लिव इन पर राजस्थान हाई कोर्ट का बड़ा फैसला: बालिग कपल साथ रह सकते हैं शादी की उम्र पूरी होना जरूरी नहीं

बालिग कपल साथ रह सकते हैं शादी की उम्र पूरी होना जरूरी नहीं
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राजस्थान हाई कोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप से जुड़े एक मामले में अहम फैसला सुनाते हुए साफ कहा कि यदि कोई युवक और युवती बालिग हैं, तो वे अपनी मर्जी से साथ रह सकते हैं। शादी की न्यूनतम उम्र पूरी न होना उनके इस अधिकार को प्रभावित नहीं करता। कोर्ट ने माना कि संविधान नागरिकों को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का जो अधिकार देता है, उसे समाज की सोच या परिवार की नाराजगी रोक नहीं सकती।

यह मामला कोटा के एक अठारह वर्षीय लड़की और उन्नीस वर्षीय लड़के से जुड़ा था, जो आपसी सहमति से लिव इन में रह रहे थे। दोनों ने पुलिस को संरक्षण देने की अपील की थी, क्योंकि लड़की के परिजनों ने रिश्ते का विरोध करते हुए उन्हें जान से मारने की धमकी दी थी। कपल ने पिछले महीने आधिकारिक रूप से लिव इन एग्रीमेंट भी बनवाया था। बावजूद इसके पुलिस ने उनकी शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं की, जिस पर कपल ने हाई कोर्ट से गुहार लगाई।

याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस अनूप कुमार ढांड ने कहा कि राज्य की जिम्मेदारी है कि वह ऐसे कपल की सुरक्षा सुनिश्चित करे। अदालत ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद इक्कीस हर नागरिक को सुरक्षा देता है और यह अधिकार विवाह की वैधता पर निर्भर नहीं करता। कोर्ट ने कहा कि भले ही युवक अभी शादी योग्य उम्र में न पहुंचा हो, लेकिन बालिग होने के कारण वह अपनी जीवनशैली चुनने का हक रखता है।

राज्य सरकार ने अदालत में यह दलील दी थी कि चूंकि युवक की उम्र इक्कीस वर्ष नहीं हुई है, इसलिए न तो वह शादी कर सकता है और न ही उसे लिव इन की अनुमति दी जानी चाहिए। हाई कोर्ट ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि कानून केवल विवाह की आयु तय करता है, जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार को नहीं। अदालत ने पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट के एक पूर्व फैसले का हवाला देते हुए कहा कि यदि दोनों बालिग हैं, तो पुलिस सुरक्षा देने से इंकार नहीं कर सकती।

हाई कोर्ट के इस फैसले को लिव इन से जुड़े मामलों में एक महत्वपूर्ण दिशा माना जा रहा है।

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