hraddh कौवे के बिना क्यों अधूरा माना जाता है पितृ पक्ष का श्राद्ध कर्म

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भीलवाड़ा: श्राद्ध पक्ष में पितरों को भोजन अर्पण की परंपरा, कौवे की भूमिका और सांस्कृतिक एकजुटता का प्रतीक

भीलवाड़ा, राजस्थान में श्राद्ध पक्ष के दौरान प्राचीन परंपराओं के अनुरूप पितरों को भोजन अर्पित करने का आयोजन धार्मिक आस्था और पारिवारिक एकजुटता का प्रतीक बन रहा है। घरों में खीर, पूड़ी, तिल, गुड़ और दाल-चावल जैसे पारंपरिक व्यंजन तैयार किए जा रहे हैं, जिन्हें पूर्वजों की आत्मा की शांति और पुण्य के लिए अर्पित किया जा रहा है। यह आयोजन न केवल धार्मिक अनुष्ठान का हिस्सा है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक एकता को भी मजबूत करता है। स्थानीय लोग घरों की छतों और कलेक्ट्रेट के पास ओवर ब्रिज की दीवार पर पितरों के नाम का भोजन रख रहे हैं, जिसे कौवे, गाय, कुत्ते और अन्य जीवों के लिए अर्पित किया जाता है।

पंचबलि और कौवे की महत्वपूर्ण भूमिका

श्राद्ध पक्ष में पंचबलि की परंपरा विशेष रूप से निभाई जाती है, जिसमें गाय, कुत्ता, कौआ, देवता और चीटियों के लिए भोजन के अंश निकाले जाते हैं। इनमें कौवे की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। हिंदू शास्त्रों के अनुसार, कौआ पितरों का दूत होता है, और इसे भोजन कराने से पितरों तक भोजन पहुंचता है। मान्यता है कि यदि कौआ श्राद्ध के भोजन को स्वीकार कर लेता है, तो यह संकेत है कि पितर तृप्त और प्रसन्न हैं। पौराणिक कथाओं में काग भुसुंडी के कौए के रूप का उल्लेख है, जिन्होंने ब्रह्मा जी के कहने पर भी अपना काला रूप नहीं बदला और इसे पवित्र माना। इसलिए, कागबलि के बिना श्राद्ध अधूरा माना जाता है।

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

श्राद्ध पक्ष में पितरों की आत्मा के धरती पर आने की मान्यता है, और तर्पण व भोजन अर्पित करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। इस दौरान चावल, जौ और तिल से बने पिंड पितरों को अर्पित किए जाते हैं, और तिल-मिश्रित जल से तर्पण किया जाता है। ब्राह्मण भोज भी इस अनुष्ठान का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसे पितरों को प्रसन्न करने का एक तरीका माना जाता है। स्थानीय निवासी रत्न सिंह ने बताया कि यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है और बच्चों को सांस्कृतिक मूल्यों से जोड़ने का एक सशक्त माध्यम है। परिवार के बच्चे भोजन तैयार करने और अर्पित करने में शामिल होते हैं, जिससे उनमें संस्कार और सम्मान की भावना विकसित होती है।

सामाजिक जिम्मेदारी और एकता

श्राद्ध पक्ष में भोजन अर्पित करने की परंपरा केवल धार्मिक कर्तव्य तक सीमित नहीं है। कई परिवार गरीब और जरूरतमंदों के बीच खीर, पूड़ी और तिल-गुड़ का वितरण करते हैं, जिससे समाज में सेवा भाव और सामाजिक जिम्मेदारी की भावना को बढ़ावा मिलता है। 50 वर्षीय अनिता देवी ने कहा कि यह आयोजन पारिवारिक एकजुटता को बढ़ाता है, क्योंकि परिवार के सभी सदस्य मिलकर पूजा और भोजन की तैयारी करते हैं। स्थानीय सामाजिक संगठन और महिला समूह भी इस परंपरा को बनाए रखने और युवाओं को इससे जोड़ने में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।

स्थानीय गतिविधियां

श्राद्ध पक्ष के पहले दिन से ही भीलवाड़ा के घरों में पूजा स्थलों और पवित्र स्थानों की साफ-सफाई शुरू हो जाती है। सुबह से ही परिवार खीर, दाल-चावल, पूड़ी और तिल-गुड़ जैसे व्यंजन तैयार करने में जुट जाते हैं। इन व्यंजनों को विशेष रूप से सजाकर पितरों को अर्पित किया जाता है। कई लोग घर की छतों या कलेक्ट्रेट के पास ओवर ब्रिज की दीवार पर भोजन रखते हैं, जहां कौवे और अन्य जीव इसे ग्रहण करते हैं। इसके बाद स्थान को साफ किया जाता है, जो पवित्रता और स्वच्छता की परंपरा को दर्शाता है।

भीलवाड़ा में श्राद्ध पक्ष के दौरान पितरों को भोजन अर्पित करने की यह परंपरा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि सामाजिक एकजुटता, सांस्कृतिक शिक्षा और परस्पर सहयोग को भी बढ़ावा देती है। कौवे की भूमिका और पंचबलि की परंपरा इस आयोजन को और भी महत्वपूर्ण बनाती है। यह परंपरा बच्चों और युवाओं को अपनी जड़ों से जोड़ने और सामाजिक मूल्यों को अपनाने का अवसर प्रदान करती है, जिससे भीलवाड़ा की सांस्कृतिक विरासत और मजबूत होती है।

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