शहरों के आसपास बसती कॉलोनियां, सुविधाएं नदारद,: अब पंचायतों में भी लागू होगा शहरी नगरीय विकास का कॉलोनाइजर एक्ट, मुख्यमंत्री ने दिए निर्देश

अब पंचायतों में भी लागू होगा  शहरी नगरीय विकास का कॉलोनाइजर एक्ट, मुख्यमंत्री ने दिए निर्देश
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अब पंचायत क्षेत्रों में भी कॉलोनाइजर कानून की लागू करने कि सुगबुगाट



भीलवाड़ा (राजकुमार माली)।

प्रदेश में शहरीकरण की रफ्तार लगातार बढ़ रही है। शहरों में जमीन के दाम आसमान छू रहे हैं, ऐसे में आम लोगों की नजर शहर से सटी ग्राम पंचायतों की जमीन पर टिक गई है। यही कारण है कि बड़े शहरों के आसपास की पंचायतों में नई नई कॉलोनियां तेजी से आकार ले रही हैं। इन कॉलोनियों में प्लॉट तो धड़ल्ले से बिक रहे हैं, लेकिन बुनियादी सुविधाओं का हाल बेहाल है।

दरअसल पंचायत क्षेत्रों में कॉलोनी विकसित करने के लिए अनुमतियां अपेक्षाकृत आसान होती हैं। कॉलोनाइजर इस ढील का फायदा उठाते हैं। वे कॉलोनी काटकर प्लॉट बेच देते हैं और मुनाफा लेकर निकल जाते हैं। न सड़कें बनती हैं, न नालियां, न पानी की समुचित व्यवस्था और न ही सीवरेज या स्ट्रीट लाइट जैसी बुनियादी जरूरतों पर ध्यान दिया जाता है। पंचायतें भी सीमित संसाधनों और नियमों की वजह से प्रभावी निगरानी नहीं कर पातीं।

ग्रामीण जमीन पर शहरी सपने, लेकिन बिना आधार

भीलवाड़ा, जयपुर, जोधपुर, उदयपुर, चित्तौड़गढ़, अजमेर, राजसमंद जैसे शहरों के आसपास गांवों में कॉलोनियों की भरमार है। ग्रामीण क्षेत्र होने के कारण यहां न केवल निगरानी कम है, बल्कि कई जगह कृषि भूमि पर ही आवासीय कॉलोनियां खड़ी हो रही हैं। नियमों के अनुसार जो खुली जगह, सड़क चौड़ाई और सामुदायिक सुविधाएं छोड़ी जानी चाहिए, वे कागजों में ही सिमट जाती हैं।


कॉलोनाइजर प्लॉट बेचते वक्त बड़े सपने दिखाते हैं, लेकिन कब्जा मिलने के बाद लोगों को हकीकत का सामना करना पड़ता है। न तो पक्की सड़क होती है और न ही पानी और बिजली की स्थायी व्यवस्था। लोग सालों तक मूलभूत सुविधाओं के लिए भटकते रहते हैं।



जब गांव शहर बनते हैं, तब बढ़ता है दबाव

समस्या तब और गंभीर हो जाती है जब ये कॉलोनियां बाद में नगरीय निकायों की सीमा में शामिल कर ली जाती हैं। कॉलोनाइजर द्वारा जमा किया गया आश्रय शुल्क जिला पंचायत में तो चला जाता है, लेकिन उसका उपयोग संबंधित क्षेत्र के विकास में नहीं हो पाता। नगर परिषद या नगर निगम में शामिल होते ही यहां रहने वाले लोग भी अन्य शहरी इलाकों जैसी सुविधाओं की मांग करने लगते हैं।

नगरीय निकायों पर अचानक विकास का दबाव बढ़ जाता है, लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति पहले से ही कमजोर होती है। नतीजा यह होता है कि काम शुरू ही नहीं हो पाते और असंतोष बढ़ता चला जाता है।


एमपी की तर्ज पर राजस्थान में भी हलचल

इन्हीं समस्याओं को देखते हुए मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि ऐसे नियम बनाए जाएं, जिससे अवैध कॉलोनियों पर रोक लगे और पहले से बनी कॉलोनियों में भी विकास सुनिश्चित हो सके। अब उसी तर्ज पर राजस्थान में भी सुगबुगाहट शुरू हो गई है।

