सम्यक तप भवसागर से पार उतरने के लिए नौका के समान है : आचार्य पद्मभूषणरत्न सुरिश्वर महाराज

उदयपुर । श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्वावधान में तपोगच्छ की उद्गम स्थली आयड़ तीर्थ में शनिवार को तपस्वीरत्न आचार्य भगवंत पद्म भूषण रत्न सुरिश्वर महाराज, साध्वी भगवंत कीर्ति रेखा महाराज आदि ठाणा की निश्रा में नो दिवसीय नवपद आयंबिल ओली की शाश्वती आराधना के नवे व अंतिम दिन विविध आयोजन हुए। महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सुबह 7 बजे आरती, मंगल दीपक, सुबह सर्व औषधी से महाअभिषेक एवं अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई।
नाहर ने बताया कि शनिवार से तीन दिवसीय संस्कार शिविर का शुभारंभ हुआ। जिसमें 12 से 20 वर्ष तक की उम्र के बच्चों के लिए विविध जैन संस्कार से ओत-प्रोत विषयों पर प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे है। इस अवार्ड प्राप्त दुष्यंत भाई बड़ौदा द्वारा योग- व्यायाम द्वारा रोगमुक्ति के उपाय बताए गए।
नवपद ओली विशेष महोत्सव के उपलक्ष्य में प्रवचनों की श्रृंखला में प्रात: 9.15 बजे आचार्य भगवंत पद्म भूषण रत्न सुरिश्वर महाराज ने श्री नवपद की आराधना के अंतिम एवं नवें दिन सम्यक तप की आराधना की। साध्वियों ने सम्यक तप के विषय में बताया कि इस की आराधना से संसार से मुक्ति पाने की राह आसान हो जाती है। तप की आराधना से कर्म-निर्जरा का महत्वपूर्ण कारण है। तप से कर्मों की निर्जरा होती है। तप यानी इन्द्रिय रूपी चंचल घोड़े को वश करने वाली लगाम मदोन्मत्त मन रूपी हाथी को वश करने वाला अंकुश। कर्मरूपी जंजीर को तोडक़र मुक्ति रूपी मंजिल पर चढ़ाने वाला सोपान। जैन आगम में तप के दो प्रकार बताये गये हैं। बाध्य रूप, अभ्यन्तर रूपों बाह्य रूप यानि जिस तप में साधना का सम्बन्ध शरीर से अधिक प्रतीत होता है उसे बाहय तप कहते हैं। जैसे पच्चक्रवाण उपवास आदि । अणसण, उणोदरी, वृत्ति संक्षेप, रस त्याग, कायक्लेश और संकीर्णता ये छ: प्रकार के बाह्य तप हैं। अभ्यन्तर रूप यानि जो लप लोगों को देखने में नहीं आता वह अभ्यंतर तप है। जैसे प्रायश्चित, विनय, वैयावच्च, सज्झाय, ध्यान और उपसर्ग छ: प्रकार के अभ्यंतर तप हैं। इस प्रकार तप के बारह प्रकार हैं। इन्द्रिय और मन को वश में करना तप है इससे अन्तर्मुखी बनता है जिससे आत्म दर्शन सुलभ बन जाता है। तप जीवन का प्राण तत्व है। तप से मनुष्य सर्व सिद्धियों को प्राप्त कर सकता है। हमारे तीर्थकर परमात्मा भी अपने पूर्व के तीसरे भव में बीस स्थानक तप की आराधना के द्वारा ही तीर्थकर पद को निकासित करते हैं। चक्रवर्ती भी छ: खंड के राज्य पर अद्रुम तप के प्रभाव से ही विजय प्राप्त करते हैं। जैन शासन में बहुत ही महत्व बताया है क्योंकि तप धर्म की आराधना मनुष्य गति में ही होती है।
इस अवसर पर कुलदीप नाहर, सतीश कच्छारा, राजेन्द्र जवेरिया, चतर पामेचा, राजेश जावरिया, चन्द्र सिंह बोल्या, दिनेश भण्डारी, अशोक जैन, दिनेश बापना, कुलदीप मेहता, नरेन्द्र शाह, चिमनलाल गांधी, गोवर्धन सिंह बोल्या आदि मौजूद रहे।