शर्मनाक तस्वीर: बाल विवाह में भीलवाड़ा प्रदेश में दूसरे स्थान पर

बाल विवाह में भीलवाड़ा प्रदेश में दूसरे स्थान पर
X

भीलवाड़ा बीएचएन। राजस्थान में बाल विवाह का बढ़ता दायरा अब सीधे समाज और शासन के लिए चुनौती बन गया है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण एनएचएफएस 5 की रिपोर्ट ने साफ कर दिया है कि भीलवाड़ा में हालात बेहद गंभीर हैं। जिले में बाल विवाह की दर 41.08 प्रतिशत दर्ज हुई है, जिससे भीलवाड़ा प्रदेश में दूसरा सबसे ज्यादा प्रभावित जिला बन गया है।

चित्तौड़गढ़ पहले और भीलवाड़ा दूसरे नंबर पर

रिपोर्ट के अनुसार चित्तौड़गढ़ 42.6 प्रतिशत के साथ पहले स्थान पर है और उसके बाद भीलवाड़ा 41.8 प्रतिशत के साथ दूसरे स्थान पर है। यह आंकड़े बताते हैं कि इन जिलों में हर दो में से एक महिला की शादी 18 वर्ष से पहले कर दी जाती है, जो कानून और समाज दोनों के लिए गंभीर चिंता का विषय है।

22 जिलों पर हाई रिस्क का तमगा

केंद्र सरकार ने राजस्थान के 22 जिलों को हाई रिस्क श्रेणी में रखा है। इनमें भरतपुर, करौली, बीकानेर, अलवर, प्रतापगढ़, धौलपुर, जैसलमेर, नागौर, जोधपुर, चूरू, राजसमंद, बारां, दौसा और बांसवाड़ा शामिल हैं। यहां बाल विवाह के आंकड़े 25 से 33.5 प्रतिशत के बीच हैं, जो राष्ट्रीय औसत 23.3 प्रतिशत से कहीं अधिक हैं।

सरकार की सख्ती

75 लाख का विशेष फंड, अतिरिक्त 2 लाख की मंजूरी

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने हाई रिस्क जिलों को विशेष अनुदान देने का निर्णय लिया है। प्रत्येक जिले को बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना के तहत 75 लाख रुपये दिए जाएंगे, साथ ही अभियान अवधि में खर्च की जरूरत पड़ने पर 2 लाख रुपये का अतिरिक्त फंड भी दिया जाएगा।

तीन चरणों में चलेगा अभियान

स्कूलों से लेकर गांवों तक कड़ी निगरानी

पहला चरण 27 नवंबर से 31 दिसंबर तक चलेगा, जिसमें स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय को केंद्र में रखा जाएगा।

दूसरा चरण 1 से 31 जनवरी 2026 तक चलेगा, जहां टेंट वाले, कैटरर्स, धर्मगुरु और विवाह स्थल संचालकों से बाल विवाह न कराने के लिए शपथ पत्र लिए जाएंगे और विवाह सीजन में विशेष निगरानी होगी।

तीसरा चरण 7 फरवरी से 8 मार्च तक चलेगा, जिसमें ग्राम और वार्ड सभाओं में स्थानीय समुदाय अपने क्षेत्र को बाल विवाह मुक्त घोषित करने का संकल्प लेंगे।

समाज पर सवाल

अब भी नहीं चेते तो भविष्य अंधकारमय

भीलवाड़ा और आसपास के जिलों में लगातार बढ़ रहे बाल विवाह के मामलों ने चिंता और गहरा दी है। ये आंकड़े सिर्फ डेटा नहीं, बल्कि समाजिक विफलता का चेहरा हैं। अब प्रशासन और समाज दोनों को मिलकर बाल विवाह के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़नी होगी, वरना आने वाली पीढ़ियों का भविष्य गंभीर संकट में पड़ जाएगा।

Next Story