कांग्रेस में जिलाध्यक्ष पद की दौड़: दिल्ली बैठक से पहले 'मान-मनुहार' और 'जोड़तोड़' की राजनीति गरमाई,भीलवाड़ा में इनकी है चर्चा

भीलवाड़ा हलचल। राजस्थान प्रदेश कांग्रेस में संगठन सृजन अभियान के तहत जिलाध्यक्षों की नियुक्ति की प्रक्रिया अब निर्णायक मोड़ पर पहुँच रही है। सभी 30 पर्यवेक्षकों की गुरुवार को दिल्ली में राष्ट्रीय महासचिव के.सी. वेणुगोपाल बैठक ले रहे हैं, जिसमें उन्हें जिलाध्यक्ष चयन प्रक्रिया की जानकारी दी जाएगी और संबंधित दस्तावेज सौंपे जाएंगे। यहीं से पर्यवेक्षकों को जिलों का आवंटन होगा, और कई को एक से अधिक जिलों की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी।
भीलवाड़ा में भी इस प्रक्रिया को लेकर हलचल तेज हो गई है। कांग्रेस जिलाध्यक्ष की दौड़ में शामिल नेताओं ने सक्रियता दिखाते हुए अपनी-अपनी लॉबिंग शुरू कर दी है। पार्टी में खींचतान की स्थिति भी सामने आ रही है, जिससे आने वाले दिनों में सियासी सरगर्मी और बढ़ना तय है।
गुपचुप लॉबिंग और जोड़तोड़
दिल्ली बैठक से पहले ही दावेदार नेताओं ने जिले और ब्लॉक स्तर के कार्यकर्ताओं, वरिष्ठ नेताओं और पदाधिकारियों से ‘मान-मनुहार’ शुरू कर दी है। उनका मकसद यही है कि जब पर्यवेक्षक फीडबैक लें तो माहौल उनके पक्ष में नजर आए। कई दावेदार तो दिल्ली स्तर पर भी लॉबिंग कर रहे हैं और उन राज्यों के नेताओं से सीख लेने की कोशिश कर रहे हैं जहाँ पहले ही संगठन सृजन अभियान के तहत नियुक्तियां हो चुकी हैं।
चयन का आधार
यह नियुक्ति महज हाई-प्रोफाइल सिफारिशों पर आधारित नहीं होगी। पर्यवेक्षक उम्मीदवारों की संगठनात्मक भूमिका, सामाजिक पकड़ और सक्रियता का फीडबैक लेंगे। इसके बाद प्रत्येक जिले से तीन नामों का पैनल एआईसीसी को भेजा जाएगा। अंतिम फैसला प्रदेश के बड़े नेताओं—मुख्यमंत्री और प्रदेशाध्यक्ष—की राय लेकर होगा, ताकि संगठन और सरकार के बीच तालमेल बना रहे।
भीलवाड़ा में संभावित दावेदार
भीलवाड़ा में कांग्रेस जिलाध्यक्ष की कुर्सी पर कई नाम चर्चा में हैं। इनमें मौजूदा जिलाध्यक्ष अक्षय त्रिपाठी, पूर्व सभापति ओम नाराणीवाल, महेश सोनी, राजेश चौधरी, दुर्गेश शर्मा और सबसे बड़ा नाम पूर्व मंत्री रामलाल जाट का शामिल हैं।
भीलवाड़ा कांग्रेस वैसे तो कई खेमों में बंटी हुई है, लेकिन सबसे प्रभावशाली गुट पूर्व मंत्री रामलाल जाट और एआईसीसी सचिव धीरज गुर्जर के माने जाते हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस रस्साकशी में कौन बाज़ी मारता है।
कांग्रेस का यह अभियान नेताओं के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं। भीलवाड़ा में दावेदारों की कशमकश आने वाले दिनों में और तेज होगी। हालांकि चर्चाएँ यह भी हैं कि अगर कांग्रेस अपनी नीति पर कायम रही, तो केवल जुझारू और जमीनी नेता ही जिलाध्यक्ष की कुर्सी तक पहुँच पाएगा।
