ये किसी घोटाले से नहीं कम: चोरों और नशेड़ियों ने रेलिंग चुराई, लिए मजे, लापरवाही की होगी जांच?
भीलवाड़ा। यूआईटी इन दोनों फर्जी मुआवजा बांटने के मामले में चर्चित है लेकिन जो सीधा-सीधा सामने दिख रहा है क्या उस पर भी कभी जांच हो पाएगी। अधिकारियों कर्मचारियों की लापरवाही कहो, या फिर मिली भगत, लेकिन विकास के नाम पर आम आदमी को तो चूना ही लगा है। क्या यूआईटी के जिम्मेदारों को शहर में सर्विस रोड पर बनी दीवारों की कटी हुई लाखों की रेलिंग नजर नहीं आ रही या देखना नहीं चाहते? वैसे भी फर्जी भूखंड की कार्यवाही में व्यस्त अधिकारियों की जेब से थोड़े ही ये काम हुआ था। शहर में आने की मुख्य सड़को पर, दिन और रात दोनों समय में लोगों की लगातार आवाजाही होती रहती है। इसके बावजूद रेलिंग चोरी हो रही है। चोर पहले रेलिंग को कमजोर करते हैं, फिर उखाड़ते हैं।
शहर में सौंदर्यीकरण के नाम पर लाखों रुपए यूआईटी द्वारा खर्च किए गए। लेकिन नतीजा यह है की एक बार ईमानदारी से इन कार्यों की जांच या वर्तमान परिस्थिति को परख लिया जाए तो हकीकत खुद-ब खुद सामने आ जाएगी।
शहर में सौंदर्यीकरण के नाम पर विभिन्न पथ बनाए गए, निर्माण का उद्देश्य भले ही नेक हो या ना हो, मगर अभी के हालात देखकर यही आकलन लगाया जा सकता है की शायद शहरवासियों को सुविधा देने के लिए बनाए गए सर्विस रोड, केवल अतिक्रमण कारियो चोरों और नशेबाजो के लिए आमदनी का साधन बन चुके है।
शहर में सर्विस रोड से लोहे की भारी भरकम रेलिंग चोरी हो चुकी है, कई जगह पर रोड की दीवार तोड़ कर अतिक्रमण करने वाले ने अपने लिए मुफ्त की जगह का इंतजाम कर रखा है।
शहर को ट्रैफिक और दुर्घनाओ से बचाना तो दूर उल्टे ये सर्विस रोड लोगो के लिए तो परेशानी का कारण बन ही रही हैं, वहीं कब्जाधारी और चोरों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। यहां दिन और रात दोनों समय में लोगों की लगातार आवाजाही होती रहती है। इसके बावजूद रेलिंग चोरी और अतिक्रमण हो रहा है। चोर पहले रेलिंग को कमजोर करते हैं, फिर उखाड़ते हैं।
रात के अंधेरे में गायब रेलिंग
यूआईटी ने प्रगति पथ और विजय पथ का नाम देकर सबसे खूबसूरत बनाने का दावा किया, आज उनकी दुर्दशा देखने लायक है। यूआईटी ने पर्यावरण को ध्यान में रखकर मुख्य मार्ग अजमेर और चित्तौड़ रोड की सर्विस रोड पर डिवाइडर्स में पौधे लगाकर लोहे की रेलिंग लगवाई थी। लेकिन यूआईटी ने पौधे लगा कर इतिश्री कर ली। लोहे की रेलिंग निकाल कर बेचने वाले तत्वों ने लोहे की रेलिंग की पूरी कतार ही रात के अंधेरे में गायब कर दी। आज हालात ये हैं कि लोहे की रेलिंग का पता नहीं है।
नहीं किया रखरखाव
स्थानीय लोगों का कहना है कि रिंग रोड को विकसित करने की योजना के तहत यूआईटी ने इलाके में सड़क का निर्माण कर उसमें सुंदरता के लिये लोहे की रेलिंग लगवाई थी। क्षेत्र के लोगों के चेहरे उन पौधों और फूलों को देखकर खिल उठते थे, लेकिन उनकी खुशी ज्यादा दिन तक कायम नहीं रह सकी। व्यवस्था गड़बड़ाने से पौधे और फूल मुरझाने लगे और कुछ दिन में हरियाली खत्म हो गई। डिवाइडर की बगिया उजाड़ होने से यूआईटी ने उसकी ओर देखना बंद कर दिया। इसी वजह से असामाजिक तत्वों को लोहे की रेलिंग काट कर ले जाने का मौका मिल गया।
तो नहीं होती हिम्मत
क्षेत्र के लोगो का कहना है कि अगर डिवाइडर के बीच बनी बगिया को हरा-भरा रखता तो कोई भी रेलिंग काट कर ले जाने की हिम्मत नहीं कर सकता था, जब यूआईटी ने ही पौधों की सुरक्षा के लिए लगी लोहे की रेलिंग की सुरक्षा करने का नहीं सोचा तो उनके चोरी होने से कौन बचाता।