राजस्थान में पंचायत-निकाय चुनावों की हलचल:: एक-दो दिनों में चुनावी तारीखों का ऐलान,हाईकोर्ट की फटकार के बाद आयोग एक्शन मोड में

जयपुर। राजस्थान की राजनीति में इन दिनों सबसे ज्यादा चर्चा जिस मुद्दे पर है, वह है पंचायतीराज और शहरी निकाय चुनाव। लंबे समय से अटके इस मसले पर आखिरकार नई हलचल शुरू हो गई है। राज्य निर्वाचन आयोग अब पूरे एक्शन मोड में है और संकेत मिल रहे हैं कि अगले एक-दो दिनों में चुनावी तारीखों का ऐलान कर दिया जाएगा।
राज्य निर्वाचन आयुक्त मधुकर गुप्ता ने साफ कर दिया है कि अब देरी की कोई गुंजाइश नहीं है। हाईकोर्ट के ताज़ा आदेश हाथ में आते ही आयोग ने तैयारियों में तेजी ला दी है। गुप्ता ने कहा – “हमारे पास जल्द चुनाव कराने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। कोर्ट के आदेश का पालन हर हाल में किया जाएगा।”
10 दिनों में निकाय और पंचायत चुनाव की घोषणा
राजस्थान हाईकोर्ट के आदेशों के बाद अब राज्य निर्वाचन आयोग भी निकाय और पंचायत चुनाव कराने की तैयारी में जुट गया है. राज्य के चुनाव आयुक्त मधुकर गुप्ता ने कहा कि आगामी 10 दिनों में निकाय और पंचायत चुनाव की घोषणा कर दी जाएगी. गुप्ता ने मंगलवार शाम को मीडिया से बातचीत में कहा कि 2 माह के भीतर सारी प्रक्रिया पूरी करके चुनाव करा देंगे. ऐसे में माना जा रहा है कि अक्टूबर या नवंबर की शुरुआत में चुनाव कराए जा सकते हैं. मधुकर गुप्ता ने कहा कि जिन निकायों और पंचायतों के 5 साल का कार्यकाल पूरा हो गया है. उन पंचायतों में हम चुनाव कराएंगे. जहां अभी कार्यकाल बाकी है, उनमें आगे देखा जाएगा.
हाईकोर्ट की नाराजगी ने बदली तस्वीर
दरअसल, पूरे विवाद की जड़ हाईकोर्ट की नाराजगी है। पिछले दिनों जस्टिस अनूप ढंड की अदालत ने प्रदेश सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि परिसीमन (Delimitation) के नाम पर पंचायत चुनावों को अनिश्चितकाल तक टालना संविधान की भावना के खिलाफ है।
कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 243E और राजस्थान पंचायतीराज अधिनियम की धारा 17 का हवाला देते हुए कहा कि पंचायतों का कार्यकाल खत्म होने से पहले ही चुनाव संपन्न होना चाहिए। अदालत ने यह भी साफ किया कि चुनाव में देरी का सीधा असर जनता तक सेवाओं की पहुंच पर पड़ता है। प्रशासनिक ढांचा कमजोर होता है और लोकतंत्र की बुनियादी जड़ें हिलती हैं।
जस्टिस ढंड ने सख्त लहजे में कहा – “स्थानीय शासन में खालीपन किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। सरकार की जिम्मेदारी है कि वह समय पर चुनाव कराए। अगर सरकार टालमटोल करती है तो राज्य निर्वाचन आयोग को दखल देकर लोकतांत्रिक प्रक्रिया बहाल करनी चाहिए।”
पंचायत प्रशासकों की बहाली पर भी आदेश
इसी सुनवाई के दौरान अदालत ने उन पंचायत प्रशासकों की बहाली का भी आदेश दिया जिन्हें बिना उचित प्रक्रिया के निलंबित कर दिया गया था। सरकार ने पहले तो कार्यकाल समाप्त होने के बाद पूर्व सरपंचों को प्रशासक नियुक्त कर दिया था, लेकिन बाद में भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के आरोपों के आधार पर कई प्रशासकों को हटा दिया गया। अब अदालत ने साफ किया कि यह सब कानूनी प्रक्रिया के तहत होना चाहिए।
'वन नेशन, वन इलेक्शन' पर भी चर्चा
राज्य निर्वाचन आयुक्त मधुकर गुप्ता ने इस मौके पर ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ को लेकर भी स्थिति स्पष्ट कर दी। उन्होंने कहा कि अभी यह संभव नहीं है क्योंकि इसके लिए संविधान में संशोधन करना जरूरी है। जब तक संसद स्तर पर इस पर ठोस निर्णय नहीं होता, तब तक राजस्थान में चुनाव केवल मौजूदा कानूनी प्रावधानों और हाईकोर्ट के आदेशों के मुताबिक ही होंगे।
संवैधानिक मजबूरी – पांच साल में चुनाव अनिवार्य
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में साफ कहा कि पंचायतीराज संस्थाओं के चुनाव हर पांच साल में होना जरूरी है। विशेष परिस्थितियों में इन्हें केवल छह महीने तक ही टाला जा सकता है, उससे अधिक नहीं।यानी अब सरकार के पास कोई बहाना नहीं बचा। चुनाव कार्यक्रम घोषित करना ही होगा। यही वजह है कि निर्वाचन आयोग ने तेजी दिखाते हुए अगले 1-2 दिनों में शेड्यूल जारी करने का संकेत दिया है।
कितनी पंचायतें और निकाय चुनाव की कतार में?
