भारतीय कार खरीदार 2030 तक इलेक्ट्रिक मोबिलिटी अपनाने के लिए हैं तैयार, रिपोर्ट में दावा
ज्यादातर भारतीय कार खरीदार 2030 तक अपने प्राथमिक परिवहन के साधन के रूप में इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) सहित नई ऊर्जा वाहनों (एनईवी) पर स्विच करने के लिए तैयार हैं। अर्बन साइंस और द हैरिस पोल द्वारा किए गए एक हालिया अध्ययन से यह दावा किया गया है। वैश्विक सर्वेक्षण के एक हिस्से के रूप में 1,000 भावी भारतीय खरीदारों से मिली प्रतिक्रिया पर आधारित अध्ययन ने ईवी में निरंतर रुचि दिखाई है। क्योंकि बुनियादी ढांचे और सरकारी समर्थन का विस्तार हो रहा है।
प्रीमियम का भुगतान करने की इच्छा
अध्ययन से पता चला है कि दशक के आखिर तक 83 प्रतिशत भारतीय एनईवी को चुनने के लिए तैयार हैं। दिलचस्प बात यह है कि ये उपभोक्ता इन एनईवी के लिए बढ़ी हुई कीमत का भुगतान करने के लिए भी तैयार हैं। आम तौर पर, वे पारंपरिक पेट्रोल या डीजल से चलने वाली कार की तुलना में इलेक्ट्रिक वाहन के लिए 49 प्रतिशत तक ज्यादा खर्च करने को तैयार हैं।
यह भारत में इलेक्ट्रिक मोबिलिटी की बढ़ती मांग को दर्शाता है। ज्यादा से ज्यादा उपभोक्ता दीर्घकालिक लागत को कम करने के लिए स्थिरता और पर्यावरण संबंधी चिंताओं से प्रेरित हो रहे हैं।
बढ़ता ईवी इंफ्रास्ट्रक्चर
इसके अलावा, देश भर में सार्वजनिक ईवी चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर में तेजी से हो रहा विस्तार इलेक्ट्रिक वाहनों में तेजी से बढ़ती दिलचस्पी की एक महत्वपूर्ण वजह है। पीटीआई की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्तमान में ज्यादातर शहरों और हाईवे कॉरिडोर (राजमार्ग गलियारों) में 6,000 से ज्यादा ऐसे स्टेशन उपलब्ध हैं। लेकिन 2027 तक इनकी संख्या 100,000 तक पहुंच जाएगी। जिससे अधिकांश लोगों के लिए यह काम ज्यादा आसान हो जाएगा। टियर-2 शहरों में भी यही हाल है, जहां यह चुनौती अब मजबूती से जगह बना रही है।
चुनौतियां और अवसर
हालांकि, इसमें एक पेंच है। हालांकि स्थिति पूरी तरह से सकारात्मक लगती है। लेकिन अध्ययन में भारत द्वारा अपनी ईवी यात्रा में सामना की जाने वाली कुछ चुनौतियों पर रोशनी डाली गई है। हालांकि भारत महत्वपूर्ण रूप से प्रगति कर रहा है। लेकिन यह अभी भी ज्यादा एडवांस्ड ईवी तकनीक के साथ-साथ उत्पादन के पैमाने पर चीन से पीछे है।
लिथियम-आयन बैटरी उत्पादन, इलेक्ट्रिक मोटर और व्यापक चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर में चीन भारत से बहुत आगे है। सर्वेक्षण में सुझाव दिया गया है कि शायद भारत ऐसी गलतियों से बचने के लिए चीनी कंपनियों के साथ सामर्थ्य में सुधार और विकास में तेजी लाने के लिए सहयोग कर सकता है। चीन की विशेषज्ञता का लाभ उठाकर, भारत इलेक्ट्रिक मोबिलिटी में अपने बदलाव को तेजी से आगे बढ़ा सकता है। जिससे आने वाले दशक में ईवी को व्यापक रूप से अपनाया जा सके।