के साथ चातुर्मासिक आराधना चल रही है।
श्रीसंघ के कोषाध्यक्ष राजेश जावरिया ने बताया कि मंगलवार को आराधना भवन में जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेनसूरीश्वर ने प्रवचन देते हुए कहा आँखों में जब मुस्कान होती है, तब दुश्मन भी अपने बन जाते है। शरीर में यदि पंखों का सहारा हो तो विराट् आकाश भी हम से दूर नहीं, पास है। वैसे ही यदि हृदय में श्रद्धा, भक्ति और समर्पण का भाव है, तो परमात्मा हमसे दूर नहीं बल्कि हृदय मंदिर में ही हैं। वैसे तो परमात्मा ने सभी कर्मों का क्षय कर मोक्ष में स्थान पाया है। वह मोक्ष हमसे खूब दूर है। मोक्ष में गए परमात्मा पुन: संसार में नहीं आते, फिर भी श्रद्धा के द्वारा परमात्मा हमारे हृदयमंदिर में अवश्यमेव आते हैं । साक्षात् परमात्मा के दर्शन तो हमारे लिए संभव नहीं है, फिर भी परमात्मा की प्रतिमा हमें उनका परिचय देकर, उनके साथ संबंध जोडऩे के लिए परम साधन है। परमात्मा की प्रतिमा, साक्षात् परमात्मा ही है। परमात्म-प्रतिमा की भक्ति, परमात्म भक्ति का ही फल देने में समर्थ है। मात्र प्रतिमा ही नहीं, परमात्मा का नामस्मरण भी खूब उपकारक है। उनका नामस्मरण करने से आत्मा के पाप पलायित हो जाते हैं। उनके नाम-स्मरण से सुख-दुख में समता भाव की शक्ति प्राप्त होती है। परमात्मा के नाम एवं प्रतिमा के साथ, जिन द्रव्यों और जिन क्षेत्रों से परमात्मा का संबंध है, वे भी हमें उनसे संबंध जोड़ने में सहायक बनते हैं। जिन क्षेत्रों में परमात्मा के जन्म आदि पाँच कल्याणक हुए हों, जहाँ उनके समवशरण की रचना हुई हो, जहाँ उनके मुख कमल से धर्मदेशना प्रसारित हुई हो, वह क्षेत्र और वहाँ के अणु-परमाणु उनके द्वारा भावित हुए होते हैं। वे अणु-परमाणु हमारे मन में भी शुभ भावों को पैदा करने में सहायक बनते हैं। क्षत्रियकुंड महातीर्थ ऐसी भूमि है, जहाँ पर परमात्मा ने अपने गृहस्थ जीवन के 30 वर्ष व्यतीत किये हैं। इसी स्थान पर परमात्मा जब माता के गर्भ में आये थे, तब माता ने अनोखे 14 महास्वप्न देखे थे। इसी स्थान पर परमात्मा महावीर स्वामी का जन्म हुआ एवं बाल्यकाल और गृहवास को व्यतीत करके संसार के सारे संबंधों का त्याग कर, जगत् के सभी जीवों का उद्धार करने एवं आत्मा की पूर्णता को पाने संयम जीवन को स्वीकार किया था ।
यह एक ऐसी तीर्थ भूमि है, जहाँ पर प्रभु महावीर के बड़े भाईराजा नंदिवर्धन ने परमात्मा के जीवित समय में परमात्मा के प्रत्यक्ष दर्शन का अनुभव करावे, ऐसी प्रतिमा का निर्माण किया था। वही प्रतिमा आज भी उस स्थान पर विराजमान है । जैसे नाव के माध्यम से नदी पार की जा सकती है, वैसे ही परमात्मा की प्रतिमा भवसागर को पार करने में सर्वश्रेष्ठ आलंबन प्रदान करती है। तीर्थ भूमि की रज भी हमें परमात्मा की याद दिलाकर उनके समान बनने के लिए प्रबल आलंबन प्रदान करती है।
जावरिया ने बताया कि 3 अगस्त को प्रात: 9.15 बजे गिरनार तीर्थ की भावयात्रा का संगीतमय भव्य कार्यक्रम होगा । इस अवसर पर कोषाध्यक्ष राजेश जावरिया, अध्यक्ष डॉ.शैलेन्द्र हिरण, नरेंद्र सिंघवी, हेमंत सिंघवी, जसवंत सिंह सुराणा, भोपालसिंह सिंघवी, गौतम मुर्डिया, प्रवीण हुम्मड सहित कई श्रावक-श्राविकाएं मौजूद रही।