भीलवाड़ा से भी मौत बनकर दौड़ रहीं वीडियो कोच बसें, नियमों को ताक में रख कर की जाती हे मोडीफाई

भीलवाड़ा से भी मौत बनकर दौड़ रहीं वीडियो कोच बसें, नियमों को ताक में रख कर की जाती हे मोडीफाई
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भीलवाड़ा हलचल। भीलवाड़ा से देश के विभिन्न हिस्सों में चल रही वीडियो कोच बसें कभी भी सफर को मौत की यात्रा में बदल सकती हैं। जैसलमेर-जोधपुर हाईवे पर ऐसी ही एक बस में आग लगने से 20 यात्रियों की दर्दनाक मौत ने इस खतरे की सच्चाई उजागर कर दी है।

सूत्रों के अनुसार, भीलवाड़ा से अहमदाबाद, सूरत, मुंबई, दिल्ली और कानपुर मार्गों पर दौड़ रहीं कई वीडियो कोच बसों की हालत भी उसी तरह की है जैसी जैसलमेर-जोधपुर मार्ग पर हादसे का शिकार हुई बस की थी।





इन बसों में यात्रियों के लिए नाममात्र की जगह छोड़ी जाती है। बस की छत, सीटों के नीचे और यहां तक कि डिब्बे के अंदरूनी हिस्से को मोडिफाइड कर तहखानों में माल भरा जाता है। इससे बस का संतुलन बिगड़ जाता है और हादसे की आशंका कई गुना बढ़ जाती है।

परिवहन विभाग के सूत्रों का कहना है कि ऐसी बसों को स्वीकृति नहीं दी जा सकती, लेकिन मिलीभगत और लापरवाही के चलते ये बसें खुलेआम सड़कों पर दौड़ रही हैं—हर पल यात्रियों की जान को जोखिम में डालते हुए।

स्लीपर बसों में ड्राइवर थकान और सुरक्षा का गंभीर मुद्दा

ज्यादातर **स्लीपर बसें** 300 से 1000 किलोमीटर की दूरी रात में ही तय करती हैं। यात्रियों को सोने की सुविधा होती है, लेकिन लंबे रूट पर **ड्राइवर के थकने और झपकी आने** की संभावना रहती है। इस पर **ड्राउजीनेस अलर्ट सिस्टम** की उपयोगिता पर भी चर्चा हो रही है।

ड्राउजीनेस अलर्ट सिस्टम ड्राइवर को नींद आने पर चेतावनी देता है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, अगर बस में यह सिस्टम लगा हो तो ड्राइवर को समय रहते जगाया जा सकता है। दुर्घटना की स्थिति में जागे हुए पैसेंजर्स की प्रतिक्रिया सोए हुए पैसेंजर्स की तुलना में बेहतर होती है। शुरुआती **2 मिनट की प्रतिक्रिया** ही अक्सर जीवन और मृत्यु तय कर सकती है। ऊपरी बर्थ पर सो रहे यात्री के बचकर निकलने की संभावना सबसे कम होती है।




एसी स्लीपर बसों में अन्य खतरें**

ऑपरेटर अक्सर बसों को **मॉडिफाइड** कराते हैं, जिसमें सेफ्टी उपायों और वेंटिलेशन का ध्यान नहीं रखा जाता। इससे यात्रियों को घुटन महसूस होती है और आग जैसी स्थिति में यह और भी भयावह हो जाता है। कई बार एसी ही आग फैलने का कारण बन जाता है।

स्लीपर बसों पर विदेशों का अनुभव**

स्लीपर बसों की शुरुआत पश्चिमी देशों में हुई थी और इन्हें मुख्य रूप से ऐसे एंटरटेनर ग्रुप्स इस्तेमाल करते थे, जिन्हें लगातार अलग-अलग शहरों में प्रदर्शन देना होता था। धीरे-धीरे आम यात्रियों के लिए भी इन्हें इस्तेमाल किया गया, लेकिन सुरक्षा जोखिम के कारण कई देशों ने इन्हें चलन से बाहर कर दिया। चीन ने स्लीपर बसों पर **11 साल पहले ही प्रतिबंध** लगा दिया था।

इससे स्पष्ट है कि **स्लीपर बसें सुविधाजनक होने के बावजूद उच्च जोखिम वाली यातायात व्यवस्था** हैं और सुरक्षा उपायों के बिना इनका उपयोग खतरनाक साबित हो सकता है।

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