भाजपा का नया अध्यक्ष? कहा अटका ....क्या चल रहा है BJP में..

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का फैसला पार्टी लम्बे समय से नहीं कर पा रही हे इसकी चर्चा अब हर किसी की जबाने पर होने लगी हे मामला कहा अटका हे । संगठनात्मक रूप से यह कोई गंभीर समस्या नहीं है, लेकिन राजनीतिक दृष्टि से इस पर कई तरह के सवाल खड़े हो गए हैं-विशेष रूप से जब विपक्ष आंतरिक लोकतंत्र की कमी का आरोप लगाता रहा है। हालांकि बीजेपी ने आधे से अधिक प्रदेशों में नए अध्यक्षों की नियुक्ति कर दी है, लेकिन ये मामला ..!
जानकारों का मानना है कि देरी के पीछे तीन मुख्य कारण हैं:
1. अब निर्णय केवल RSS तक नहीं सीमित
भाजपा अब RSS के पूर्ण नियंत्रण वाली पार्टी नहीं रही। तीन बार केंद्र में सत्ता और राज्यों में मजबूती के चलते खुद को एक स्वतंत्र संगठन मान रही है। अब राष्ट्रीय अध्यक्ष का चयन केवल संघ की मंज़ूरी पर निर्भर नहीं, बल्कि नरेंद्र मोदी, अमित शाह और पार्टी की राजनीतिक रणनीति को भी दृष्टिगत रखा जा रहा है।
2. संघ का प्रभाव अभी भी अहम
हालांकि संगठन ने आत्मनिर्भरता हासिल की है, लेकिन संघ का मार्गदर्शन अभी भी पार्टी के लिए महत्वपूर्ण है—विशेषकर उनके द्वारा तैयार कार्यकर्ता आधार और वैचारिक समर्थन की वजह से। 2024 लोकसभा चुनावों में पूर्ण बहुमत न मिलना इस निर्भरता को और मजबूत बनाता है। इसलिए संघ की भी इच्छाओं को नजरअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
3. संघ और पार्टी की प्राथमिकताओं में अंतर
पार्टी एक राजनीतिक नेता चाहती है जो मोदी-शाह रणनीति से मेल खा सके, खासकर आगामी राज्यों के चुनावों (जैसे बिहार, बंगाल) में ढल सके। इसे राजनीतिक चाल, संगठनात्मक अनुभव और चुनाव प्रबंधन की समझ जरूरी है। संघ उसे आदर्श मानता है जो युवा दृष्टिकोण, निर्विवाद वैचारिक प्रतिबद्धता और सांस्कृतिक आदर्शों को आगे बढ़ा सके- अगर उसकी लोकप्रियता सरकारी योजनाओं की तुलना में कम हो। इस संतुलन को साधना आसान नहीं है और इसीलिए चयन की प्रक्रिया में देरी हो रही है।
घोषणा कब तक हो सकती है?
कयास हैं कि मानसून सत्र या बिहार विधानसभा चुनावों से पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष को पदस्थ किया जा सकता है। कुछ रणनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह घोषणाएं बिहार चुनाव के बाद ही होंगी, ताकि नए राष्ट्रीय अध्यक्ष को प्रदेश नेतृत्व और चुनावी रणनीति दोनो में बेहतर तालमेल बनाने का समय मिल पाए।
वहीं संघ ऐसे व्यक्ति को अध्यक्ष देखना चाहता है जो उसकी वैचारिक नीतियों और सांस्कृतिक दृष्टिकोण को आगे बढ़ाए, भले ही उसके लिए सरकार के एजेंडे को दूसरे स्थान पर रखना पड़े। संघ अपेक्षाकृत युवा, साफ-सुथरी छवि वाले और वैचारिक रूप से प्रतिबद्ध व्यक्ति को प्राथमिकता दे सकता है। इस वैचारिक और कार्यशैली के अंतर को साधने में समय लग रहा है।
अब तक भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कौन-कौन रहे?
अटल बिहारी वाजपेयी (1980): संस्थापक अध्यक्ष, भाजपा को नई पहचान दी।
लालकृष्ण आडवाणी: तीन बार अध्यक्ष रहकर पार्टी को राष्ट्रीय विस्तार दिया।
मुरली मनोहर जोशी: वैचारिक स्पष्टता को मजबूती दी।
कुशाभाऊ ठाकरे: संगठन को जमीनी स्तर पर मज़बूत किया।
बंगारू लक्ष्मण: पहले दलित अध्यक्ष बने।
वेंकैया नायडू, जना कृष्णमूर्ति: स्थायित्व और विस्तार की दिशा दी।
राजनाथ सिंह: दो बार अध्यक्ष रहते हुए संगठनात्मक ढांचे को मजबूत किया।
नितिन गडकरी: युवाओं को नेतृत्व में शामिल करने पर ज़ोर दिया।
अमित शाह: पार्टी को अभूतपूर्व चुनावी सफलता दिलाई।
जेपी नड्डा: वर्तमान अध्यक्ष जिन्होंने 2024 लोकसभा चुनावों में पार्टी का नेतृत्व किया।
