कांग्रेस की नई जिलाध्यक्ष सूची ने मचाया भूचाल—: कार्यकर्ताओं का फूटा गुस्सा, सवालों के कटघरे में पूरी प्रक्रिया

राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी द्वारा 45 नए जिलाध्यक्षों की घोषणा ने पार्टी के भीतर तूफान खड़ा कर दिया है। संगठन को मजबूत करने के दावों के बीच यह सूची आते ही कांग्रेस कार्यकर्ताओं में आक्रोश, निराशा और अविश्वास साफ झलक रहा है। सोशल मीडिया पर कार्यकर्ताओं की तीखी प्रतिक्रियाओं ने यह साफ कर दिया है कि यह निर्णय पार्टी के लिए किसी बड़े सिरदर्द से कम नहीं।
🔥 “नई नहीं, पुरानी सोच की वापसी” — कार्यकर्ताओं की सीधी चोट
कांग्रेस ने बार-बार संगठन में नए चेहरे, नई ऊर्जा और जमीनी कार्यकर्ताओं को अवसर देने की बात कही थी। लेकिन घोषित सूची में अधिकांश नाम वही नेता हैं जो पहले से विधायक रहे, मंत्री रहे या संगठन में लंबे समय से पद पर बैठे हैं।
कार्यकर्ताओं का सीधा तर्क है—
> “यदि उन्हीं नेताओं को जिलाध्यक्ष बनाना था जिनके पास पहले से पद और पहचान थी, तो फिर कार्यकर्ता बैठकों, ऑब्ज़र्वर दौरों और संगठन सृजन अभियान का नाटक क्यों किया गया?”
इस सवाल ने कांग्रेस नेतृत्व की मंशा पर उंगली उठा दी है।
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⚡ प्रक्रिया सिर्फ दिखावटी? कार्यकर्ताओं की नाराज़गी चरम पर
जैसे ही सूची जारी हुई, सोशल मीडिया पर तेज़ी से ट्रेंड शुरू हुआ—
#SymbolicProcess, #WorkerIgnored
कार्यकर्ताओं का कहना है कि सारी औपचारिक प्रक्रियाएं महज़ औपचारिकता और नौटंकी लगती हैं, क्योंकि उनकी राय का व्यावहारिक असर शून्य रहा।
टिप्पणियों में एक भाव बार-बार दिखा:
> “निर्णय पहले से फाइनल थे, मीटिंग्स सिर्फ फोटो सेशन थे।”
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🔍 गुटबाज़ी पर खुला खेल — किसका पलड़ा भारी?
कांग्रेस की आंतरिक राजनीति में पायलट vs गहलोत गुटों की खींचतान वर्षों से हावी रही है।
नई सूची सामने आते ही सबसे तेज़ चर्चा इसी पर हुई कि—
किस गुट को ज्यादा जिलाध्यक्ष मिले?
कौन-सा गुट संगठन पर नियंत्रण मजबूत कर रहा है?
क्या यह सूची 2028 की चुनावी तैयारियों का संकेत है?
यह स्पष्ट है कि यह निर्णय सिर्फ संगठनात्मक नहीं, बल्कि गुटीय शक्ति-संतुलन का खेल भी है।
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🎭 ‘आम कार्यकर्ता’ फिर पीछे—नाराज़गी खतरनाक संकेत
कई ट्वीटों में कटाक्ष करते हुए कहा गया—
> “जिलाध्यक्ष, PCC सचिव, महासचिव, AICC—हर जगह वही चेहरे। आम कार्यकर्ता सिर्फ दरी बिछाए और झंडा पकड़े।”
यह भावना पार्टी में एक गहरी हताशा पैदा कर रही है जो भविष्य में कांग्रेस की जमीनी ताकत को कमजोर कर सकती है।
🧨 जोधपुर रूरल—सबसे तीखी आलोचना
जोधपुर रूरल से जुड़े पोस्ट में तो सीधे आरोप लग गए कि:
चुने गए जिलाध्यक्ष की सोशल मीडिया गतिविधि संगठनात्मक काम से ज्यादा चाटुकारिता पर आधारित है।
नियुक्ति योग्यता से ज्यादा निष्ठा के आधार पर हुई है।
यह आरोप नेतृत्व को सीधे सवालों के कटघरे में खड़ा कर रहे हैं।
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📉 नए जिलाध्यक्षों से कुछ खुशी, लेकिन असंतोष कहीं बड़ा
जिन नेताओं को जिलाध्यक्ष बनाया गया है, उनके समर्थकों में उत्साह है—खासकर वे नेता जो पिछले चुनाव हार गए थे और अब यह पद उनके लिए राजनीतिक पुनरोद्धार का मौका माना जा रहा है।
लेकिन दूसरी तरफ,
निराश कार्यकर्ताओं की संख्या उससे कहीं अधिक बड़ी दिखाई दे रही है।
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⚠️ अगर कांग्रेस ने तुरंत हस्तक्षेप नहीं किया, तो खतरा बड़ा
असंतोष की यह लहर आने वाले समय में—
संगठनात्मक ढांचे को कमजोर कर सकती है
चुनावी तैयारी को प्रभावित कर सकती है
जमीनी कार्यकर्ताओं की सक्रियता घटा सकती है
कुल मिलाकर, 45 जिलाध्यक्षों की यह घोषणा कांग्रेस को जितना मजबूत करती दिख रही है, उससे कहीं ज्यादा अंदरूनी विस्फोट की स्थिति पैदा कर रही है।
