राजस्थान में डबल इंजन सरकार की दोहरी नीति: दिल्ली में फीस पर लगाम, राजस्थान में अभिभावकों की लूट जारी!

भीलवाड़ा (हलचल ) राजस्थान में डबल इंजन सरकार के बाद भी दिल्ली की तरह नया फीस एक्ट लागू होने के साथ ही अभिभावकों को मनमानी फीस वृद्धि से राहत नहीं मिल पाई है। लेकिन प्रदेश के अभिभावकों का दर्द अब भी जस का तस है। वजह साफ है, यहां आठ साल पहले फीस एक्ट तो बना, मगर इसकी पालना कभी नहीं हो पाई। नतीजा यह कि हर नए सत्र के साथ अभिभावकों की जेब ढीली होती जा रही है और निजी स्कूल मनमर्जी से फीस बढ़ाते जा रहे हैं। दरअसल दिल्ली में दिल्ली स्कूल शिक्षा (फीस निर्धारण और विनियमन में पारदर्शिता) अधिनियम, 2025 लागू होने के साथ ही निजी स्कूलों को मनमानी फीस वृद्धि पर लगाम लग गई है लेकिन प्रदेश में शिक्षा विभाग तमाशबीन बना हुआ है।
भीलवाड़ा छोटे बड़े छोटे निजी स्कूल संचालित हो रहे हैं। इनमें से अधिकतर हर सत्र में फीस बढ़ाते हैं। एक्ट होने के बावजूद न अभिभावकों की सुनवाई हो रही है और न ही स्कूलों पर कोई सख्ती। अभिभावक संगठनों का कहना है कि विभाग की ढिलाई ने फीस एक्ट को ‘बेजान कानून’ बना दिया है।
ये हैं फीस एक्ट के प्रावधान, जिनकी पालना अब तक नहीं
1- नया सत्र शुरू होने के 30 दिन के भीतर स्कूलों को पेरेंट्स-टीचर्स एसोसिएशन (पीटीए) का गठन करना अनिवार्य है।
2- हर अभिभावक और शिक्षक इसका सदस्य होता है।
3- 15 अगस्त से पहले पीटीए के सदस्यों में से स्कूल लेवल फीस कमेटी (एसएलएफसी) का चुनाव लॉटरी से किया जाना चाहिए।
4- इस कमेटी में 10 सदस्य-पांच स्कूल और पांच अभिभावक शामिल होते हैं।
5- कमेटी द्वारा तय की गई फीस तीन साल तक लागू रहती है।
6- तय फीस की सूचना जिला शिक्षा अधिकारी को भेजी जाती है।
7- संभाग और राज्य स्तर पर भी फीस निर्धारण कमेटियां गठित होनी चाहिए।
लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि ज्यादातर निजी स्कूल न तो पीटीए का गठन करते हैं और न ही कमेटियों की सूचना जिला शिक्षा अधिकारी को देते हैं। जयपुर में महज 10 फीसदी स्कूलों की कमेटियों की सूचना विभाग के पास दर्ज है।
अधिकांश स्कूल बिना कमेटी गठित किए हर साल बढ़ा रहे फीस
सत्र शुरू होते ही हजारों अभिभावक निजी स्कूलों की मनमानी फीस वृद्धि की शिकायतें करते हैं, लेकिन उनकी सुनवाई नहीं होती। शिक्षा विभाग स्कूलों को नोटिस तो भेजता है, लेकिन आगे कोई ठोस कदम नहीं उठाता। पिछले सत्र में एक निजी स्कूल पर संभागीय फीस विनियामक समिति ने कार्रवाई करते हुए फीस वृद्धि को नियम विरुद्ध माना था। यह फीस एक्ट 2017 के तहत राजस्थान की पहली कार्रवाई थी। लेकिन उसके बाद से विभाग ने न तो किसी अन्य स्कूल पर सख्ती की और न ही कमेटियों की जांच की। राज्यभर में 38 हजार निजी स्कूल संचालित हैं, जिनमें से भीलवाड़ा जिले में ही हजार से अधिक स्कूल हैं। अधिकांश स्कूल बिना कमेटी गठित किए ही हर साल फीस बढ़ा रहे हैं।
अभिभावक संगठनों का दर्द
फीस एक्ट का असली फायदा अभिभावकों को नहीं मिला। स्कूलों की मनमानी से हर साल जेब पर बोझ बढ़ रहा है, लेकिन विभाग और सरकार खामोश हैं। अगर दिल्ली फीस एक्ट को कड़ाई से लागू कर सकती है, तो राजस्थान में क्यों नहीं?प्रदेश और स्थानीय राजनेताओ में इस तरह के कार्यो के प्रति ज्यादा दिलचस्पी नहीं हेी इसी का परिणाम हे अभिभावक लूट रहे हे!
