सेकेंड हैंड कार चलाने वालों के लिए सबक –: दिल्ली ब्लास्ट जैसी वारदातों से लें चेतावनी, भीलवाड़ा मेंसड़कों पर दौड़ रही हैं हजारों गाड़ियां बिना नाम ट्रांसफर के

दिल्ली ब्लास्ट जैसी वारदातों से लें चेतावनी, भीलवाड़ा मेंसड़कों पर दौड़ रही हैं हजारों गाड़ियां बिना नाम ट्रांसफर के
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भीलवाड़ा विजय गढ़वाल । दिल्ली में हुए ब्लास्ट में जिस तरह संदिग्ध कार किसी और के नाम पर निकली, उसने पूरे देश में चेतावनी की घंटी बजा दी है। बावजूद इसके, भीलवाड़ा में हजारों सेकेंड हैंड वाहन अब भी बिना नाम ट्रांसफर के सड़कों पर दौड़ रहे हैं। वस्त्र नगरी में बड़ी संख्या में ऐसे वाहन हैं, जिनके कागजों में मालिक कोई और है, जबकि उन्हें चला कोई और रहा है। न खरीदारों को परवाह है, न विक्रेताओं को जिम्मेदारी का एहसास। जब कोई वाहन किसी अपराध में इस्तेमाल होता है और पुलिस पूछताछ शुरू करती है, तब जाकर लोगों को अपनी लापरवाही का एहसास होता है।



दरअसल, वाहन बेचते समय न तो विक्रेता पंजीकरण ट्रांसफर को जरूरी समझते हैं और न ही खरीदार अपने नाम करवाने में दिलचस्पी दिखाता है। क्योंकि सड़कों पर चलने के दौरान न तो कोई रोक-टोक होती है और न ही इस पर सीधे चालान का प्रावधान है। परिणाम यह कि वाहन पुराने मालिक के नाम पर ही रजिस्टर रहते हैं, प्रदूषण प्रमाणपत्र और बीमा भी उसी के नाम से जारी होता है। जब वही वाहन किसी अपराध में फंसता है तो असली मालिक खुद मुसीबत में पड़ जाता है।

परिवहन विभाग की लापरवाही भी इस समस्या को बढ़ा रही है। जांच टीमें अक्सर केवल यह देखती हैं कि चालक के पास लाइसेंस, बीमा और प्रदूषण प्रमाणपत्र है या नहीं। वाहन का रजिस्ट्रेशन नाम किसके नाम पर है, इसकी जांच शायद ही कभी होती है। कभी-कभार जब जांच दल गहराई से पड़ताल करता है, तब पता चलता है कि वाहन किसी और के नाम पर है और उसे कोई तीसरा व्यक्ति चला रहा है। ऐसे में चालान की जगह स्टांप पेपर का सहारा लिया जाता है, जिसमें लिखा होता है कि गाड़ी उसने खरीदी है — लेकिन कानून में इस कागज की कोई वैधता नहीं है।

अधिवक्ता हेमेंद्र शर्मा का कहना है कि जब तक बिना पंजीकरण वाहन चलाने को अपराध की श्रेणी में नहीं लाया जाएगा, यह प्रथा बंद नहीं होगी। उनका सुझाव है कि ऐसे मामलों में चालान के साथ दंडात्मक कार्रवाई का प्रावधान होना चाहिए। उनका दावा है कि विभिन्न अपराधों में पकड़ी गई गाड़ियों में से 80 से 90 प्रतिशत वाहन ऐसे होते हैं, जो असली मालिक के नाम पर दर्ज रहते हैं। इनमें दिल्ली नंबर की गाड़ियों की संख्या सबसे ज्यादा है, जो राजस्थान, हरियाणा और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में बेझिझक चल रही हैं।

भीलवाड़ा में स्थिति और भी चिंताजनक है। यहां न केवल बिना नाम ट्रांसफर के दुपहिया वाहन चल रहे हैं, बल्कि कई भारी वाहन और बसें भी एक ही नंबर पर सड़कों पर दौड़ रही हैं। हलचल ने कुछ समय पहले एक ही नंबर से चल रही कई बसों का मामला उजागर किया था। उस दौरान कुछ वाहन पकड़े भी गए, लेकिन पुलिस और परिवहन विभाग ने मामले को गंभीरता से लेने के बजाय खानापूर्ति कर मामला दबा दिया।

परिवहन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि वाहन खरीदते या बेचते समय दोनों पक्षों को सावधानी बरतनी चाहिए। जब तक वाहन का रजिस्ट्रेशन नए मालिक के नाम ट्रांसफर नहीं होता, तब तक उसे चलाना जोखिम भरा है। विक्रेता को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वाहन उसके नाम से हटे, ताकि भविष्य में किसी अपराध की जिम्मेदारी उस पर न आए।

कानूनन यह भी स्पष्ट है कि स्टांप पेपर या लिखित एग्रीमेंट से मालिकाना हक साबित नहीं होता। ऐसे में खरीदार और विक्रेता दोनों को चाहिए कि वे सिर्फ औपचारिक नहीं, बल्कि कानूनी रूप से पंजीकरण प्रक्रिया पूरी करें। नहीं तो किसी दिन ऐसी ही किसी वारदात में उनके नाम की गाड़ी मिलने पर उन्हें भी वही भुगतना पड़ सकता है, जो आज दिल्ली ब्लास्ट मामले में संदिग्ध गाड़ी के मालिक झेल रहे हैं।

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