भीलवाड़ा में बारिश ने खोला राज़ — नालों-नदियों पर कब्ज़ा और योजनाओं की पोल , एक्सपर्ट की चेतावनी- नहीं चेते तो आएगी और बड़ी तबाही!
भीलवाड़ा . बारिस के विकराल रूप से भीलवाड़ा ही नहीं पूरा देश सहमा हुआ है। मौसम परिवर्तन के प्रभाव से कम समय में अधिक वर्षा का चलन प्रतिवर्ष बढ़ रहा है। अब पहले जैसा चौमासा या झड़ नहीं लगता है। पहले जब वर्षा होती थी तो कुछ दूरी पर मौजूद तालाब, जौहड़ व झीलों में बरसात का पानी एकत्र होता था। जब वे भर जाते थे तो पानी गांव से बाहर नालों और नदियों में जाता था।विगत 2 दशकों में गांवों से लेकर कस्बों व शहरों तक बड़ी संख्या में नाले ,तालाबों व झीलों को समाप्त कर दिया गया है। अब जो भी पानी बरसता है सीधे नदियों की ओर बहता है। इससे भूजल भी रिचार्ज नहीं हो पाता है। कम समय में अधिक वर्षा की कुछ घटनाओं को अगर छोड़ दें और ईमानदारी से आंकलन करें तो पाएंगे कि नदियों के उफान में कुछ भी असामान्य नहीं है। शहरो में सड़को के निर्माण में नियमो की अनेदखी ,नालो की चोड़ाई घटाना या बंद कर भूखंड काटना जैसी समस्या अब जलभराव का कारण बन रही हे
बाढ़ लाना नदियों का स्वभाव है। जब नदियां अपने पूर्ण वेग से बहती हैं तो वे अपने पानी का फैलाव संपूर्ण संभरण क्षेत्र में करती हैं, जोकि नदियों का अपना घर है। नदी की धारा के दोनों ओर का यह वही क्षेत्र होता है जोकि नदियों को जीवन देता है। भीलवाड़ा शहर की बात करे तो कोठारी नदी के भराव क्षेत्र को भरते हुए वहा भूखंडकाटे दिए गए ;जहा आज कई बड़े भवन कहे हो गए ,नदियों का बहावे क्षेत्र सिकुड़ गया , नगर विकास न्यास की अनदेखी का ये बड़ा उदारहण हे ;राजीव गाँधी ातोरियम के यहां से एक बड़ा नाला बहता था जिससे न्यास ने छोटा करने के साथ ही उसे इतना गुमा दिया की उसमे पानी ही नहीं समा पाटा हे ,ये बात महापौर ने हाल ही में कलेक्टर और विद्धायक के सामने उठाई ,पांसल रीद पर बालाजी मंदिर के पास एक बडा बरसाती नाला हुआ करता था जिसे एक कालेज और अन्य लोगो ने अपने स्वार्थ के चलते इतना छोटा क्र दिया की हर बार बरसात में मंदिर के पास सड़कपानी ही नहीं भरता बल्कि पांसल भीलवाड़ा का रास्ता अवरुद्ध हो जाता हे सड़क कट जाती हे ,मगर जिम्मेदार विभाग हर बार मॉक दर्शक बने रहते हे सड़क निर्माण पर बड़ी राशि खर्च कटे हे मगर नाले को पूरा खोलने की और उनका ध्यान ही नहीं जाता या फिर कोइ और वजह हे ; पुर रोड पर न्यास ने एक होटल को लाभ पहुंचने के लिए सर्विस लेने बनाई ,लाखो रपुए खर्च किय इ लेकिन उस पर पुरइन तरह अतिक्रमण हो गया सड़क पर कार बाजार, मार्बल मंडी . श्यु बाजार ,पेड़ पोधो की दुकाने और कपड़ा बाजार के अस्थाई शोरूम खुले हे ,चर्चा हे की इनसे माहवारी वसूली होती हे नहीं हटाने के नाम पर ,पुर तोड़ इतना व्यस्त मार्ग होते हुए ऐसे हालातो पर दध्यान नहीं दिया जाना अपने आप में कुछ कहता हे ये किसी से छिपा नहीं हे .बसंत विहार के भी आरसे ही हालात थे यहां भी नाला था . आजाद नगर और पांसल रोड पर मराठा कॉलोनी में मेजा की नहर हुआ करती थी जो आज ओझल हो गई हे और वहा सड़के बना दी गई हे ऐसे में पानी की निकासी में बढ़ा आई हे ऑर्डर पानी सड़को पर फैलने लगा हे ऊपर से सडको पर पपरत दर परत डामर चढ़ाये जाने से घरो में जल भराव के हालात बने हे .कुछ साल इसी तरह सड़के बनाए जाती रही तो घर तालाब बन जायेगे ,
