बीएलओ पर काम का दबाव कम करें, छुट्टी भी दी जाए; सुप्रीम कोर्ट के राज्य सरकारों को निर्देश

बीएलओ पर काम का दबाव कम करें, छुट्टी भी दी जाए; सुप्रीम कोर्ट के राज्य सरकारों को निर्देश
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नई दिल्ली। देश के बारह राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण चल रहा है। इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने बूथ स्तर अधिकारियों यानी बीएलओ की कार्य स्थितियों पर गंभीर चिंता जताई है। अदालत ने कहा कि मतदाता सूची संशोधन के दौरान कई राज्यों में बीएलओ की मौतें सामने आई हैं, जिन पर तुरंत ध्यान देने की आवश्यकता है।

मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि जहां दस हजार बीएलओ तैनात हैं, वहां तीस हजार भी लगाए जा सकते हैं। इससे काम का बोझ कम होगा और कर्मचारियों की मानसिक और शारीरिक स्थिति पर सकारात्मक असर पड़ेगा। अदालत ने राज्यों को निर्देश दिया कि किसी भी बीएलओ द्वारा बीमारी या अन्य कारणों से ड्यूटी से छूट मांगी जाए तो उसे छुट्टी दी जाए और उसकी जगह तुरंत किसी अन्य व्यक्ति की नियुक्ति की जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी अभिनेता विजय की पार्टी तमिलगा वेत्री कझगम की याचिका पर की। याचिका में दावा किया गया था कि कई राज्यों में बीएलओ को प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 32 के तहत सख्त कार्रवाई और जेल भेजने की चेतावनी देकर काम करने के लिए मजबूर किया जा रहा है, जिसके चलते कई कर्मचारियों की मौत और आत्महत्याएं हुई हैं। टीवीके ने यह भी कहा कि अकेले उत्तर प्रदेश में बीएलओ के खिलाफ पचास से अधिक पुलिस मामले दर्ज किए गए हैं।

चुनाव आयोग ने इन आरोपों को झूठा और निराधार बताया। आयोग का कहना है कि मतदाता सूची पुनरीक्षण कार्य में देरी होने पर चुनावों पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। आयोग ने अदालत को यह भी बताया कि वह बीएलओ के प्रति किसी भी तरह की कठोरता से बचते हुए कार्य कर रहा है।

उल्लेखनीय है कि तमिलनाडु और केरल में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं, जबकि पश्चिम बंगाल में 2026 में और गुजरात तथा उत्तर प्रदेश में 2027 में चुनाव होंगे। इन राज्यों में विशेष गहन पुनरीक्षण कार्य तेजी से चल रहा है, जिसके बीच बीएलओ पर काम के दबाव और मौतों को लेकर बहस और विवाद बढ़ता जा रहा है।

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