HC का बड़ा फैसला:: ठेका कर्मचारी स्थायी सरकारी नौकरी के हकदार नहीं; ‘मास्टर–सर्वेंट’ संबंध साबित नहीं, नियमितिकरण की मांग खारिज

ठेका कर्मचारी स्थायी सरकारी नौकरी के हकदार नहीं; ‘मास्टर–सर्वेंट’ संबंध साबित नहीं, नियमितिकरण की मांग खारिज
X

प्रदेश के हजारों ठेका कर्मियों को बड़ा झटका

जोधपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने साफ कर दिया है कि ठेकेदार के माध्यम से काम करने वाले कर्मचारी सीधे तौर पर सरकारी विभाग से पक्की नौकरी की मांग नहीं कर सकते। जस्टिस इंद्रजीत सिंह और जस्टिस प्रवीर भटनागर की खंडपीठ ने यह महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए श्रीगंगानगर निवासी इलेक्ट्रीशियन कुलवीर चंद की याचिका खारिज कर दी।

कोर्ट ने दो टूक कहा कि सरकारी विभाग और ठेका कर्मचारी के बीच ‘मास्टर–सर्वेंट’ यानी नियोक्ता–कर्मचारी का कोई कानूनी संबंध नहीं है। इसलिए ऐसे कर्मचारी “नियमितिकरण” का दावा भी नहीं कर सकते। हाईकोर्ट ने इसमें केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT) के पूर्व आदेश को भी सही ठहराया।

24 साल तक काम… फिर भी राहत नहीं

कुलवीर चंद ने दावा किया था कि वह जनवरी 2001 से लगातार रक्षा मंत्रालय के कार्यों में इलेक्ट्रिशियन के रूप में काम कर रहा है, इसलिए उसे स्थायी किया जाए। उसने सुप्रीम कोर्ट के जग्गो बनाम यूनियन ऑफ इंडिया केस का हवाला दिया और कहा कि लंबी सेवा उसके नियमितिकरण का आधार बननी चाहिए।लेकिन कोर्ट ने उसके तर्कों को स्वीकार नहीं किया।

सरकार बोली—वह हमारा कर्मचारी है ही नहीं

सरकार की ओर से दलील दी गई कि याचिकाकर्ता हर बार ठेकेदारों के जरिए लगाया गया था, विभाग ने कभी उसे सीधे नियुक्त नहीं किया।

सरकार ने सीबीएसई बनाम राजकुमार मिश्रा केस का हवाला देते हुए कहा कि नौकरी का दावा तभी बनता है, जब रिकॉर्ड में नियोक्ता–कर्मचारी संबंध मौजूद हो—जो इस मामले में बिल्कुल नहीं है।


कोर्ट की सख्त टिप्पणी: “ठेकेदार के आदमी हैं, विभाग के नहीं”

हाईकोर्ट ने फैसले में तीन प्रमुख बातें स्पष्ट की—

याचिकाकर्ता खुद मान चुका है कि उसकी नियुक्ति ठेकेदार के माध्यम से हुई थी।

जिस जग्गो केस का हवाला दिया गया, उस मामले में कर्मचारी सीधे विभाग द्वारा अस्थायी रूप से नियुक्त थे; यहां स्थिति अलग है।

के.के. सुरेश बनाम FCI फैसले का जिक्र करते हुए कहा गया कि यदि विवाद है, तो कर्मचारी को ठेकेदार/सोसाइटी के खिलाफ जाना चाहिए, विभाग के खिलाफ नहीं।

इन आधारों पर कोर्ट ने याचिका को आधारहीन बताते हुए खारिज कर दिया।

प्रदेश के ठेका कर्मचारियों के लिए बड़ा झटका

यह फैसला राजस्थान ही नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश के उन हजारों ठेका कर्मचारियों के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है जो वर्षों की सेवा के आधार पर नियमितिकरण की उम्मीद लगाए बैठे थे।

सरकारी विभागों में लंबे समय से ठेके पर काम कर रहे कर्मचारी अब इस निर्णय के बाद नियमित नौकरी को लेकर कानूनी तौर पर और भी कमजोर स्थिति में आ गए हैं।

Tags

Next Story