जहां आम जनमानस के मन में यह सवाल कौंध रहा है कि आखिर नाले -नदियां इतनी झल्लाई हुई क्यों हैं जबकि नदियों की प्रकृति को जानने वाले इस बात से हैरान हैं कि बाढ़जैसे हालात पर इतना हल्ला क्यों है, क्या पहले कभी बाढ़ नहीं आई है? क्या पहले कभी इतनी वर्षा नहीं हुई है?
अगर हम इस सवाल का जवाब खुले मन से नहीं तलाशेंगे तो भविष्य में परेशानियां अधिक बढ़ेंगी। जरा सोचिए कि जब बांध और बैराज पर खतरे के निशान बनाए गए होंगे तो क्या तब भी उनमें उतनी ही गाद भरी होगी जितनी आज है? यह बड़ा सवाल है, क्योंकि गाद के कारण कोठारी नदी हो या शहर के नाले नालिया ऊपर उठ चुके है। वहीं, नदी किनारे अतिक्रमण के कारण नदी का बहाव क्षेत्र सिकुड़ चुका है। नदी के संभरण क्षेत्र में अट्टालिकाएं बना दी गई हैं। अब जब नदी का तल ऊंचा हो चुका है, किनारों को संकरा कर दिया गया है तथा उसके संभरण क्षेत्र को कब्जा लिया गया है तो आखिर ऐसे में बरसात का पानी जब नदी में आएगा तो न चाहते हुए भी खतरे के निशान को आसानी से छू लेगा और बंधनों को तोड़ता हुआ अपनी हदों में पहुंच ही जाएगा। कोठारी नदी के पीछे जाकर देखेंगे तो हालात कुछ अलग ही नजर आएंगे कितना अतिक्रमण और अवैध कब्जे हो रखे हे सबसे बड़ा कारण भी नदियों में किया गया अतिक्रमण ही है। अगर नदी के रास्ते में कोई होटल या घर न बनाया गया हो तो नदी कितनी ही तूफानी रफ्तार से बहे उससे नुकसान होगा ही नहीं। जब हम नदी के घर में ही अपना कब्जा जमा लेंगे तो नदी तो उसे छुड़ाने अवश्य आएगी और बार-बार आएगी।
हमें यह कतई नहीं भूलना चाहिए कि नदी की स्मृति बहुत तेज होती है। नदी कभी अपने मार्ग को नहीं भूलती है। वह जहां सौ वर्ष पहले बहती थी, अपने निश्चित अंतराल के अंतर से वहां अवश्य लौटेगी। शहर क्षेत्र में आबादी का दबाव और बेतरतीब विकास उसके परिपक्व होने की प्रक्रिया में बाधा बन रहा है।
वैसे लोगो में अब ये चर्चा भी होने लगी हे की नदी के डूबे क्षेत्र पालड़ी की और कॉलोनियां कट रही हे कभी बाढ़ आई तो उनकी क्या हालत होगी जबकि हाल की बारिस ने विजय सिंह पथिक नगर RCव्यास जैसी कॉलोनियों के घरो में पानी भर गया हे , शास्त्रीनगर के नाले को छोआ करने और साफ सफाई के आभाव से सड़को पर इतना पानी भरा की कए लोगो की कार खराब हो गई इंजन तक में पानी घुस गया ,
एक भविष्य वाणी की बात कर तो सोच कर ही दिल बैठे जाता हे की कबकी बाढ़ आई और मेजा बाँध टूटा तो बड़ा मंदिर का गुबंड़े डूब जाएगा ,तो फिर आर सी आर के और पालड़ी की कॉलोनियों का क्या हाल होगा !
