सडक़ किनारे निगम ही बना रहा कचरा डंपिंग जोन: स्वच्छता पर करोड़ों खर्च, लेकिन बदबू और गंदगी से बेहाल आमजन

भीलवाड़ा प्रेमकुमार गढ़वाल। शहर को स्वच्छ और सुंदर बनाने के दावे करने वाला नगर निगम खुद ही सबसे बड़ा प्रदूषणकारी बन चुका है। हालात यह हैं कि निगम के कर्मचारी मोहल्लों से कचरा उठाकर ट्रेंचिंग ग्राउंड ले जाने की बजाय उसे सडक़ों के किनारे ही पटक जाते हैं। नतीजा यह कि शहरभर में जगह-जगह अघोषित डंपिंग जोन बन गए हैं। पांसल रोड स्थित भोपाल माइनिंग के पास द्वारका कॉलोनी कॉर्नर और महिला आईटीआई गेट इसका ताज़ा उदाहरण हैं। यहां कचरे के ढेर से निकलने वाली सड़ांध ने राहगीरों, दुकानदारों और स्थानीय निवासियों का जीना मुश्किल कर दिया है।
निगम कर्मचारी ही डाल रही कचरा
पांसल रोड निवासी गोपाल टेलर बताते हैं - सुबह-सुबह निगम के कर्मचारी आते है और मोहल्ले का कचरा इक_ा करने के बाद द्वारका कॉलोनी के कॉर्नर पर डंप करके चले जाते है। कई बार मना किया, पर सफाईकर्मी सुनते ही नहीं। तीन-तीन दिन, कभी पूरा हफ्ता कचरा वहीं पड़ा रहता है।
लोगों के मुताबिक, जब जिम्मेदार अधिकारियों से बात की गई तो उन्होंने साफ कह दिया कि उन्हें तो इसकी जानकारी ही नहीं है। सवाल यह उठता है कि अगर खुद नगर निगम के सफाईकर्मी ही सडक़ किनारे कचरा पटक रहे हैं, तो फिर स्वच्छता अभियान का क्या मतलब रह गया?
मवेशियों का जमावड़ा और दुर्घटनाओं का खतरा
कचरे के ढेर के पास मवेशी लगातार जमा रहते हैं। इससे न केवल गंदगी फैल रही है बल्कि दुर्घटना का खतरा भी बना रहता है। राहगीरों को रोजाना इस परेशानी से जूझना पड़ रहा है। क्षेत्र के व्यापारियों का कहना है कि कचरे के कारण ग्राहक भी उनकी दुकानों तक आने से कतराते हैं। एक व्यापारी ने तंज कसते हुए कहा - निगम हमारे इलाके को बाजार नहीं, कचरा घर बना रहा है।
महिला आईटीआई गेट पर गंदगी और बदबू
पांसल चौराहा से पन्नाधाय सर्किल मार्ग पर स्थित महिला आईटीआई के गेट का हाल भी यही है। क्षेत्रीय लोग ही नहीं, बल्कि सफाईकर्मी यहां भी कचरा पटक जाते हैं। मुख्य मार्ग के किनारे गंदगी और बदबू के कारण यहां से गुजरना तक मुश्किल हो जाता है। छात्राएं, स्थानीय लोग और दुकानदार सभी इस समस्या से त्रस्त हैं। एकता कॉलोनी और आसपास के बाशिंदे बताते हैं कि गंदगी और बदबू के कारण लोगों को सिरदर्द, उल्टी जैसी दिक्कतें तक होने लगी हैं। खास बात यह है कि नगर परिषद ने घर-घर से कचरा संग्रहित करने के लिए ऑटो टिपर भी चला रखे हैं, इसके बावजूद आलम यह है।
करोड़ों का खर्च, सिस्टम नदारद
नगर निगम हर साल सफाई व्यवस्था पर करोड़ों रुपये खर्च करता है। कूड़ा उठाने और सडक़ें साफ रखने के नाम पर भारी बजट स्वीकृत होता है। लेकिन हकीकत यह है कि शहर की नालियां जाम हैं, सडक़ें गंदगी से पटी पड़ी हैं और जगह-जगह कचरे के ढेर लगे हुए हैं। दरअसल, पूरे सिस्टम में ही कोई ठोस व्यवस्था नजर नहीं आती। न कचरा समय पर उठता है, न उसका निस्तारण सही जगह होता है। सवाल उठता है कि आखिर नगर निगम का बजट कहां खर्च हो रहा है?
स्वच्छता अभियान पर बड़ा सवाल
देशभर में स्वच्छ भारत मिशन चलाया जा रहा है। शहर में स्वच्छता का नारा दिया जा रहा है। लेकिन जब नगर निगम की गाडिय़ां ही सडक़ किनारे कचरा पटक दें, तो यह अभियान महज दिखावा ही साबित होता है। आमजन का कहना है कि स्वच्छता का ढोल पीटने वाले जिम्मेदार खुद गंदगी फैलाने में लगे हैं।
आमजन की चेतावनी - समाधान नहीं तो होगा आंदोलन
लोगों का कहना है कि वे लंबे समय से इस समस्या से जूझ रहे हैं। बार-बार शिकायतों के बावजूद समाधान नहीं हुआ। व्यापारियों ने साफ चेतावनी दी है कि अगर निगम ने जल्द ही स्थायी व्यवस्था नहीं की तो वे सडक़ पर उतरकर आंदोलन करेंगे। उनका कहना है - करोड़ों रुपये सफाई के नाम पर खर्च हो रहे हैं, फिर भी शहर गंदगी में डूबा है। जनता अब और चुप नहीं बैठेगी।
जिम्मेदारों की कब टूटेगी नींद?
शहरवासी पूछ रहे हैं - जब निगम खुद ही सडक़ किनारे कचरा पटक देगा, तो आमजन से स्वच्छता की उम्मीद कैसे की जा सकती है? क्या निगम की जिम्मेदारी सिर्फ बजट खर्च करना है या वास्तव में शहर को साफ रखना भी?
फिलहाल जवाब किसी के पास नहीं है, लेकिन सड़ांध और गंदगी से बेहाल भीलवाड़ा अब ठोस कार्रवाई की मांग कर रहा है।
