फलोदी-जयपुर के बाद भीलवाड़ा की सड़कें बन सकती हैं अब ‘डेथ कॉरिडोर’!: भीलवाड़ा बीच सड़क पर पार्किंग होटल,अस्थाई शोरूम दे हैं हादसो को न्योता, प्रशासन बना मूकदर्शक
भीलवाड़ा हलचल। राजस्थान में सड़कों पर मौतें अब नई खबर नहीं रहीं। हर दूसरे दिन कहीं न कहीं सड़क पर चीखें गूंजती हैं, तो कहीं आग की लपटों में जिंदगियां खत्म हो जाती हैं। बीते दिनों फलोदी और जयपुर में हुए दर्दनाक हादसों ने पूरे प्रदेश को झकझोर दिया। लेकिन सवाल यह है कि क्या भीलवाड़ा इन चेतावनियों से कुछ सीखेगा या फिर किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहा है?
भीलवाड़ा शहर की सड़कें अब विकास की पहचान नहीं बल्कि मौत के जाल में बदल रही हैं। अतिक्रमण, अवैध पार्किंग और प्रशासन की खामोशी ने मिलकर शहर को एक ‘डेथ कॉरिडोर’ में तब्दील कर दिया है। जिला मुख्यालय के बीचोंबीच हालात इतने खराब हैं कि कोई भी दिन बड़ा हादसा ला सकता है।
अतिक्रमण का अड्डा बन चुकी सड़कों पर मौत का खतरा
जिला कलेक्टर कार्यालय के पास से लेकर गंगापुर रोड तक हालात बदतर हैं। गांधीनगर से बिलिया तक सड़क किनारे जिस तरह दुकानों और वाहनों ने कब्जा कर रखा है, वह किसी भी वक्त बड़ा हादसा करा सकता है। ओम टावर के बाहर आधी सड़क पर कारे पार्किंग में तब्दील हो चुकी है। गाड़ियों की लंबी कतारें आमजन के लिए खतरा बन गई हैं, मगर न तो क्षेत्रीय पुलिस और न ही यातायात विभाग के अधिकारियों की नजर इन पर जाती है?
फुटपाथों का अस्तित्व तो मानो मिट चुका है। सड़कों पर ही दुकानें चल रही हैं, ठेले लगे हैं, ग्राहक खड़े हैं और यातायात रेंगता हुआ निकलता है।
प्रतापनगर की सर्विस लेन बन गई मार्केट
प्रताप नगर स्कूल से महाराणा प्रताप सर्किल तक बनाई गई सर्विस लेन अब सड़क कम, बाजार ज्यादा दिखती है। यहां अस्थाई जूते-चप्पल, कपड़ों के शोरूम, कार बाजार, मार्बल मंडी और नर्सरियां तक खुल चुकी हैं। ऐसा लगता है जैसे नगर विकास न्यास ने यह सड़क किसी निजी संस्था को ठेके पर दे दी हो।
शहर का यातायात हर वक्त जाम में फंसा रहता है, और ऐसे में तेज रफ्तार या लापरवाही किसी भी पल जानलेवा हादसे को जन्म दे सकती है।
पुराने बस स्टैंड से चित्तौड़ रोड तक खतरे की रेखा
पुराने बस स्टैंड चौराहे की स्थिति तो और भयावह है। यहां फुटपाथ पर ढाबे और भोजनालय खुलेआम संचालित हैं। लोगों की भीड़ और वाहनों की आवाजाही के बीच किसी दिन आग लग गई या सिलेंडर फटा तो यह इलाका कब्रगाह में बदल जाएगा। चित्तौड़ रोड की सर्विस लेन पर भी यही हालात हैं। न कोई व्यवस्था, न कोई नियंत्रण। सड़क पर सैकड़ो कुर्सियां लगाकर खाना परोसा जा रहा हे जबकि ठीक सामने यातायात विभाग का मुख्यालय हे ,काशीपुरी से ओवरब्रिज तक हर दिन हादसे का डर
काशीपुरी से ओवरब्रिज तक की सड़क भी पूरी तरह अतिक्रमण की चपेट में है। सड़क के दोनों ओर कबाड़, मंडी और सामान फैला हुआ है। कई बार छोटे-बड़े हादसे हो चुके हैं, लेकिन प्रभावशाली लोगों की पकड़ इतनी मजबूत है कि नगर निगम भी कुछ नहीं कर पा रहा। प्रशासन की खामोशी अब सवाल बन चुकी है — क्या कार्रवाई सिर्फ गरीब ठेले वालों पर ही होगी, या अमीर कब्जाधारकों पर भी?
फालोदी और जयपुर के हादसों से सबक नहीं
पिछले दिनों फलोदी में बस और ट्रक की टक्कर में मे 15 लोग मारे गए , जैसलमेर में बसे मे आग लगने से कई लोग जिंदा जल गए। जयपुर में भी एक बेकाबू ट्रोले ने कई परिवारों की खुशियां छीन लीं। इन दर्दनाक घटनाओं ने पूरे राजस्थान को हिला दिया। लेकिन भीलवाड़ा में मानो इन हादसों से कोई सबक नहीं लिया गया। यहां न तो ट्रैफिक प्लानिंग है, न नियमित निगरानी, और न ही अतिक्रमण हटाने की ठोस मंशा।
हर बार हादसे के बाद जांच के नाम पर फाइलें खुलती हैं, मीटिंग होती है, कुछ दिन बयानबाजी चलती है — और फिर सब कुछ पहले जैसा।
नगर निगम और प्रशासन दोनों बेखबर
नगर निगम की हालत यह है कि उसके दफ्तर के आस-पास ही अतिक्रमण पसरा हुआ है। कृषि उपज मंडी, विद्युत विभाग और महेश स्कूल के बाहर फुटपाथ पूरी तरह कब्जे में हैं। जिन अफसरों को इन हालात पर कार्रवाई करनी चाहिए, उनके दफ्तर के आसपास ही नियम तोड़े जा रहे हैं। सवाल यह है कि जब जिम्मेदार ही मूकदर्शक बन जाएं, तो आमजन किससे उम्मीद करे?
‘डेथ कॉरिडोर’ बनने से पहले उठे कदम
भीलवाड़ा अब सड़क हादसों का ticking time bomb बन चुका है। शहर में लगातार बढ़ते वाहन, कम होती सड़कें, गायब होते फुटपाथ और शून्य निगरानी — ये सभी मिलकर किसी बड़ी त्रासदी की जमीन तैयार कर रहे हैं।
अगर प्रशासन अब भी नहीं जागा तो फलोदी और जयपुर जैसे हादसे यहां दोहराना सिर्फ वक्त की बात होगी। भीलवाड़ा की सड़कें अब चेतावनी दे रही हैं —या तो सुधार लो, वरना यह शहर अगला ‘डेथ कॉरिडोर’ कहलाएगा।
