स्थानीय लोकतंत्र पर ‘प्रशासनिक ब्रेक’: राजस्थान में पंचायत-निकाय चुनाव फरवरी 2026 तक टले, दावेदारों के सपनों पर बारिश

राजस्थान में पंचायत-निकाय चुनाव फरवरी 2026 तक टले, दावेदारों के सपनों पर बारिश
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भीलवाड़ा हलचल।

राजस्थान में लोकतंत्र की गूंज पर अब फिलहाल *प्रशासनिक सन्नाटा* छा गया है। राज्य निर्वाचन आयुक्त **राजेश्वर सिंह** के ताजा ऐलान ने स्पष्ट कर दिया है कि **अब पंचायत और निकाय चुनाव तभी होंगे, जब विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR)** के आधार पर **नई मतदाता सूची तैयार और प्रकाशित हो जाएगी। इसका सीधा मतलब है फरवरी 2026 से पहले अब कोई चुनाव नहीं। गाँवों और कस्बों में लंबे समय से चुनावी तैयारी कर रहे संभावित उम्मीदवारों के चेहरे अब मुरझा गए हैं। जो लोग महीनों से जनता के बीच पहुंच बना रहे थे, खर्च कर कार्यक्रम आयोजित कर रहे थे, उनके सामने अब “*इंतजार का लंबा मौसम*” आ गया है।

7 फरवरी 2026 तक चलेगा मतदाता सूची पुनरीक्षण अभियान

मुख्य निर्वाचन अधिकारी **नवीन महाजन** के मुताबिक, *विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) अभियान* मंगलवार से शुरू होकर **7 फरवरी 2026 तक** जारी रहेगा। इस दौरान बूथ स्तर पर बीएलओ मतदाताओं का घर-घर जाकर सत्यापन करेंगे। मृत या स्थानांतरित मतदाताओं के नाम हटाए जाएंगे और नए पात्र नागरिकों को सूची में जोड़ा जाएगा।

महाजन का कहना है कि मतदाता सूची को पूरी तरह *अद्यतन और त्रुटिरहित* बनाना ही चुनावी पारदर्शिता की पहली शर्त है, इसलिए जब तक यह प्रक्रिया पूरी नहीं होती, तब तक चुनाव संभव नहीं हैं।

कार्यकाल पूरा, चुनाव अधर में

राजस्थान के अधिकतर **पंचायती राज संस्थान और शहरी निकाय** पहले ही अपना पांच वर्षीय कार्यकाल पूरा कर चुके हैं। लेकिन नए चुनाव न होने से कई जगह प्रशासनिक व्यवस्था अब अधिकारियों के हाथों में है।

पूर्व निर्वाचन आयुक्त **मधुकर गुप्ता** ने हाईकोर्ट के निर्देश पर चुनाव प्रक्रिया शुरू करने की तैयारी की थी, लेकिन उनके रिटायरमेंट के बाद नई नियुक्ति के साथ नीति बदल गई। वर्तमान आयुक्त **राजेश्वर सिंह** ने स्पष्ट कहा — *“पुरानी और अधूरी मतदाता सूची पर चुनाव कराना लोकतंत्र के साथ अन्याय होगा।”*

उन्होंने बताया कि पिछली सूची में हजारों नाम या तो दोहराए गए थे, या मृत मतदाताओं के नाम अभी तक दर्ज थे। यही कारण है कि अब नई सूची बनाना ही चुनाव की पहली प्राथमिकता है।

“लोकतंत्र ठंडे बस्ते में”, राजनीतिक गलियारों में गरमाहट

राजनीतिक हलकों में इस फैसले ने गरमी बढ़ा दी है।

सत्तारूढ़ दल इसे *“लोकतांत्रिक सुधारों की दिशा में साहसिक कदम”* बता रहा है, जबकि विपक्ष इसे *“राजनीतिक देरी का बहाना”* कह रहा है।

विपक्षी दलों का आरोप है कि सरकार **जनता के मूड को भांपने से डर रही है**, इसलिए मतदाता सूची के नाम पर समय खींचा जा रहा है।

एक वरिष्ठ विपक्षी नेता ने कहा —

“गाँवों में विकास कार्य ठप हैं, प्रतिनिधि नहीं हैं, अधिकारी मनमानी कर रहे हैं। जनता जवाब मांगना चाहती है, लेकिन चुनावी डमरू बजने ही नहीं दिया जा रहा।”

दावेदारों के हौसले पस्त

गाँवों में जिन लोगों ने चुनावी तैयारियां शुरू कर दी थीं, पोस्टर-बैनर छपवा लिए थे, प्रचार वाहन तक तैयार कर रखे थे — अब उनके उत्साह पर पानी फिर गया है।

भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़ और बूंदी जैसे जिलों में संभावित उम्मीदवारों ने कहा कि अब तो *जनसंपर्क ठंडा पड़ जाएगा।*

कुछ दावेदारों ने नाराज़गी जताते हुए कहा —

> “जब जनता का मूड तैयार था, तब प्रशासन ने चुनावी मैदान ही हटा दिया। अब फरवरी 2026 तक न जाने क्या हालात रहें।”

विकास कार्यों पर असर

निकायों और पंचायतों में निर्वाचित प्रतिनिधि न होने से विकास कार्यों की गति थम गई है। गांवों में सीवरेज, सड़क, और नाली के कार्य अधूरे पड़े हैं। जनप्रतिनिधियों की अनुपस्थिति में अधिकारी फैसले लेने से बच रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि *“जनता की आवाज अब फाइलों में दब गई है।”*

राजस्थान में स्थानीय लोकतंत्र की गूंज अब *फरवरी 2026 तक थम गई है।*जहां आयोग इसे मतदाता सूची की पवित्रता का सवाल बता रहा है, वहीं जनता और दावेदार इसे **“लोकतंत्र की धीमी हत्या”** मान रहे हैं।

फिलहाल यह तय है कि **राजनीति के रणबांकुरे अब इंतजार की ठंडी छांव में बैठ गए हैं, और लोकतंत्र का ढोल फिर बजने में अभी वक्त है।**

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