भीलवाड़ा।
बरसात का मौसम इस बार पूरे शहर के लिए चुनौती बनकर सामने आया है। कुछ घंटों की तेज बारिश ने ही भीलवाड़ा के विकास मॉडल की पोल खोल दी। सड़कों पर तालाब जैसे हालात, घरों में घुसा पानी, टूटी सड़कें और डूबे मोहल्ले अब किसी प्राकृतिक आपदा का नतीजा नहीं बल्कि प्रशासनिक लापरवाही और बेतरतीब शहरीकरण का आईना बन गए हैं।
पहले और अब का फर्क
पहले जब बारिश होती थी तो तालाब, जोहड़ और झीलें पानी से भर जाती थीं। गांवों से लेकर शहर तक पानी धीरे-धीरे नालों और नदियों में पहुंचता था। भूजल रिचार्ज होता था और बाढ़ के हालात कम ही बनते थे। लेकिन पिछले दो दशकों में भीलवाड़ा सहित आसपास के कस्बों में तालाब और नाले पाट दिए गए। अब जो भी पानी बरसता है, वह सीधे नदियों की ओर बहता है और शहर के बीच में जलजमाव बनाकर तबाही मचाता है।
कोठारी नदी का दर्द
भीलवाड़ा शहर की शान रही कोठारी नदी अब अतिक्रमणों के बोझ तले कराह रही है।
नदी के भराव क्षेत्र में भूखंड काटकर कॉलोनियां खड़ी कर दी गईं।
बड़े-बड़े भवन नदी के बहाव क्षेत्र को रोक रहे हैं।
नाले संकरे कर दिए गए।
राजीव गांधी ऑडिटोरियम क्षेत्र में कभी बड़ा नाला बहता था। नगर विकास न्यास ने न केवल उसे छोटा किया बल्कि उसकी दिशा भी मोड़ दी। हालात ये हैं कि बरसाती पानी अब उसमें समा ही नहीं पाता। महापौर ने हाल ही में कलेक्टर और विधायक के सामने यह मुद्दा उठाया, लेकिन हालात जस के तस हैं।
पांसल रोड और बालाजी मंदिर का संकट
पांसल रोड पर बालाजी मंदिर के पास कभी बड़ा बरसाती नाला हुआ करता था। स्थानीय कॉलेज और अन्य लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए उसे इतना छोटा कर दिया कि अब हर बारिश में यहां सड़क डूब जाती है और पांसल-भीलवाड़ा का रास्ता अवरुद्ध हो जाता है।
हर बार सड़क कट जाती है, लाखों रुपये की मरम्मत होती है, लेकिन मूल समस्या — नाले को खोलने की — कोई नहीं देखता। विभाग हर बार मूकदर्शक बने रहते हैं।
पुर रोड और अतिक्रमण की कहानी
पुर रोड पर नगर विकास न्यास ने एक होटल को लाभ पहुंचाने के लिए सर्विस लेन बनाई। करोड़ों खर्च कर बनाए गए इस मार्ग पर आज कार बाजार, मार्बल मंडी, शू बाजार और अस्थाई दुकानों ने कब्ज़ा कर रखा है। पेड़-पौधों की दुकानों से लेकर कपड़ा बाजार तक फैल गया है। चर्चा ये भी है कि इनसे हर महीने वसूली होती है, इसी कारण इन्हें हटाया नहीं जाता। यह इलाका शहर का सबसे व्यस्त मार्ग है, लेकिन अतिक्रमण पर जिम्मेदार आंखें मूंदे हुए हैं।
