50 जिलाध्यक्षों के चयन का काम पूरा,: AICC ने मांगा 6-6 नामों का पैनल — इस बार नहीं चलेगी सिफारिश,भीलवाड़ा उलझा गुटबाजी में

भीलवाड़ा हलचल शहर में कांग्रेस संगठन को लेकर हलचल तेज हो गई है. राजस्थान में कांग्रेस का संगठन सृजन अभियान अब निर्णायक दौर में है और पार्टी ने साफ कर दिया है कि इस बार जिलाध्यक्षों की नियुक्ति में किसी सांसद, विधायक या बड़े नेता की सिफारिश का कोई असर नहीं होगा. यह बदलाव पुराने ढर्रे को तोड़कर संगठन में नई ऊर्जा भरने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है. प्रदेश के 50 जिलों में यह अभियान अंतिम चरण में है और भीलवाड़ा भी इस प्रक्रिया का अहम हिस्सा बन गया है.
केंद्रीय पर्यवेक्षक पिछले दो हफ्तों से जिलों में रहकर कार्यकर्ताओं, स्थानीय नागरिकों और प्रबुद्धजनों से बातचीत कर रहे हैं. हर जिले से छह नामों का पैनल तैयार कर केंद्र को भेजा जाएगा. पार्टी का कहना है कि इस प्रक्रिया में पूरी पारदर्शिता रखी जा रही है ताकि जिलाध्यक्ष का चयन केवल योग्यता और कार्यकर्ता आधार पर हो. एआईसीसी का मानना है कि मजबूत जिलाध्यक्ष ही संगठन को निचले स्तर से फिर खड़ा कर सकते हैं और चुनावी रणनीति को धार दे सकते हैं.
भीलवाड़ा में जिलाध्यक्ष पद को लेकर कई चेहरे मैदान में हैं. वरिष्ठ नेताओं के साथ-साथ युवा नेता भी सक्रिय हैं और कार्यकर्ताओं से संवाद कर अपनी स्थिति मजबूत करने में जुटे हैं. पर्यवेक्षकों ने यहां कार्यकर्ताओं से जो फीडबैक लिया है, उसमें सक्रियता, जनता में छवि, संगठनात्मक पकड़ और गुटबाजी से दूरी को अहम मानदंड बनाया गया है.
हाईकमान ने तय कर रखा है कि पर्यवेक्षक अपनी रिपोर्ट 24 अक्टूबर तक सौंप देंगे. इसके बाद एआईसीसी महासचिव केसी वेणुगोपाल वन-टू-वन फीडबैक लेकर जिलाध्यक्षों की घोषणा करेंगे. इसी के साथ भीलवाड़ा में भी यह तय हो जाएगा कि जिले की कमान किसके हाथ में जाएगी.
भीलवाड़ा में खास नजरें जिलाध्यक्ष पद पर टिकी हैं क्योंकि यहां का संगठन लंबे समय से गुटबाजी और नेतृत्व संकट से गुजर रहा है. जिले की राजनीति दो बड़े नेताओं के इर्द-गिर्द घूमती रही है और माना जा रहा है कि दोनों में से कोई एक या उनका समर्थक ही इस बार भी दौड़ में है. हालांकि इस बार माहौल कुछ अलग है. युवाओं में भी नेतृत्व की चाहत है और हाईकमान की नजर भी ऐसे कार्यकर्ताओं पर है जो पार्टी को जमीन पर मजबूत कर सकें.
अगर भीलवाड़ा में कांग्रेस को नई ऊर्जा देनी है तो जिलाध्यक्ष की कुर्सी पर ऐसा चेहरा बैठाना होगा जो सिर्फ गुट विशेष का नहीं बल्कि पूरे संगठन का नेता बन सके. यही वजह है कि इस बार का चयन सिर्फ एक पद की घोषणा नहीं बल्कि जिले में कांग्रेस की भविष्य की दिशा भी तय करेगा.
