भगवान को शुभ कर्म अच्छे लगते हैं इसलिए पुरस्कार स्वरूप भगवान अपने भक्तों को अनुदान देते हैं कि वे अपने जीवन में निरंतर शुभ कर्म करते रहें। सावन महीने के पावन दिनों में भगवान शिव की पूजा-अर्चना के पीछे यही संदेश हम सबके लिए है कि यदि...
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राशि अनुसार करें भगवान भोले का रुद्राभिषेक
मेष- गुड़ अथवा गन्ने के रस से
वृषभ- कच्चे दूध अथवा दही से
मिथुन- हरे फलों के रस अथवा भांग मिश्रित ठंडाई से
कर्क- गौ-दुग्ध अथवा गंगा जल से
सिंह- शहद मिश्रित जल से अथवा गौ-घृत से
कन्या- भांग के शरबत से
तुला- ठन्डे और मीठे गौ-दुग्ध से अथवा सुगन्धित जल से
वृश्चिक- शहद अथवा गौ-घृत से
धनु- गौ-दुग्ध अथवा केसर मिश्रित दूध से
मकर- सरसों के तेल अथवा तिल के तेल से
कुम्भ- तिल के तेल अथवा सुगंधित तेल से
मीन- आम के रस, शहद अथवा नारियाल पानी से
भगवान शिव की पूजा और अभिषेक में बिल्वपत्र का प्रथम स्थान है। चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, अमावस्या, संक्रांति और सोमवार को बिल्वपत्र न तोड़ने के नियम के कारण बिल्वपत्र न होने पर नए बिल्वपत्रों की जगह पर पुराने बिल्वपत्रों को जल से पवित्र कर भगवान शिव पर चढ़ाया जा सकता है या इन तिथियों से पहले तोड़ा बिल्वपत्र चढ़ाएं।
प्रतिदिन रुद्राष्टाध्यायी का पाठ करें अथवा शिव षडक्षरी मंत्र 'ओम नमः शिवाय' का मन ही मन सारा महीना जाप करें।
सुबह के समय पंचामृत (दूध, गंगाजल, शहद, दही और घी) से भगवान शिव का अभिषेक करें।
स्फटिक का शिवलिंग घर में स्थापित कर नियमित रूप से उनका पूजन करें।
शाम के समय मंदिर में तेल का दीया जलाएं। धूप-दीप जलाकर प्रेमपूर्वक शिव और मां पार्वती की आरती करें।
