स्लीपर बसें जानलेवा!: डिजाइन में छेड़छाड़ कर 47 की जगह लगा रहे बस में 65 सीट, पलटने का रहता है खतरा

डिजाइन में छेड़छाड़ कर 47 की जगह लगा रहे  बस में 65 सीट, पलटने का रहता है खतरा
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भीलवाड़ा./ नोएडा(हलचल) राजस्थान ही नहीं देश भर में चल रही वीडियो कोच बसो की डिजाइन में छेड़छाड़ कर उनमें क्षमता से ज्यादा वजन ढोने की डिजाइन तैयार कर यात्रियों की जान जोखिम में डाली जा रही है नोएडा में ऐसी ही 167 बसों को जप्त किया गया है जबकि राजस्थान में इस तरह की कई बसे बे रोक-टोक चल रही है।

जानकारो की माने तो वीडियो कोच बसो की डिजाइन में छेड़छाड़ कर उन्हें अधिक सीटें वाली बनाने के साथियों में वजन ढोने के लिए नीचे चैंबर अलग से बनाया जा रहा है जिससे उनमें निधरित सीमा से कई गुना अधिक वजन बढ़ जाता है और फिर वह हादसे का शिकार होती है। लेकिन प्रदेश में परिवहन विभाग इस और मूक दर्शक बना हुआ है।


निजी बस संचालक अतिरिक्त लाभ कमाने के चक्कर में बसों की मूल डिजाइन में छेड़छाड़ कर हर दिन हजारों मुसाफिरों की जान जोखिम में डाल रहे हैं। परिवहन विभाग की जांच में बस संचालकों का यह खेल उजागर हुआ है। बीते दो माह में ऐसी 167 स्लीपर बस पकडी गई हैं।

इसमें नागालैंड, दमन दीव, अरुणाचल प्रदेश, बिहार की बसें शामिल हैं। इन राज्यों में बसों की डिजाइन के लिए तय ऑटोमैटिक आइडेंटिफिकेशन सिस्टम (एआईएस) कोड में बरती जा रही शिथिलता का बस संचालक लाभ उठा रहे हैं। देश में सभी बसों के लिए अलग-अलग एआईएस डिजाइन कोड है। इसके अनुसार ही सीटों का निर्धारण होता है।

भार वहन करते हैं। प्रत्येक यात्री का 60 किग्रा शारीरिक और 25 किग्रा सामान का वजन मान ले तो औसत भार 85 किग्रा हो जाता है।इस तरह 18 यात्रियों का कुल भार 1530 किग्रा हो जाता है। इसके अलावा बस की छत पर अतिरिक्त करियर लगा कर सामान लाद देते हैं, जबकि यात्री बस में छत पर किसी प्रकार का सामान लादने की अनुमति नहीं होती है। इसके बाद भार कई गुना बढ़ जाता है।

भार क्षमता के अनुसार ही तय होती सीट

संभागीय परिवहन अधिकारी विनय सिंह ने बताया कि बस की सीट क्षमता भार संतुलन के आधार पर तय होती है। प्रत्येक वाहन में आगे और पीछे के टायरों के बीच की दूरी के आधार पर व्हीलबेस तय होता है। इससे ही सीट निर्धारित होती है। ऐसे में अगर मूल डिजाइन से छेड़छाड़ की जाती है तो बस का संतुलन बिगड़ सकता है। यही कारण है कि अक्सर प्राइवेट बसों के पलटने की घटनाएं सामने आती है।

इस तरह होती है कार्रवाई

अन्य राज्यों में पंजीकृत होने से कार्रवाई के लिए भी लंबी प्रक्रिया अपनानी पड़ती है। संभागीय निरीक्षक ऐसी बसों की जांच कर मूल राज्यों को पंजीकरण व फिटनेस निलंबन के लिए पत्र लिखते हैं। वहां से कार्रवाई होने के बाद वाहन स्वामी से मूल डिजाइन में वापस लाने का शपथ पत्र लेने के बाद बस छोड़ी जाती है।


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