राजस्थान में इस समय 6,759 ग्राम पंचायतों का कार्यकाल जनवरी 2025 में ही पूरा हो चुका है। इसके साथ ही कई शहरी निकाय भी ऐसे हैं जिनका कार्यकाल समाप्त हो चुका है। इन सभी जगहों पर चुनाव होना बाकी है।जब कार्यकाल पूरा हुआ तो सरकार ने पंचायतों में पूर्व सरपंचों को अस्थायी तौर पर प्रशासक बना दिया था। लेकिन यह व्यवस्था टिकाऊ नहीं रही। कई जगह भ्रष्टाचार और पक्षपात के आरोप सामने आए, जिसके बाद प्रशासकों को हटा दिया गया। नतीजा यह हुआ कि पंचायतों में निर्णय लेने और कामकाज करने की प्रक्रिया लगभग ठप हो गई।
ग्राम स्तर पर विकास कार्य रुक गए, जनता को छोटे-छोटे कामों के लिए परेशान होना पड़ा। यही वह खालीपन है जिस पर हाईकोर्ट ने सख्त नाराजगी जताई।
सियासी मायने
इस पूरी कवायद के राजनीतिक मायने भी गहरे हैं। पंचायत और निकाय चुनाव को "ग्राम स्तर पर जनता की नब्ज" माना जाता है। यही चुनाव आगे विधानसभा और लोकसभा की राजनीति का माहौल तैयार करते हैं।गांव-गांव में सरपंच और पंच का चुनाव केवल स्थानीय विकास तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह बताता है कि जनता का झुकाव किस दल की ओर है। इसलिए राज्य सरकार और विपक्ष – दोनों की नजरें इन चुनावों पर टिकी हैं।विशेषज्ञों का मानना है कि निकाय-पंचायत चुनाव राजस्थान की सियासत का "सेमीफाइनल" होते हैं। यहां का नतीजा अक्सर बड़े चुनावों की दिशा तय कर देता है।
कोर्ट की फटकार से सरकार पर दबाव
हाईकोर्ट के रुख ने सरकार पर दबाव और बढ़ा दिया है। अगर अब भी चुनाव टाले जाते हैं तो विपक्ष को सरकार पर हमला करने का बड़ा मुद्दा मिल जाएगा। विपक्ष पहले से ही आरोप लगाता रहा है कि सरकार पंचायत चुनाव से डर रही है।
अब जबकि कोर्ट ने सख्ती दिखाई और आयोग ने कार्यक्रम घोषित करने का संकेत दिया है, तो सरकार चाहकर भी चुनावी प्रक्रिया को और लंबा खींच नहीं सकती।
जनता की उम्मीदें
गांव और कस्बों के लोगों की नजरें अब चुनावी तारीखों पर टिक गई हैं। पिछले कई महीनों से लोग शिकायत कर रहे हैं कि पंचायतों और निकायों में फैसले लेने वाला कोई जनप्रतिनिधि नहीं है। काम रुक गए हैं, योजनाएं ठंडी पड़ गई हैं और विकास की रफ्तार थम सी गई है।
जनता चाहती है कि जल्दी चुनाव हों ताकि गांव और शहरों में फिर से चुने हुए प्रतिनिधि आएं और कामकाज की रफ्तार बढ़े।
राजस्थान में पंचायत और निकाय चुनाव सिर्फ एक औपचारिक प्रक्रिया नहीं हैं, बल्कि यह लोकतंत्र की निचली बुनियाद को मजबूत करने वाला सबसे अहम कदम है। हाईकोर्ट ने जिस तरह सख्ती दिखाई है, उससे साफ है कि अब देरी की कोई संभावना नहीं बची।निर्वाचन आयोग की सक्रियता और सरकार पर बढ़ता दबाव यह संदेश दे रहा है कि बहुत जल्द चुनावी बिगुल बजने वाला है।गांव-गांव और शहर-शहर में फिर से चुनावी माहौल बनेगा, प्रत्याशी घर-घर दस्तक देंगे और लोकतंत्र की गाड़ी दोबारा पटरी पर दौड़ने लगेगी।आखिरकार यही लोकतंत्र की असली ताकत है – जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा जनता की सेवा।