बसंत विहार, आजाद नगर और मराठा कॉलोनी के हालात
बसंत विहार: यहां कभी बड़ा नाला हुआ करता था। अब वह पूरी तरह दब गया है।
आजाद नगर और पांसल रोड: यहां मराठा कॉलोनी से गुजरती मेजा नहर गायब हो चुकी है। उसकी जगह सड़क बना दी गई है। नतीजा यह है कि पानी की निकासी रुक गई और बारिश का पानी सड़कों पर फैलने लगा।
बार-बार सड़कें ऊंची करने के लिए परत-दर-परत डामर डाला जा रहा है। इससे सड़कें मकानों से ऊंची हो गईं और बारिश का पानी घरों में भरने लगा। लोग कह रहे हैं कि अगर यही हाल रहा तो आने वाले सालों में घर तालाब बन जाएंगे।
विजय सिंह पथिक नगर और आरसी व्यास कॉलोनी डूबी
हाल ही की बारिश में विजय सिंह पथिक नगर और आरसी व्यास कॉलोनी में पानी घरों तक घुस गया। कई मकानों में सामान खराब हुआ और लोग घुटनों तक पानी में फंसे रहे।
शास्त्री नगर का हाल भी अलग नहीं रहा। नाले की सफाई न होने और चौड़ाई घटने से सड़कों पर इतना पानी भर गया कि कई कारों के इंजन तक पानी पहुंच गया। लाखों रुपये का नुकसान हुआ।
पालड़ी क्षेत्र — आने वाले खतरे की जड़
शहर में लोग अब यह चर्चा करने लगे हैं कि पालड़ी की ओर काटी जा रही नई कॉलोनियां भविष्य में भीषण तबाही का कारण बनेंगी। अभी तो थोड़ी सी बारिश में कॉलोनियां डूब जाती हैं। अगर कभी बड़ी बाढ़ आई तो इन कॉलोनियों का नामोनिशान मिट जाएगा।
सबसे बड़ा खतरा : मेजा बांध
लोगों के बीच सबसे डरावनी चर्चा यह है कि यदि कभी मेजा बांध टूटा तो क्या होगा? कहा जा रहा है कि बड़ी बाढ़ आने पर बड़ा मंदिर का गुंबद तक डूब जाएगा। ऐसी स्थिति में आरसी व्यास और पालड़ी क्षेत्र की कॉलोनियों की तबाही का अंदाज़ा भी नहीं लगाया जा सकता। यह भविष्यवाणी सुनकर ही लोग सिहर उठते हैं।
असल गुनहगार कौन?
नालों और नदियों पर अतिक्रमण करने वाले।
नगर विकास न्यास और जिम्मेदार विभाग, जिन्होंने आंखें मूंद रखी हैं।
नियमों को ताक पर रखकर सड़कें और कॉलोनियां बनाने वाले ठेकेदार।
निष्कर्ष — यह आपदा नहीं, हमारी करनी है
भीलवाड़ा में आई बाढ़ या जलभराव किसी "प्राकृतिक आपदा" का परिणाम नहीं है। यह इंसानों द्वारा की गई गलतियों का सीधा नतीजा है।
नाले खत्म कर दिए गए।
तालाब पाट दिए गए।
नदियों का बहाव क्षेत्र कब्ज़ा लिया गया।
और जिम्मेदार हर साल मूकदर्शक बने रहते हैं।
नदी अपनी धारा कभी नहीं भूलती। चाहे सौ साल लग जाएं, वह अपने रास्ते लौटकर जरूर आती है। आज भीलवाड़ा ने उसके घर में कब्ज़ा कर लिया है। कल जब वह अपनी जमीन छुड़ाने आएगी, तो तबाही का मंजर और बड़ा होगा।
