परिसीमन की फाइल में कैद लोकतंत्र? हालातों से घबराई 'डबल इंजन' सरकार, निकाय चुनाव टालने का बना रही बहाना!

परिसीमन की फाइल में कैद लोकतंत्र? हालातों से घबराई डबल इंजन सरकार, निकाय चुनाव टालने का बना रही बहाना!
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@जानबूझकर परिसीमन रिपोर्ट दबाकर बैठी सरकार, तीन महीने से अटकी चुनाव की प्रक्रिया।

@ भीलवाड़ा जैसे शहरों में मनमाने परिसीमन से चुनावी समीकरण साधने का आरोप।

@ क्या लोकसभा में लगे झटके के बाद जनता का सामना करने से बच रही है सरकार?

भीलवाड़ा हलचल। प्रदेश में स्थानीय निकाय और पंचायत चुनाव कब होंगे? यह सवाल अब प्रक्रिया का नहीं, बल्कि सरकार की नीयत का बन चुका है। 'डबल इंजन सरकार' के दावों के बीच, लोकतंत्र की सबसे जमीनी परीक्षा यानी निकाय चुनावों को जानबूझकर टालने की एक सोची-समझी रणनीति जमीन पर उतरती दिख रही है। इसका सबसे बड़ा हथियार बनाया गया है 'परिसीमन रिपोर्ट', जिसे सरकार पिछले तीन महीनों से अपनी फाइलों में कैद करके बैठी है।

रणनीति 'देरी करो और हावी रहो'

आंकड़े पूरी कहानी खुद बयां करते हैं। 22 मई को ही प्रदेश के 111 स्थानीय निकायों की परिसीमन रिपोर्ट सरकार के स्थानीय निकाय विभाग (DLB) को मिल गई थी। लेकिन आज तीन महीने बाद भी वह रिपोर्ट जनता के सामने नहीं है। न तो उस पर लगी आपत्तियों का कोई निस्तारण हुआ, न ही उसे जारी करने की कोई मंशा दिख रही है। साफ है कि यह प्रशासनिक सुस्ती नहीं, बल्कि एक सियासी रणनीति है, जिसका मकसद चुनाव को अनिश्चितकाल के लिए टालना है।

भीलवाड़ा में भी सत्ता के दबाव का खेल

इस मनमानी का असर भीलवाड़ा जैसे शहरों में साफ दिख रहा है। सूत्रों के अनुसार, भीलवाड़ा नगर निगम में कई वार्डों की सीमाओं में इस तरह बदलाव किए गए हैं या बेवजह परिवर्तन हुए हैं, जिसका सीधा मकसद सत्ता पक्ष के लिए चुनावी समीकरणों को आसान बनाना है। विपक्ष का सीधा आरोप है कि परिसीमन में सीधे तौर पर सत्ता का दबाव रहा है ताकि एक वर्ग विशेष के वोट काटे जा सकें और विरोधी पार्षदों के क्षेत्र को कमजोर किया जा सके।

असली डर: जनता के मूड का सामना करने से बचना

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि सरकार के इस रवैये के पीछे लोकसभा चुनाव के नतीजे हैं। लोकसभा में उम्मीद के मुताबिक सीटें न मिलने से सरकार को यह डर सता रहा है कि निकाय चुनावों में जनता की नाराजगी उसे भारी पड़ सकती है। ये चुनाव सरकार के कामकाज पर सीधा जनमत होते हैं। अगर शहरों में मेयर, सभापति और अध्यक्ष विपक्ष के बन गए तो यह सरकार के खिलाफ एक बड़ा 'नैरेटिव' सेट कर देगा। इसलिए, चुनाव का सामना करने के बजाय, सरकार प्रक्रियाओं का जाल बुनकर मैदान से ही भागने का रास्ता खोज रही है।

आगे क्या होगा? सिर्फ बहानेबाजी!

सरकार भले ही सब-कमेटी की रिपोर्ट या तैयारियों का हवाला दे, लेकिन सच यह है कि जब तक उसकी राजनीतिक जमीन मजबूत नहीं हो जाती, तब तक वह चुनाव कराने के मूड में नहीं है। रिपोर्ट जारी होते ही मामले न्यायालय में जाएंगे, जिससे सरकार को और समय मिल जाएगा। इसके बाद मतदाता सूची और बूथ गठन की लंबी प्रक्रिया का बहाना तैयार है।

सवाल यह है कि क्या एक चुनी हुई सरकार प्रक्रियाओं की आड़ लेकर जनता को उसके लोकतांत्रिक अधिकार से वंचित कर सकती है? परिसीमन की रिपोर्ट सिर्फ एक कागज नहीं, बल्कि प्रदेश के लोकतंत्र का भविष्य तय करने वाली कुंजी है, जिसे सरकार ने अपनी सियासी तिजोरी में बंद कर रखा है।

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