कोटड़ी श्याम दरबार में देर रात भक्तों का उमड़ा सैलाब, प्रसाद वितरण शुरू,जलझूलन की तैयारिया
भीलवाड़ा विजय पिंकू।
रात गहराई थी, आसमान में चांदनी थी, लेकिन कोटड़ी श्याम दरबार का नजारा किसी मेले से कम नहीं था। रात ठीक 1:15 बजे जैसे ही मंदिर में प्रसाद वितरण शुरू हुआ, उसी समय तक भीलवाड़ा और आसपास से निकले पदयात्रियों के जत्थे लगातार दरबार पहुंचने लगे। कहीं डीजे की थाप पर थिरकते हुए युवा थे, तो कहीं बिना चप्पल पैदल चलकर आए बुजुर्ग। थकान से चूर शरीर, लेकिन आंखों में सिर्फ एक चमक—अपने आराध्य के दर्शन के। मंदिर परिसर जयकारों से गूंज रहा था और भक्तों की आस्था ने इस रात को सचमुच अविस्मरणीय बना दिया।
श्रद्धा और भक्ति से सराबोर यात्रा
भीलवाड़ा से कोटड़ी तक पदयात्रियों का सिलसिला रात होते-होते तेज हो गया। इराक चौराहे से लेकर कोटड़ी तक का रास्ता भक्तों से पटा हुआ नजर आया। कहीं महिलाएं अपने बच्चों का हाथ थामे चल रही थीं, तो कहीं युवा कंधों पर ध्वज लेकर जोश से कदम बढ़ा रहे थे।
हर कुछ कदम पर जयकारे गूंजते—
"चारभुजा नाथ की जय... श्याम बाबा की जय...!"
इन जयकारों से माहौल ऐसा बन गया मानो पूरा रास्ता भक्ति में डूब गया हो।
डीजे और ढोल पर झूमते भक्त
यात्रा का दृश्य किसी बड़े उत्सव से कम नहीं था। डीजे पर बजते भजनों पर श्रद्धालु नाचते-गाते हुए आगे बढ़ रहे थे। जगह-जगह ढोल-नगाड़ों की थाप गूंज रही थी।
किसी टोली में महिलाएं आरती गा रही थीं, तो कहीं युवा "श्याम बाबा" के गीतों पर झूमते नजर आए।
बच्चे भी पीछे नहीं रहे। वे हाथों में छोटी-छोटी पताकाएं लहराते और जयकारों में सुर मिलाते दिखाई दिए। भीलवाड़ा से कोटड़ी तक यह पूरा मार्ग एक चलती-फिरती भक्ति यात्रा में बदल गया।
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लंगरों ने बढ़ाई रौनक
श्रद्धालुओं की थकान मिटाने के लिए जगह-जगह लंगरों की व्यवस्था की गई थी। कहीं गरमा-गरम चाय बंट रही थी, तो कहीं प्रसाद और फलाहार। व्रत रखने वालों के लिए भी विशेष नाश्ते का इंतजाम किया गया।
हर लंगर पर सेवाभाव झलक रहा था। महिलाएं अपने हाथों से यात्रियों को पानी पिला रही थीं, तो युवा थकान उतारने के लिए चाय और नाश्ता परोस रहे थे। सड़क किनारे चलता यह सेवा भाव देखने वालों को भी भाव-विभोर कर गया।
सुरक्षा में प्रशासन चौकस
भीड़ को संभालने के लिए पुलिस प्रशासन ने पूरी सतर्कता बरती। इरास चौराहे से कोटड़ी तक का मार्ग एकतरफा कर दिया गया था। जगह-जगह पुलिसकर्मी तैनात रहे ताकि किसी तरह की दुर्घटना न हो। भीड़ का रेला होने के बावजूद माहौल अनुशासित रहा।
प्रसाद वितरण और आरती का अद्भुत नजारा
रात बढ़ने के साथ मंदिर में भीड़ और बढ़ती गई। 1:15 बजे जैसे ही आरती शुरू हुई, पूरा मंदिर "हर-हर महादेव" और "श्याम बाबा की जय" के नारों से गूंज उठा। आरती के बाद जब प्रसाद वितरण शुरू हुआ तो भक्तों की कतारें और लंबी हो गईं।
मंदिर ट्रस्ट की ओर से विशेष व्यवस्था की गई थी। ट्रस्ट के पदाधिकारी सुदर्शन गाडोलिया सहित अन्य कार्यकर्ता लगातार सेवा में जुटे रहे।
रोशनी से नहाया मंदिर
बीती रात कोटड़ी श्याम दरबार ओर मंदिर किसी स्वप्नलोक से कम नहीं लग रहा था। मंदिर के चारों ओर सजी रंग-बिरंगी रोशनियां हर किसी का मन मोह रही थीं। दूर से ही नजर आने वाली जगमगाहट भक्तों को खींच लाती थी। मंदिर परिसर में खड़े होकर हर कोई इस दृश्य को कैमरे में कैद करने से खुद को रोक नहीं पाया।
जलझूलनी महोत्सव की खास घड़ी का इंतजार
बुधवार दोपहर जलझूलनी महोत्सव का सबसे खास पल होगा, जब निज मंदिर से भगवान जल झूलने के लिए बाहर निकलेगे इस क्षण को देखने के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ रही हे। दोपहर तक मंदिर परिसर और आसपास की गलियां पूरी तरह भक्तों से भरी होगी । मंदिर से भगवान जैसे ही 28 घंटों के लिए भारत आयेगे गुलाल उड़नी शुरू हो जाएगी जयकारों से आसमान गुंजायमान होगा
लोग दर्शन के लिए बेकरार होकर कतारों में लगे रहेंगे। चारों ओर सिर्फ आस्था और भक्ति का ही रंग बिखरा हुआ होगा।
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सामाजिक समरसता का अनोखा संगम
इस यात्रा ने केवल धार्मिक उत्साह ही नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता का संदेश भी दिया। कोई जाति-पांति का भेदभाव नहीं, कोई ऊंच-नीच की दीवार नहीं—हर कोई बस "भक्त" बनकर आया था।
लंगरों पर अजनबी भी दोस्त बन जाते, कोई पानी पिलाता तो कोई थकान मिटाने के लिए कंधा बढ़ाता। यही इस यात्रा की असली खूबसूरती है, जहां इंसानियत और आस्था दोनों का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।
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भक्तों का अनुभव
यात्रा में शामिल एक बुजुर्ग बोले—
"मैं पिछले 20 साल से हर साल नंगे पांव यह यात्रा करता हूँ। जब तक बाबा के दर्शन नहीं हो जाते, तब तक चैन नहीं मिलता।"
वहीं एक महिला श्रद्धालु कविता ने कहा—
"हम पूरे परिवार के साथ आते हैं। यह यात्रा हमारे लिए सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि भावनात्मक जुड़ाव है। यहाँ सेवा भी मिलती है और आशीर्वाद भी।"
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आस्था का महाकुंभ
भीलवाड़ा से कोटड़ी तक यह पदयात्रा केवल दूरी तय करने का नाम नहीं, बल्कि भक्ति और विश्वास का महाकुंभ है। रातभर की यात्रा, थकान और तपन के बावजूद भक्तों का उत्साह इस बात का प्रतीक है कि आस्था के आगे हर कठिनाई छोटी पड़ जाती है।
