नहाए खाये से आज से शुरू होगा महापर्व छठ,कल मनाएंगे ख़ेरना

भीलवाड़ा (हलचल)।
लोक आस्था का महापर्व छठ आज से प्रारंभ हो रहा है। चार दिनों तक चलने वाले इस व्रत की शुरुआत नहाय-खाय से होती है। इस दिन व्रतीजन स्नान कर अपने शरीर और मन को शुद्ध करते हैं, फिर प्रसाद के रूप में कद्दू-भात (चावल, चने की दाल और कद्दू की सब्जी) ग्रहण कर व्रत का शुभारंभ करते हैं।
🌞 पवित्रता और संयम का पर्व
छठ पर्व सूर्य देव और छठी मैया की उपासना का प्रतीक है। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ा है, बल्कि इसमें प्रकृति, जल और अग्नि तत्व की उपासना भी की जाती है। व्रतीजन अगले चार दिनों तक शुद्धता, संयम और नियमों का पालन करते हुए उपवास रखते हैं।
🍚 क्यों खाते हैं कद्दू-भात?
नहाय-खाय के दिन कद्दू-भात खाने की परंपरा सदियों पुरानी है। धार्मिक मान्यता के अनुसार,
कद्दू को शुद्ध और सात्विक भोजन माना गया है, जो शरीर को शुद्ध करता है।
चावल जीवन की समृद्धि और स्थिरता का प्रतीक है।
चना दाल ऊर्जा का स्रोत मानी जाती है और उपवास की तैयारी के लिए उपयुक्त आहार है।
कहा जाता है कि इस दिन व्रती जब सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं, तो उनका शरीर व मन आने वाले कठोर उपवास के लिए तैयार हो जाता है। इस भोजन को केवल शुद्धता से बने मिट्टी या पीतल के बर्तनों में ही बनाया जाता है और घर में पूर्ण स्वच्छता रखी जाती है।
🌅 ये हे विधान
दूसरा दिन (खरना): शाम को गंगाजल से स्नान कर गुड़-चावल की खीर का प्रसाद बनता है।
तीसरा दिन: शाम और सुबह सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है।
चौथा दिन: उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन होता है।
छठ केवल एक व्रत नहीं, बल्कि लोक जीवन में अनुशासन, पवित्रता और प्रकृति के प्रति आभार का प्रतीक है।
भीलवाड़ा में भी इस पर्व को लेकर तैयारियां शुरू हो गई हे घाटों की सफाई और सजावट की जाएगी , जहां व्रती रविवार को खरना का प्रसाद बनाएंगे और सोमवार से मुख्य पूजन की शुरुआत होगी।मैथिल सेवा संस्थान के अध्यक्ष संजय झा ने बताया कि छठ महापर्व के चार दिनों के दौरान भगवान सूर्य और उनकी बहन मां उषा की पूजा-अर्चना, अर्घ्य और मनोकामनाएं मांगी जाती हैं। यह पर्व एकमात्र ऐसा है जिसमें सूर्य देव की आराधना **डूबते सूर्य को अर्घ्य** देकर की जाती है।
