भीलवाड़ा में सीवर का पानी बन गया जहर:: टूटी पाइपलाइन, नालों की बदबू और लापरवाह सिस्टम से लोग बीमार — हर घर बना कुंडी का जाल

भीलवाड़ा। विजय गढ़वाल / सम्पत माली , कभी ऐसा जमाना था जब वस्त्र नगरी के घरों में लोग पानी भरने के लिए बर्तन भी नहीं रखते थे। शहर के हर मोहल्ले, हर गली में 24 घंटे नलों में मीठा पानी बहता था। जब चाहो टोंटी घुमाओ, साफ पानी मिल जाता था। लेकिन आज हालात उलट गए हैं — नलों से पानी नहीं, बल्कि सीवर की बदबूदार धारा बह रही है। लोग पानी खरीदकर पीने को मजबूर हैं, और जो पी रहे हैं, वो बीमार हो रहे हैं।
कभी जिस शहर की पहचान स्वच्छता और सुविधा से होती थी, आज वही शहर चंबल के पानी की लूट और जलदाय विभाग की लापरवाही से त्रस्त है। चंबल परियोजना के नाम पर अफसर और ठेकेदार मलाई काट रहे हैं, मगर भीलवाड़ा को न पर्याप्त पानी मिल रहा है, न ही साफ पानी।
बरसात में सीवर बन गया नल का साथी
बरसात का मौसम शुरू होते ही समस्या बेकाबू हो जाती है। गलियों में बनाई गई कुंडियों में गंदा पानी भर जाता है, जो पाइपलाइन में रिसने लगता है। जब जलदाय विभाग सप्लाई शुरू करता है, तो वही गंदा पानी घरों तक पहुंचता है।
मालीखेड़ा, जवाहर नगर, 100 फीट रोड, बाबाधाम और शहर की अन्य कॉलोनियों में लोगों को रोजाना काले, बदबूदार पानी से सामना करना पड़ता है। कई परिवार तो नल खुलने के पहले कुछ मिनटों तक गंदा पानी बहाकर ही इस्तेमाल शुरू करते हैं।
नालों के साथ चल रही पानी की पाइपलाइन
कई इलाकों में पेयजल पाइपलाइनें नालियों के साथ-साथ बिछाई गई हैं। नालियों में भरे गंदे पानी और सीवर के रिसाव से पाइपलाइन में दूषित जल पहुंच जाता है। टूटी-फूटी लाइनें और लीकेज वाले कनेक्शन इस समस्या को और बढ़ा रहे हैं।
लोगों का कहना है कि दशकों पुरानी पाइपलाइनें अब सड़ चुकी हैं। नालों की गंदगी सीधे पाइपों में मिलकर घरों तक पहुंचती है। परिणामस्वरूप लोग पेट दर्द, उल्टी, दस्त और त्वचा रोग जैसी बीमारियों से जूझ रहे हैं।
सिस्टम सोया, जनता रोई
अगर जलदाय विभाग पानी को पर्याप्त प्रेशर से सप्लाई करे, तो दूषित पानी के पाइपलाइन में घुसने की संभावना कम हो सकती है। लेकिन विभाग की मशीनें कमजोर हैं और निगरानी व्यवस्था तो जैसे खत्म ही हो गई है।
हर घर के बाहर बनी कुंडियां अब बीमारी का केंद्र बन चुकी हैं। ये कुंडियां न केवल मच्छरों का घर हैं, बल्कि सड़कों पर चलने वालों के लिए रुकावट भी बन गई हैं। लोग कहते हैं, “पानी के नाम पर अब बस परेशानी बची है।”
लोगों की पीड़ा
जवाहर नगर के निवासी लक्ष्मीनारायण पनवा कहते हैं, “कभी भीलवाड़ा में पानी की कदर नहीं करनी पड़ती थी। आज बच्चे बोतल का पानी मांगते हैं। नलों से ऐसा पानी आता है, जिसे छूने तक का मन नहीं करता।”
वहीं मालीखेड़ा निवासी देऊ देवी का कहना है, “हर बार पानी आने से पहले आधा घंटा नल खोलकर रखना पड़ता है, तब जाकर थोड़ा साफ पानी निकलता है। बच्चे बार-बार बीमार पड़ रहे हैं।”
चंबल परियोजना पर उठते सवाल
भीलवाड़ा में चंबल का पानी पहुंचाने की योजना जनता के लिए वरदान होनी थी, लेकिन अब यह सवालों के घेरे में है। योजनाएं बनीं, करोड़ों रुपये खर्च हुए, लेकिन शहर को न तो पर्याप्त पानी मिल रहा है और न ही सप्लाई में पारदर्शिता है।पाइपलाइनें जहां-तहां टूटी हैं, नालियों के साथ मिलकर रिसाव कर रही हैं। लोगों का कहना है कि “चंबल का नाम तो है, पर पानी में गंदगी ही गंदगी है।”
स्वास्थ्य विभाग भी बेखबर
शहर के अस्पतालों में पेट की बीमारियों और संक्रमण से पीड़ित मरीजों की संख्या बढ़ रही है। डॉक्टरों का कहना है कि दूषित पानी पीने से टाइफाइड, हेपेटाइटिस और दस्त जैसी बीमारियां फैल रही हैं। बावजूद इसके, स्वास्थ्य विभाग और नगर परिषद इस पर आंखें मूंदे बैठे हैं।
क्या यही विकास है?
वस्त्र नगरी की चमक के पीछे अब गंदे पानी और सरकारी लापरवाही की सड़ी हुई तस्वीर छिपी है। जनता टैंकरों और बोतलों के भरोसे जी रही है। कभी 24 घंटे पानी देने वाला शहर अब हर घंटे शिकायतों से गूंजता है।
लोगों की एक ही पुकार है —
“हमें चंबल का नाम नहीं, साफ पानी चाहिए!”
जब तक जलदाय विभाग पुराने पाइप नेटवर्क को सुधारकर प्रेशर से सप्लाई नहीं करेगा, तब तक भीलवाड़ा की गलियों में नल नहीं, सीवर का पानी ही बहता रहेगा — और साथ में जनता की लाचारी भी।