सूत्रों के अनुसार राज्य सरकार यह विचार कर रही है कि शहरों से सटी पंचायतों में भी नगरीय विकास एवं आवास विभाग का कॉलोनाइजर एक्ट लागू किया जाए। तर्क यह है कि जब ये क्षेत्र व्यवहार में शहरी हो चुके हैं, तो नियम भी शहरी ही होने चाहिए।

क्या बदल जाएगा नियम लागू होने से

यदि यह व्यवस्था लागू होती है, तो शहरों से लगे ग्रामीण क्षेत्रों में कॉलोनी विकसित करने के लिए वही प्रक्रिया अपनानी होगी जो शहरी क्षेत्रों में होती है। नक्शा स्वीकृति, आवश्यक अनुमतियां, सड़क, नाली, पानी, बिजली जैसी अधोसंरचना का विकास पहले करना होगा। नियमों का उल्लंघन करने पर सख्त कार्रवाई भी की जा सकेगी।

अधिकारियों का कहना है कि फिलहाल ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के नियम लागू हैं। ऐसे में नगरीय विकास विभाग और ग्रामीण विकास विभाग के बीच समन्वय बनाकर नियमों में संशोधन किया जाएगा। यह एक नीतिगत फैसला है, इसलिए प्रस्ताव को कैबिनेट में रखा जाएगा।

आम लोगों को क्या मिलेगा फायदा

अगर राजस्थान में भी यह कानून लागू होता है, तो ग्रामीण इलाकों में आवास के नाम पर हो रही लूट पर काफी हद तक लगाम लग सकेगी। लोगों को कृषि भूमि में प्लॉट खरीदकर बाद में विभागों के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे। उन्हें पहले से विकसित प्लॉट या मकान मिल सकेंगे, जिनके साथ सड़क, पानी, बिजली और रजिस्ट्री जैसी सुविधाएं सुनिश्चित होंगी।

कुल मिलाकर, यह कदम न केवल अवैध और अव्यवस्थित कॉलोनियों पर रोक लगाएगा, बल्कि शहरों के आसपास बस रहे हजारों परिवारों को बेहतर और सम्मानजनक जीवन की उम्मीद भी देगा। इसी वजह से अब ग्रामीण क्षेत्रों में भी इस संभावित बदलाव को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं।


इनका कहना है


भीलवाड़ा नगर निगम के महापौर राकेश पाठक का मानना है कि विकास और कॉलोनियों से जुड़े नियम पूरे क्षेत्र में एक समान होने चाहिए। उनका कहना है कि चाहे शहरी क्षेत्र हो या शहर से सटे ग्रामीण इलाके, नियमों में एकरूपता होगी तभी लोगों को सही मायने में सुविधाएं मिल पाएंगी। सड़क, पानी और बिजली जैसी मूलभूत व्यवस्थाएं हर कॉलोनी में पहले से सुनिश्चित होनी चाहिए, ताकि लोगों को बसने के बाद किसी तरह की परेशानी न हो और वे एक आरामदायक जीवन जी सकें।

महापौर ने यह भी कहा कि वर्तमान में शहरों में विकास शुल्क अपेक्षाकृत अधिक है। यदि वही शुल्क ग्रामीण क्षेत्रों पर ज्यों का त्यों लागू कर दिया गया, तो ग्रामीण इलाकों के लोगों पर अनावश्यक आर्थिक बोझ पड़ेगा। इसलिए आवश्यक है कि ग्रामीण क्षेत्रों की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए अलग और व्यावहारिक विकास शुल्क तय किया जाए। इससे एक तरफ कॉलोनियों में सुविधाओं का विकास होगा और दूसरी तरफ आम लोगों पर अतिरिक्त भार भी नहीं पड़ेगा।

उन्होंने अव्यवस्थित निर्माण पर चिंता जताते हुए कहा कि आज चाहे मकान हो या कोई अन्य निर्माण, बिना योजना के हो रहा है। इस पर सख्ती से लगाम लगनी चाहिए। यदि समय रहते नियमन नहीं किया गया, तो आने वाले वर्षों में अव्यवस्थित बसावट एक बड़ी समस्या बन जाएगी। महापौर के अनुसार व्यवस्थित और नियोजित निर्माण ही शहर और उसके आसपास के क्षेत्रों के संतुलित विकास का आधार है।

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